भोजन के प्रमुख अवयव एवं इनकी कमी से होने वाले रोग, संतुलित भोजन

किसी भी जीव को कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, यह ऊर्जा जीवों को भोजन से प्राप्त होती है। जीव न केवल ऊर्जा के लिए बल्कि शरीर के वृद्धि-विकास, टूट फूट की मरम्त, प्रतिरक्षा एवं विभिन्न जैविक क्रियाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिय भोजन ग्रहण करते है, जिसे पोषण कहते हैं।

भोजन के प्रमुख अवयव / घटक / पोषक तत्व (Nutrients) –

(1) कार्बोहाइड्रेट (2) वसा (3) प्रोटीन (4) विटामिन (5) खनिज लवण (6) जल (7) खाद्यरेशे / रुक्षांश

  • उर्जा देने वाले अवयव – कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन
  • कार्बनिक अवयव – कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, खाद्यरेशे
  • अकार्बनिक अवयव – खनिज लवण, जल
  • शरीर का निर्माण करने वाले प्रोटीन, खनिज लवण, जल
  • सुरक्षा प्रदान करने वाले – प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण, जल
  • बृहत् पोषक (Macro Nutrients) कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन
  • सूक्ष्म पोषक (Micro Nutrients) विटामिन, खनिज लवण

संतुलित आहार ऐसा भोजन जिसमे शरीर की आवश्यकता के अनुसार सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में उपस्थित हो, इस प्रकार के आहार को संतुलित आहार कहते हैं। यदि किसी पोषक तत्व की लम्बे समय तक अनुपस्थिति (असंतुलित आहार) रहे तो शरीर कुपोषण (Malnutrition) का शिकार हो जाता है।

  • वे रोग जो लंबी अवधि तक पोषकों के अभाव के कारण होते हैं, उन्हें अभावजन्य रोग कहते हैं।

भोजन के प्रमुख अवयव एवं इनकी कमी से रोग

1. कार्बोहाइड्रेट यह कार्बन (C) के हाइड्रेट (H₂O) होते हैं। इसमें कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन पाया जाता है जिनका सामन्य सूत्र (CH₂O) होता है।

  • स्वाद में मीठे कार्बोहाइड्रेट को सामान्यतः शर्करा कहते हैं। जैसे गन्ना, चीनी, शहद, गुड, किशमिश, खजूर 
  • जो स्वाद में मीठे नही होते उन्हें स्टार्च युक्त कार्बोहाइड्रेट कहते हैं। जैसे – आलू, चावल, अनाज
  • रासायनिक रूप से, कार्बोहाइड्रेट पॉलिहाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड अथवा कीटोन होते है
  • कार्बोहाइड्रेट शरीर को सर्वप्रथम ऊर्जा देते है (क्रम कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन)
  • तुरंत उर्जा के लिय ग्लूकोज (कार्बोहाइड्रेट) का उपयोग किया जाता है (उर्जा के प्रमुख स्त्रोत)
  • शरीर को सर्वाधिक (लगभग 60-70%) ऊर्जा कार्बोहाइड्रेट से मिलती है
  • हालाँकि कैलोरी मान वसा का सर्वाधिक होता है। (कैलोरी मान वसा प्रोटीन > कार्बोहाइड्रेट)
  • एक ग्राम कार्बोहाइड्रेट के ऑक्सीकरण से लगभग 4.2 किलो कैलोरी ऊर्जा मिलती है
  • कार्बोहाइड्रेट के पाचन से ग्लूकोज बनता हैं जो कार्बोहाइड्रेट का सरलतम रूप है।
  • कार्बोहाइड्रेट की सरलतम इकाई को सैकेराइड भी कहते है एवं इनकी संख्या के आधार पर कार्बोहाइड्रेट को तीन भागो में बांटा गया है- (a) मोनो सैकेराइड (b) डाई सैकेराइड / ओलिगो सैकेराइड (c) पोली सैकेराइड

(a) मोनो सैकेराइड सबसे सरलतम, स्वाद में मीठे एवं जल में घुलनशील कार्बोहाइड्रेट है। सरलतम होने के कारण इनका जल अपघटन (hydrolysis) नहीं होता है।

