ताप एवं उष्मा, तापमापी, उष्मा संचरण

ऊष्मागतिकी – भौतिकी की वह शाखा है जिसमे ऊष्मा तथा ताप की अवधारणा एवं ऊष्मा के अन्य प्रकार की में अंतरा- रूपान्तरण का अध्ययन करते हैं

  • ताप या तापमान (Temperature) – वस्तु की उष्णता और शीतलता के माप को ताप कहते हैं।
  • ताप वस्तु की ऊष्मीय अवस्था का सूचक है। इसी के कारण ऊष्मा का स्थानान्तरण होता है। (सापेक्ष राशि)
  • ऊष्मीय ऊर्जा सदैव उच्च ताप की वस्तु से निम्न ताप की वस्तु में जाती है।

ऊष्मा (Heat) – ऊष्मा एक प्रकार की ऊर्जा है, जो दो वस्तुओं के बीच उनके तापान्तर के कारण एक वस्तु से दूसरी वस्तु में स्थानान्तरित होती है। स्थानान्तरण के समय ही ऊर्जा ऊष्मा कहलाती है।

  • किसी वस्तु को स्पर्श करने पर यदि ऊष्मा उस वस्तु से त्वचा की ओर प्रवाहित हो तो वस्तु गर्म, जबकि त्वचा से ३० की ओर प्रवाहित हो तो वस्तु ठंडी महसूस होती है।
  • वस्तु का ताप, वस्तु में ऊष्मा की मात्रा तथा वस्तु के पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है,
  • जबकि किसी वस्तु में निहित ऊष्मा उस वस्तु के द्रव्यमान व ताप पर निर्भर करती है।
  • ऊष्मा एक प्रकार की ऊर्जा है, जिसे कार्य में बदला जा सकता है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण सबसे पहले रमफोर्ड (Rurnford) ने दिया।
  • बाद में डेवी (Davy) ने बर्फ के दो टुकड़े को आपस में घिसकर पिघला दिया। चूंकि बर्फ को पिघलने के लिए ऊष्म का और कोई स्रोत नहीं था, अतः यह माना गया कि बर्फ को घिसने में किया कार्य बर्फ पिघलने के लिए ली गई आवश्यक ऊष्मा में बदल गया।
  • बाद में जूल (Joule) ने अपने प्रयोगों से इस बात की पुष्टि की कि “ऊष्मा ऊर्जा का ही एक रूप है।”
  • जूल ने बताया कि जब कभी कार्य ऊष्मा में बदलता है, या ऊष्मा कार्य में बदलती है, तो किए गए कार्य व उत्पन्न ऊष्मा का अनुपात एक स्थिरांक होता है, जिसे ऊष्मा का यांत्रिक तुल्यांक (Mechanical equivalent of Hex) कहते हैं तथा इसको ] से सूचित करते हैं।
  • यदि W कार्य करने से उत्पन्न ऊष्मा की मात्रा Q हो तो हैं- W = JQ
  • जहाँ J का मान 4186 जूल / किलोकैलोरी या 4.186 जूल / कैलोरी या 4.186 × 107 अर्ग / कैलोरी होता है।
  • इसका तात्पर्य हुआ कि यदि 4186 जूल का यांत्रिक कार्य किया जाए, तो उत्पन्न ऊष्मा की मात्रा 1 किलोकैलोरी होगे।
  • हथेलियो को रगडने पर गर्म होना, वाहनों में ब्रेक लगाने पर टायरों का गर्म होना
  • ऊष्मा का SI मात्रक जूल और CGS मात्रक कैलोरी है।
  • कैलोरी (Calorie): एक ग्राम जल का ताप 1°C बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को कैलोरी कहते हैं।

