जीवों में जनन
एक कोशिकीय जीवों को छोड़कर कोई भी अमर नहीं है। प्रत्येक जीव की मृत्यु सुनिश्चित है। अतः जीव अपनी जाति के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए अपने समान एक छोटे से जीव (संतति) को जन्म देता है। संतति में वृद्धि होती है, उनमें परिपक्वता आती है तथा इसके बाद वह नयी संतति को जन्म देती है। जनन प्रजाती में एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी में निरंतरता, DNA (आनुवांशिक पदार्थ) के द्वारा बनाए रखती है।
- जनन की मूल घटना डी.एन.ए. (DNA) की प्रतिकृति बनाना है।
- इस प्रकार जन्म, वृद्धि तथा मृत्यु का चक्र चलता रहता है।
जीव के जन्म से उसकी प्राकृतिक मृत्यु तक का काल, उस जीव की जीवन अवधि को निरूपित करता है। - जीवन अवधि, जीव के आकर पर निर्भर नहीं करती, जैसे तोता एवं कौआ लगभग समान आकार के होकर भी तोते का औसत जीवन काल 140 वर्ष जबकि कौऐ का औसत जीवन काल 15 वर्ष होता है।
- मनुष्य, हाथी, घोडा 60-70 वर्ष, कछुआ 100-150 वर्ष, बरगद (राष्ट्रीय वृक्ष) 200-300 वर्ष । जनन 2 प्रकार का होता है A. अलैंगिक जनन, B. लैंगिक जनन
A. अलैंगिक जनन
- इस विधि में एकल जीव (जनक) संतति उत्पन्न करने की क्षमता रखता है।
- इसमें युग्मक निर्माण, निषेचन प्रक्रिया, युग्मनज निर्माण नही होते है।
- इसके परिणामस्वरूप जो संतति उत्पन्न होती है; वह आकारिकीय तथा आनुवंशिक रूप से अपने जनक के समान होती है, ऐसी संतति को क्लोन कहते हैं।
- अलैंगिक जनन सामान्य रूप से एक कोशिकीय जीवों, कुछ पादपों तथा कुछ साधारण जीवों में पाया जाता है।
- इसमें केवल समसूत्री विभाजन पाया जाता है अर्द्ध सूत्री विभाजन नही पाया जाता। गुणन (वृद्धि) तेजी से होती है।
- अलैंगिक जनन को कायिक जनन या कोरक जनन भी कहते है।
अलैंगिक जनन की विधियाँ –
इस प्रकार के अलैंगिक जनन में प्राणी स्वयं दो भागों में विभाजित हो जाता है एवं दोनों भाग दो स्वतन्त्र प्राणियों के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। यह विभाजन प्राणी के लिए अनुकूल वातावरण तथा तापमान, भोजन की उपलब्धता आदि में ही होता है। द्विविभाजन एककोशिकीय प्राणियों में होने वाली क्रिया है अतः इसमें सामान्य समसूत्री विभाजन की प्रत्येक अवस्था देखने को मिलती है।
जब प्राणी किसी भी दिशा से दो भागों में विभक्त हो जाये तो इसे साधारण द्विविभाजन कहते हैं। जैसे अमीबा में द्विविभाजन
परंतु, कुछ एककोशिक जीवों में शारीरिक संरचना अधिक संगठित होती है। उदाहरणतः कालाजार के रोगाणु, लेस्मानिया में कोशिका के एक सिरे पर कोड़े के समान सूक्ष्म संरचना होती है। ऐसे जीवों में द्विखंडन एक निर्धारित तल से होता है।
- लम्बवत द्विविभाजन (Longitudinal Binary Fission) यूग्लीना, ट्रिपैनोसोमा
- अनुप्रस्थ द्विविभाजन (Transverse Binary Fission) पैरामीशियम, प्लेनेरिया
- बहुविभाजन (Multiple Fission)- जब एक प्राणी स्वयं विभाजित होकर अनेक संतति प्राणियों के उत्पन्न करता है तो इसे बहुविभाजन कहते हैं। विषम परिस्थितियों में अमीबा अपने पादाभ संकुचित कर लेता है तथा अपने परिक्षेत्र में एक त्रिस्तरीय कठोर आवरण स्त्रावित करता है जिसे पुटी (सिस्ट) कहते हैं। इस परिघटना को पुटीभवन कहते हैं। अनुकूल परिस्थितियों के पुनरागमन पर पुटीकृत अमीबा बहुखंडन या बहुविभाजन द्वारा विभाजित होता है।