  • फ्रेक्टोज ग्लूकोज ग्लेक्टोज (CaH2O) हेक्सोज शर्कराएं
  • ग्लूकोज, गैलेक्टोज और फ्रुक्टोज आइसोमर (समावयवी) हैं।

आइसोमर – अणुसूत्र समान लेकिन ये संरचनात्मक और रासायनिक रूप से भिन्न होते हैं।

  • ग्लूकोज – रक्त शर्करा, अंगूर (द्राक्ष) शर्करा, डेक्सट्रोज, शरीर का ईन्धन
  • फेक्टोज – फलों की शर्करा, सबसे मीठी प्राकृतिक शर्करा, शहद की शर्करा, लेवुलोज
  • ग्लेक्टोज – ब्रेन शुगर
  • राइबोज (C₂H₂O₃)- RNA की शर्करा, पेन्टोज शर्करा
  • डीऑक्सीराइबोज (C5H10O₄) – DNA की शर्करा, पेन्टोज शर्करा, (CH₂O) का पालन नही करती

(b) डाई सैकेराइड / ओलिगो सैकेराइड- ये स्वाद में मीठे एवं जल में घुलनशील कार्बोहाइड्रेट है।

डाई सैकेराइड का निर्माण 2 मोनो सैकेराइड के ग्लाईकोसाईडिक बंध द्वारा जुडकर जल अपघटन द्वारा होता है (जल का एक अणु बहार निकलता है)

जैसे – ग्लूकोज (CHO) + फ्रेक्टोज (CH12O6) → सुक्रोज (C12H22O11) + H₂O

लेक्टोज (दुध) माल्टोज (अंकुरित बीज)

सुक्रोज – टेबल / किचन शुगर, गन्ने व चुकन्दर में, चीनी, केन शुगर, अन अपचयी शर्करा, व्यावसायिक शर्कर

माल्टोज – ग्लूकोज ग्लूकोज

सुक्रोज – ग्लूकोज + फ्रेक्टोज

Note :- 2 से 10 तक मोनो सैकेराइड अणुओं के जुडने से बनी शर्करा ओलिगो सैकेराइड कहलाती है।

(c) पोली सैकेराइड सबसे जटिल कार्बोहाइड्रेट है जो स्वाद में मीठी नही होती एवं जल में अघुलनशील होती है।

  • ये मोनो सैकेराइड के कई अणुओं के जुड़ने से बनते है।
  • इनका जल अपघटन (hydrolysis) होता है।
  • ये अनअपचायक होते है जबकि सभी मोनोसैकेराइड (एल्डोज तथा कीटोज दोनों) तथा डाइसैकेराइड (सुक्रोज को छोड़कर) अपचायी शर्करा होते है। उदाहरण –

1. स्टार्च (मंड) – स्टार्च पौधों में मुख्य संग्रहित पॉलिसैकैराइड है।

भोजन में स्टार्च की उपस्थिति का परीक्षण करने के लिए आयोडीन परीक्षण किया जाता है। इसकी उपस्थिति का संकेत देने वाला रंग है नीला-काला

II. ग्लाइकोजन – प्राणी शरीर में कार्बोहाइड्रेट, ग्लाइकोजन के रूप में संग्रहित रहता है।

III. सेल्युलोज – पादपो की कोशिका भित्ति मुख्यतः सेल्युलोज की बनी होती है।

IV. काइटिन – कवको की कोशिका भित्ति एवं आर्थोपोड़ा जंतुओं के बाह्य कंकाल का निर्माण

V. हिपेरिन – थक्का-रोधी (anticoagulant) जो रक्त के थक्कों को बनने से रोकता है।

2 . लिपिड्स (Lipids) या वसा (Fat)- कार्बोहाइड्रेट्स की तरह लिपिड्स भी कॉर्बन (C) हाइड्रोजन (H) एवं ऑक्सीजन (O) के बने होते है किन्तु इनमें हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के परमाणुओं का अनुपात 2:1 नहीं होता है। बल्कि हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या ऑक्सीजन परमाणुओं की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। यही कारण है की वसा युक्त खाना खाने पर आलस महसूस होता है।