• 1 जूल= 0.24 कैलोरी

1 कैलोरो = 4.186 जूल

1 किलोकैलोरी = 4186 जूल

1 ब्रिटिश थर्मल यूनिट (BTU) = 252 कैलोरी

  • अंतर्राष्ट्रीय कैलोरी (International Calorie) – एक ग्राम जल का ताप 14.5°C से 15.5°C तक बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को अन्तर्राष्ट्रीय कैलोरी कहते हैं।
  • ब्रिटिश धर्मल यूनिट (BTU) – एक पौंड जल का ताप 1°F बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को 1 BTU कहते हैं।

तापमापी (Thermometer) – ताप मापने वाले यंत्र को तापमापी कहते हैं।

  • ताप मापन के लिए पदार्थ के किसी ऐसे गुण का प्रयोग किया जाता है, जो ताप पर निर्भर करता है, जैसे- द्रव के आयतन में प्रसार, गैस के आयतन में प्रसार, पदार्थ के विद्युत् प्रतिरोध में परिवर्तन आदि।
  • तापमापी कई प्रकार के होते हैं, जैसे- द्रव तापमापी, गैस तापमापी, प्लैटिनम प्रतिरोध तापमापी, तापयुग्म तापमापी, पूर्ण विकिरण तापमापी (Pyrometer) आदि

द्रव तापमापी (Liquid Thermometer) – 

  • सिद्धांत – तापमान परिवर्तन के साथ द्रव के आयतन में परिवर्तन पर आधारित होता है।
  • द्रव तापमापी में ऊष्मीय प्रसार (Thermal Expansion) के गुण का प्रयोग होता है।
  • द्रव तापमापी में मुख्य रूप से ऐल्कोहॉल या पारा का प्रयोग किया जाता है। ऐल्कोहॉल का प्रयोग उन तापमापियों में किया जाता है, जो -40°C से नीचे के ताप मापते हैं। ऐल्कोहॉल 114°C पर जमता है।
  • पारा-39°C पर जमता है और 357°C पर उबलने लगता है। इसीलिए पारे का तापमापी लगभग -40°C से 350°C तक के ताप को मापने के लिए प्रयुक्त होता है।
  • प्रयोगशाला तापमापी में -10°C से लेकर 110°C तक चिह्न लगे होते हैं। इसे तापमापी का परिसर या परास कहते हैं
  • डॉक्टरी तापमापी (Clinical Thermometer) – मानव शरीर के ताप में मापन लिए प्रयुक्त किये जाने वाले धर्मामीटर को क्लिनिकल थर्मामीटर कहते हैं। चूंकि मानव शरीर का ताप एक छोटे परिसर (short range) के बीच बदलता (vary) रहता है इसलिए इस थर्मामीटर में न्यूनतम बिन्दु 95°F (या 35°C) तथा उच्चतम बिन्दु 110°F (या 43°C) अंकित किया जाता है। इसमें पारा (Hg) प्रयोग किया जाता है।
  • विभंग (किंक): तापमापी में बल्ब के पास एक विभंग (किंक) होता है जो पारे के तल को नीचे जाने से रोकता है।

1. गैस तापमापी (Gas Thermometer) –

सिद्धांत – तापमान में परिवर्तन करने पर स्थिर आयतन पर गैस के दाब में परिवर्तन हो जाता है

  • स्थिर आयतन हाइड्रोजन गैस तापमापी से 500°C तक के ताप को मापा जा सकता है।
  • हाइड्रोजन की जगह नाइट्रोजन गैस लेने पर 1500°C तक के ताप को मापा जा सकता है।

3. प्लैटिनम प्रतिरोध तापमापी (Platinum Resistance Thermometer) –

सिद्धांत – किसी धातु के तार का विद्युत प्रतिरोध तार का ताप बढ़ाने पर बढ़ जाता है। इस विद्युत प्रतिरोध में हुए परिवर्तन को मापने के सिद्धांत पर यह तापमापी कार्य करता है। इसके द्वारा -200°C से 1200°C तक के ताप मापे जाते हैं।