  • लिपिड्स जल में अघुलनशील (Insoluble in water) किन्तु क्लोरोफार्म, ईथर बैंजीन जैसे कार्बनिक विलायकों में घुलनशील होती है।
  • जन्तुओं में लिपिड्स वसा के रूप में पाये जाते हैं। वसा का निर्माण वसीय अम्लों (Fatty acids) एवं ग्लिसरोल के संयोजन से होता है। वसा के एक अणु के निर्माण में वसीय अम्ल के तीन अणु एवं ग्लिसरोल के एक अणु का संयोग होता है।

लिपिड्स को तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा जा सकता है-

(अ) सरल लिपिड्स (Simple Lipids) :- वसीय अम्लों से बने ये सबसे सरल लिपिड्स हैं, इन्हें वास्तविक वसा (True fats) कहते है। इन्हें संचयी लिपिड्स (Storage lipids) भी कहते हैं।

  • शरीर में वसा का संचय एडिपोज या वसीय संयोजी उतकों के रूप में होता है।
  • एक ग्लिसरॉल अणु से तीन वसीय अम्ल अणुओं के (सहसंयोजी एस्टर बन्ध द्वारा जुड़ने पर एक सरल लिपिड अणु बनता है। ये वसाएं ऊर्जा प्राप्त करने के स्रोत के साथ साथ संग्रह योग्य पदार्थों की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। घी, तेल, चर्बी, मोम (wax) आदि
  • अधिकांश पादप वसाएं जैसे मूंगफली, तिल, सरसों, अलसी, सोयाबीन आदि के तेल असंतृप्त (Unsaturated) होते हैं। (अपवाद नारियल का तेल)। अनसेचुरेटेड फैट को ही गुड फैट कहा जाता है
  • जबकि जन्तु वसाएँ ( Animal fats) जैसे घी, चर्बी, मक्खन आदि संतृप्त (Saturated) होते हैं। (अपवाद – fish oil) सैचुरेटेड फैट स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है। संतृप्त वसा कमरे के ताप पर ठोस होने लगती है
  • कॉड लिवर ऑयल (कॉड मछली के लिवर से प्राप्त), अलसी के बीज, अखरोट, सोयाबीन Omega 3 फैटी
  • एसिड के अच्छे स्त्रोत है जो बैड फैट को रोकता है।

(ब) सयुंक्त या जटिल लिपिड्स (Compound or Complex Lipids) :- ऐसे लिपिड्स जिनमें वसीय अम्ल एवं ग्लिसरॉल के अतिरिक्त अन्य पदार्थ जैसे फॉस्फोरस एवं नाइट्रोजन आदि के अणु भी पाये जाते हैं, संयुक्त या जटिल लिपिड्स कहलाते हैं। उदाहरण फास्फोलिपिड्स, ग्लाइकोलिपिड्स, अमीनोलिपिड्स, सल्फोलिपिड्स आदि ।

क्रियात्मक रूप से ये संरचनात्मक लिपिड्स (Structural lipids) होते हैं, जो जैव कलाओं (Biological membranes) की संरचना में प्रमुख रूप से भाग लेते हैं।

(स) व्युत्पन्न लिपिड्स (Derived Lipids) :- लिपिड्स सरल या संयुक्त लिपिड्स के जल अपघटन (Hydrolysis) से उत्पन्न होने वाले उत्पाद (Products) होत हैं।

उदाहरण – स्टेरॉइडस (लैंगिक हार्मोन, विटामिन-डी), स्टीरॉल्स (Sterols) जैसे कोलेस्टेरॉल तथा कैरोटीनाइहर जैसे कैरोटिन्स आदि। लगातार एवं अधिक मात्रा में वसा युक्त आहार लेने पर रुधिर में कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है और कुछ अन्य पदार्थों के साथ मिलकर यह रुधिर वाहिनियों के भीतरी स्तर पर एकत्रित हो जाता है। जिससे रुधिर परिसंचरण बाधित हो जाता है या रुक जाता है। जिससे हृदयाघात (Heart attack) की सेभावना बढ़ जाती है। (एथेरोस्क्लेरोसिस),

लिपिड्स के कार्य –

(1) ऊर्जा उत्पादन के लिये ये भी ईधन का कार्य करते है। ये काबर्बोहाइड्रेड एवं प्रोटीन की तुलना में दौगुनी से भी अधिक ऊर्जा देते हैं। प्रति ग्राम वसा से लगभग 9.3 किलो कैलोरी ऊर्जा मिलती है। इन्हें उर्जा के केंद्र भी कहते है।

(ii) कई लिपिड्स हार्मोन्स व विटामिन के संयोजन में भाग लेते है (स्टेरॉयड हार्मोन)

(iii) शरीर के ताप नियंत्रण और सुरक्षा में सहायता करते है।

(iv) सचित एवं आरक्षित भोजन (Reserve food) के रूप में कार्य करते हैं।

(v) कोशिकाओं व कोशिका अंगकों की बाहरी झिल्ली (Plasma membrane) के निर्माण में भाग लेते हैं।

(vi) वास्तविक वसाओं के साबुनीकरण से साबुन बनता है एवं ग्लिसरोल सहउत्पाद बनता है

(vii) बेहक (Lubricant) के रूप में कार्य करते हैं।

(viii) वसा शरीर के भार का लगभग 15% होती है।

शरीर भार सूचकांक (Body mass index: BMI) मानव भार व लम्बाई का अनुपात होता हैं। जब 25 किया / मी. के बीच हो तब मोटापा पूर्व स्थिति और जब ये 30 किग्रा / मी. से अधिक हो तब मोटापा होता है।

3. प्रोटीन

  • खोज मुलर,
  • नाम – बर्जीलियस
  • ‘प्रोटीन’ शब्द ग्रीक शब्द ‘प्रोटिओस’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘प्राथमिक अथवा अतिमहत्वपूर्ण’ । ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रोटीन वे जैव अणु हैं जो कोशिका के संरचनात्मक और कार्यात्मक भाग का निर्माण करते हैं, इन्हें हमारे शरीर के बिल्डिंग ब्लॉक भी कहते है।
  • जीव कोशिकाओं में उपस्थित कार्बनिक अणुओं में प्रोटीन अणु सर्वाधिक मात्रा में होते हैं।
  • एक जीवित कोशिका की औसत संरचना 70-80% पानी है, प्रोटीन 10-15% (प्रोटीन शरीर के भार का लगभग 14-17%), न्यूक्लिक एसिड 5-7%, कार्बोहाइड्रेट 3%, लिपिड 2%, आयन 1%
  • रासायनिक संयोजन के आधार पर ये कॉर्बन (C), हाइड्रोजन (H), ऑक्सीजन (O), एवं नाइट्रोजन (N) से बनें होते हैं। कई प्रोटीन्स में इन चार तत्वों के अलावा फॉस्फोरस (P), एवं सल्फर (S) भी पाये जाते हैं।
  • प्रोटीन्स अमीनो अम्ल से मिलकर बने बहुलक (विषम बहुलक) होते हैं। अर्थात् अमीनो अम्ल इनकी इकाई (Unit) या एकलक (Monomers) होते हैं।
  • 20 प्रकार के अमीनों अम्ल प्रोटीन संश्लेषण में भाग लेते है
  • जो ऐमीनो अम्ल शरीर में संश्लेषित हो सकते हैं उन्हें अनावश्यक ऐमीनो अम्ल (Trick – 15 letter
  • A,C,P,G) (10) कहते हैं जबकि वे ऐमीनो अम्ल जो शरीर में संश्लेषित नहीं हो सकते तथा जिनको भोजन में लेना आवश्यक है, आवश्यक ऐमीनो अम्ल (10) कहलाते हैं।
  • आवश्यक अमीनो एसिड में शामिल आर्जिनिन और हिस्टिडीन को अर्थआवश्यक अमीनो एसिड माना जाता है।
  • प्रोटीन निर्माण हेतु अमीनो अम्ल पेप्टाइड बन्धों द्वारा जुड़े रहते हैं अतः प्रोटीन को अमीनो अम्ल की पोलीपेप्टाइड श्रृंखला (Polypeptide chain of amino acids) कहते है।
  • प्रोटीन के प्रमुख स्रोत दूध, पनीर, दालें, मूँगफली, मछली तथा मांस आदि हैं।
  • सर्वाधिक प्रोटीन सोयाबीन (40-45%), मूंगफली में पाई जाती है।
  • एकल कोशिका प्रोटीन (SCP)-प्रोटीन प्रचुरता वाले सूक्ष्म जीव जिसका भोजन या चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है उसे एकल कोशिका प्रोटीन कहा जाता है।
  • उदाहरण-मशरूम, स्पिरुलिना (60-67% प्रोटीन), क्लोरेला शैवाल (63% & अन्तरिक्ष शैवाल)।
  • स्पिरुलिना पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकता है।