4. ताप-युग्म तापमापी (Thermo-couple Thermometer) –

सिद्धांत – जब दो भिन्न-भिन्न धातुओं के तारों के सिरों को जोड़कर एक बन्द परिपथ बनाते हैं तथा इस परिपथ की संधियों (junctions) को अलग-अलग तापों पर रखते हैं, तो परिपथ में धारा बहने लगती है। इसे ताप विद्युत-धारा कहते हैं तथा इस प्रभाव को सीबेक प्रभाव कहते हैं।

  • इस प्रकार के तापमापी से -200°C से 1600°C तक के ताप को मापा जा सकता है। ताप-युग्म तापमापी सीबेक प्रभाव पर आधारित है।
  • अधिकतम तथा न्यूनतम तापमापी- मौसम की रिपोर्ट में दिए गए अधिकतम तथा न्यूनतम तापमान की जानकारी देने 5 के लिए इसका उपयोग किया जाता है।

6. वायुदाब तापमापी :- अति निम्न तापक्रम मापने के लिए उसका उपयोग होता है। ताप परास 0.71K – 120K

7. पूर्ण विकिरण उत्तापमापी (Total Radiation Pyrometer) –

इस तापमापी की सहायता से अत्यधिक ऊँचे एवं दूर स्थित वस्तुएँ जैसे सूर्य आदि के तापों की माप (पायरोमीटर) की जाती है। यह तापमापी स्टीफेन के नियम पर आधारित है, जिसके अनुसार उच्च ताप पर उसी वस्तु से उत्सर्जित विकिरण की मात्रा इसके परम ताप के चतुर्थ घात के अनुक्रमानुपाती होती है ExT किसी निश्चित समय में वस्तु द्वारा उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा की माप कर वस्तु के ताप की गणना कर ली जाती है। प्रायः 800°C से ऊँचे ताप ही इस तापमापी से मापे जाते हैं, इससे नीचे के ताप नहीं। इसका कारण यह है कि 800°C से कम ताप की वस्तुएँ ऊष्मीय विकिरण उत्सर्जित नहीं करती हैं।

ताप मापन के पैमाने (Scales of Temperature Measurement) –

  • ताप मापन के लिए हम दो बिन्दु निश्चित करते हैं। पिघलते हुए बर्फ के ताप को हिमांक (Ice Point) तथा पारे के 760 मिमी० दाब पर उबलते हुए शुद्ध जल के ताप को भाप बिन्दु (steam Point) कहते हैं।
  • कई प्रकार के ताप पैमाने प्रचलित रहे हैं, जैसे-सेल्सियस, फारेनहाइट, ट्यूमर, केल्विन, रैकाइन ताप पैमाना आदि।

(i) सेल्सियस पैमाना (Celcius Scale) – इसमें हिमांन को 0°C तथा भाप बिन्दु की 100°C अंकित किया जाता है तथा इनके बीच की दूरी को 100 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक भाग को 1°C (1 डिग्री सेल्सियस) कहते हैं। पहले सेल्सियस पैमाने को सेण्टीग्रेड पैमाना कहा जाता था।

(ii) फरेनहाइट पैमाना (Fahrenheit scale)- इसमें हिमांक को 32°F तथा भाप बिन्दु को 212°F अंकित किया जाता है तथा इनके बीच की दूरी को 180 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक भाग को 1°F कहते हैं।

(iii) रयूमर पैमाना (Reamur scale) – इसमें हिमांक को O°R तथा भाप बिन्दु को 80°R अंकित किया जाता है तथा इनके बीच की दूरी को 80 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक भाग को 1°R कहते हैं। आजकल इस पैमाने का प्रयोग प्रायः समाप्त हो गया है।

(iv) केल्विन पैमाना (Kelvinscale) – इसमें हिमांक को 273K तथा भाप बिन्दु को 373K अंकित किया जाता है और इनके बीच की दूरी को 100 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक भाग को 1K कहते हैं।

विभिन्न पैमानों में संबंध

(C-0)/100= (k-273)/100 = (F-32)/180 = (R-0)80

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