प्रोटीन परिक्षण – खाद्य पदार्थ की थोड़ी मात्रा परखनली में डालकर इसमें जल की 10-15 बूंदें डालो। अब परखनली में दो बूंद कॉपर सल्फेट का विलयन और दस बूँदें कास्टिक सोडे का विलयन डालकर इसे अच्छी तरह हिलाओ। कुछ समय उपरांत विलयन का रंग यदि बैंगनी हो जाता है तो खाद्य पदार्थ में प्रोटीन है।

कुछ महत्वपूर्ण प्रोटीन –

  • कोलेजन (Collagen) :- जन्तु शरीर में सर्वाधिक मात्रा में पायी जाने वाली प्रोटीन। कन्डरा, उपास्थि एवं अस्थियों में पाई जाती है (इलास्टिन भी)
  • रुबिस्को (RuBisCO):- हरित लवक में उपस्थित। पृथ्वी पर सर्वाधिक पायी जाने वाली प्रोटीन।
  • किरेटिन – नाखून, बालों, त्वचा, खुर एवं सींगो पाई जाती है
  • एक्टिन एवं मायोसीन – पेशियों में पाई जाती है
  • हिमोग्लोबिन, एल्ब्यूमिन, ग्लोब्युलिन, फाईब्रिन, थ्रोम्बिन, प्रोथ्रोम्बिन रक्त में
  • कैसिन – दुध में
  • हिस्टोन – DNA, RNA में

प्रोटीन के कार्य –

1. शरीर की वृद्धि व ऊतकों की मरम्मत के लिये आवश्यक होती है।

ii. शरीर की संरचना में भाग लेती है, शरीर का प्रत्येक भाग प्रोटीन का बना होती हैं।

iii. एन्जाइम्स के रूप में उपापचय क्रियाओं में उत्प्रेरक का कार्य करती है।

iv. एन्टीबॉडीज के रूप में शरीर की जीवाणुओं से रक्षा

v. पेशियों में संकुचनशीलता प्रदान करती हैं। (एक्टीन व मायोसीन)

vi. हार्मोन्स के रूप में जैविक क्रियाओं का नियमन

vii. गैसों का परिवहन (रक्त की हीमोग्लोबिन द्वारा)

viii. सींग, नाखून आदि की किरैटिन द्वारा सुरक्षा और आक्रमण के हथियार के रूप में।

ix. रुधिर का थक्का बनाती है।

x. कार्बोहाइड्रेट्स तथा वसाओं की कमी होने पर शरीर को ऊर्जा देते हैं। प्रति ग्राम प्रोटीन से लगभग 4-3 किलो कैलोरी ऊर्जा मिलती है।

  • प्रोटीन की कमी से होने वाला रोग – क्वाशियोरकर
  • प्रोटीन के साथ ऊर्जा (कार्बोहाइड्रेट) की कमी से होने वाला रोग – मैरेस्मस

4. विटामिन

  • खोज होपकिंस एवं लुनिन / फंक, शब्द फंक
  • विटामिन एक लैटीन भाषा का शब्द है (Vita-life, amine जीवन के लए आवश्यक)
  • विटामिन अल्प मात्रा में आवश्यकता कार्बनिक पदार्थ है जो ऊर्जा नही देते बल्कि शरीर को रोगो से बचाते एवं उपापचय क्रिया में मदद करते है।
  • जंतुओं में विटामिन का संश्लेष्ण नही होता (अपवाद – Vit. A यकृत एवं Vit. D त्वचा में बनते है) (आंत में कुछ बक्टेरिया विटामिन B₁₂ एवं K का संश्लेष्ण करते है)
  • एंटीऑक्सिडेंट्स – विटामिन C और E, बीटा कैरोटीन (विटामिन A) और कैरोटीनॉड्स हैं और खनिज में सबसे प्रचलित मैंगनीज और सेलेनियम होते हैं।
  • एंटीऑक्सिडेंट वे पदार्थ हैं जो फ्री रेडिकल्स (कोशिका से मुक्त कण) से होने वाली कोशिकाओं की क्षति को रोक सकते हैं या कभी-कभी धीमा कर सकते हैं।

विटामिन को 2 भागो में बांटा गया है

  • वसा में घुलनशील (K,E,D,A)
  • जल में घुलनशील (B,C)
  • विटामिन A के स्त्रोत – गाजर (बीटा केरोटिन), गोल्डन राइस (जेनेटिक इंजीनियरिंग से तैयार), पपीता, आम, मछलियों के यकृत के तेल मे इत्यादि
  • विटामिन A को ‘संक्रमण रोधी’, ‘कैंसर रोधी’ तथा ‘ Bright eye’ विटामिन भी कहते है।
  • चावल की पोलिशिंग से विटामिन B का क्षय होता।
  • विटामिन B की कमी से पेलेग्रा रोग (4D सिंड्रोम1. डरमेटाइटिस, 2. डायरिया, 3. डिमेसिया, 4. डेथ) हो जाता है
  • विटामिन B में कोबाल्ट धातु (Co) पाई जाती है।
  • सर्वप्रथम खोजा गया विटामिन – Vit. C
  • गर्म करने या फलों को धोने पर विटामिन C नष्ट हो जाता है।
  • विटामिन C खट्टे फलों जैसे निम्बू, संतरा, अमरुद (सबसे ज्यादा आंवला में), टमाटर एवं हरी मिर्च में पाया जाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक।
  • दुध में विटामिन C नही पाया जाता।
  • विटामिन C की कमी से मसूड़ों से खून आने लगता है।
  • लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए आयरन आवश्यक है जिनकी कमी से एनीमिया (अरक्तता) होता है। आयरन के अवशोषण के लिए विटामिन C की आवश्यकता होती है।
  • विटामिन D जाता है। को सनसाइन विटामिन भी कहते है क्योंकि सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में त्वचा द्वारा बनाया
  • कैल्सियम के अवशोषण के लिए विटामिन D की आवश्यकता होती है।
  • विटामिन D को हार्मोन के समान विटामिन माना जाता है।
  • मछली के कॉड लिवर तेल में मुख्यतः विटामिन D होता है।
  • विटामिन D की कमी से बच्चों में रिकेट्स (सुखा रोग) एवं व्यस्को में ऑस्टियोमलेशिया रोग हो जाता है।
  • विटामिन E को सुन्दरता का विटामिन भी कहते है।
  • विटामिन E जनन अंगो के विकास में सहायक है इसकी कमी से प्रजनन क्षमता में कमी आती है।
  • विटामिन K रक्त के थक्के जमाने में मदद करता है।
  • विटामिन K रक्तस्त्राव या हेमरेज से बचाता है इसलिए इसे एंटी हेमरेज विटामिन भी कहते है।

5. खनिज लवण –

  • हमारे शरीर के निर्माण, समुचित वृद्धि एवं विकास के लिए भोजन में निश्चित मात्रा में प्रतिदिन खनिज लवण ग्रहण करना भी आवश्यक है।
  • हमारे शरीर में पाए जाने वाले खनिज लवणों की संख्या लगभग 24 हैं।
  • यह अकार्बनिक पदार्थ है जिनसे शरीर को ऊर्जा नही मिलती है।
  • यह मुख्य रूप से शरीर के निर्माण, हार्मोन एवं जैव उत्प्रेरक (एंजाइम) निर्माण एवं शरीर नियन्त्रण में सहायक है
  • कुछ तत्व पौधों की वृद्धि एवं उपापचय के लिए नितांत रूप से अनिवार्य माने गए हैं। उनको आवश्यक मात्रा के आधार पर दो व्यापक श्रेणियों में बाँटा गया है (1) वृहत् पोषक (2) सूक्ष्म पोषक

(1) वृहत् पोषक पौधों के उत्तकों में इनकी मात्रा 0.2% से 4% तक पाई जाती है इस श्रेणी में आने वाले तत्व हैं- कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, फॉस्फोरस सल्फर, पोटैसियम, कैल्सियम और मैग्नेसियम ।

  • इनमें से कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन मुख्यतया CO₂ एवं H₂O से प्राप्त होते हैं जबकि दूसरे मृदा से खनिज के रूप में अवशोषित किए जाते हैं।

वृहत्त मात्रिक पोषकों को भी दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-

(अ) प्राथमिक पोषक तत्त्व / क्रांतिक तत्त्व : नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटैशियम

(ब) द्वितीयक पोषक तत्त्व: कैल्सियम, मैग्नीशियम एवं गंधक (S)

(2) सूक्ष्म पोषक

  • सूक्ष्म पोषकों अथवा लेशमात्रिक तत्वों की अनिवार्यता अत्यंत सूक्ष्म मात्रा में होती है (पादप ऊत्तकों में इनकी उपस्थिति 0.02% से भी कम होती है)।
  • इनके अंतर्गत लौह, मैग्रीज, तांबा, मोलिब्डेनम, जिंक, बोरोन, क्लोरीन और निकिल सम्मिलित है।
  • कोशिका के रचनात्मक तत्व हैं जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और नाइट्रोजन
  • पर्णहरित (chlorophyll) में मैग्नीसियम और एटीपी में फॉस्फोरस तत्व पाया जाता है
  • पोटैसियम की रंध्रों के खुलने और बंद होने में महत्वपूर्ण भूमिका है।
  • रक्त में लोहा (फेरस), हड्डियों एवं दांतों में कैलिसयम एवं फास्फोरस, विटामिन B₁₂ में कोबाल्ट, इन्सुलिन में जिंक, थायरोक्सिन में आयोडीन पाया जाता है।
  • सोडियम एवं पोटेशियम पेशियों के संकुचन एवं तंत्रिकीय आवेगों के संचरण में सहायक है।
  • लोहे की कमी से एनीमिया एवं आयोडीन की कमी से गलगंड / चेंघा (Goiter) रोग हो जाता है।

6. जल- 

  • जल हमारे शरीर के लिए बहुत ही आवश्यक अवयव है। हमारे शरीर का 70 प्रतिशत भाग जल है। जर शरीर में विलायक का कार्य करता है एवं शरीर के तापमान को नियन्त्रित रखते हुए हमारी कई बीमारियों से रखा भी करता है। शरीर में उपस्थित हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने में जल सहायता करता है।
  • शरीर के विभिन्न अंगों में जल की मात्रा भी अलग-अलग होती है (जैसे यकृत में 69 प्रतिशत और मांसपेशिके में 75 प्रतिशत)
  • हमें प्रतिदिन 2-3 लीटर पानी की आवश्यकता होती हैं।
  • तरबूज में 95 प्रतिशत तक जल उपस्थित होता है।

7. खाद्य रेशे / रफेज-

  • छिलके वाले अनाज, फल, गाजर, मूली, पालक, भिण्डी, सेम, बंदगोभी, पत्तागोभी आदि में सेल्यूलोज नामक रेशेदार पदार्थ पाए जाते हैं जिसे हम भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। इन रेशों को “रफेज” कहते हैं। यह शरीर को उर्जा प्रदान नही करते है।

हमारे शरीर में इन खाद्य रेशों के निम्नलिखित कार्य हैं-

  • रफेज भोज्य पदार्थों के पाचन में सहायता करते हैं परंतु ऊर्जा नहीं देते।
  • रफेज के कारण भोज्य पदार्थ आँतों से चिपकता नहीं है।
  • रफेज पाचन के दौरान उत्पन्न विषैले पदार्थों एवं जल को अवशोषित कर लेते हैं।
  • रेशे शरीर में से ग्लूकॉज को अवशोषित करते हैं, जिससे रक्त शर्करा नियंत्रित रहती हैं एवं डायबिटीज होने का खतरा कम होता है।
  • एक औसत वयस्क व्यक्ति को प्रतिदिन 2000-2800 (2700) कैलोरी ऊर्जा एवं कठिन परिश्रम करने वाले व्यक्ति को लगभग 3500-4000 कैलोरी की आवश्यकता होती है।

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