मलेरिया परजीवी, प्लैज्मोडियम जैसे अन्य एककोशिक जीव एक साथ अनेक संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाते हैं, जिसे बहुखंडन कहते हैं।
3. प्लाज्मोटरोमी (Plasmotomy) यह प्रजनन विधि प्रोटोजोआ संघ के बहुकेन्द्रकीय (Multinucleated) प्राणियों में देखने को मिलती है। इस विधि में कोशिका द्रव्य में विभाजन द्वारा प्राणी दो या अधिक पुत्री कोशिकाओं में विभाजित हो जाता है किन्तु केन्द्रक का विभाजन नहीं होता। कोशिका द्रव्य के साथ कुछ केन्द्रक प्रत्येक पुत्री कोशिका में आ जाते हैं। अब यह केन्द्रक विभाजित हो उतनी ही संख्या में हो जाते हैं जितने जनक कोशिका (Parent cell) में थे। उदाहरण के लिए ओपेलाइना आदि
मुकूलन (Budding)- इस विधि में प्राणी के शरीर पर एक कलिका (Bud) बन जाती है। जिसे मुकुल (Bud) कहते यह शरीर से अलग हो जाती है तो स्वतन्त्र प्राणी के रूप में जीवन निर्वाह करती है।
उदाहरण – बाह्य मुकुलन – यीस्ट, हाइड्रा,
आंतरिक मुकुलन -(स्पोंजिला) स्पंज में होता है, इसमें जैम्युल बनते हैं।
5 खण्डन (Fragmentation) सरल संरचना वाले बहुकोशिक जीवों में जनन की सरल विधि कार्य करती है। उदाहरणतः स्पाइरोगाइरा (शैवाल), हाइड्रा सामान्यतः विकसित होकर छोटे- -छोटे टुकड़ों में खंडित हो जाता है। यह टुकड़े अथवा खंड वृद्धि कर नए जीव (व्यष्टि) में विकसित हो जाते हैं।
हाइड्रा तथा प्लेनेरिया जैसे सरल प्राणियों को यदि कई टुकड़ों में काट दिया जाए तो प्रत्येक टुकड़ा विकसित होकर पूर्णजीव का निर्माण कर देता है। यह पुनरुद्भवन कहलाता है
बीजाणुजनन (Sporulation) अनेक सरल बहुकोशिक जीवों में भी विशिष्ट जनन 6 संरचनाएँ पाई जाती है। ब्रेड पर धागे के समान कुछ संरचनाएँ विकसित हुई। यह राइजोपस का कवक जाल है। ये जनन के भाग नहीं हैं। परंतु ऊर्ध्व तंतुओं पर सूक्ष्म गुच्छ (गोल) संरचनाएँ जनन में भाग लेती हैं। ये गुच्छ बीजाणुधानी है जिनमें विशेष कोशिकाएँ अथवा बीजाणु पाए जाते हैं। यह बीजाणु वृद्धि करके राइजोपस के नए जीव उत्पन्न करते हैं
- क्लेमाइडोमोनास शैवाल में चल बीजाणु (zoospore) पाए जाते है, फ्लैजिला उपस्थित पेनिसिलियम कवक में अचल बीजाणु (कोनिडिया) पाए जाते हैं, फ्लैजिला अनुपस्थित
- कायिक प्रवर्धन (Vegetative reproduction) ऐसे बहुत से पौधे हैं जिनमें कुछ भाग जैसे जड़, तना तथा पत्तियाँ उपयुक्त परिस्थितियों में विकसित होकर नया पौधा उत्पन्न करते हैं।
- कर्तन, कलम अथवा रोपण जैसी कृत्रिम कायिक प्रवर्धन की तकनीक का उपयोग कृषि में भी किया जाता है। कर्तन – गन्ना, गुलाब अथवा अंगूर (स्तम्भ द्वारा) निम्बू, अमरुद (जड़ द्वारा) इसके कुछ उदाहरण हैं।
- कायिक प्रवर्धन द्वारा उगाए गए पौधों में बीज द्वारा उगाए पौधों की अपेक्षा पुष्प एवं फल कम समय में लगने लगते हैं। यह पद्धति केला, संतरा, गुलाब एवं चमेली जैसे उन पौधों को उगाने के लिए उपयोगी है जो बीज उत्पन्न करने की क्षमता खो चुके हैं। कायिक प्रवर्धन का दूसरा लाभ यह भी है कि इस प्रकार उत्पन्न सभी पौधे आनुवांशिक रूप से जनक पौधे के समान होते हैं।
पादप के विभिन्न भागो द्वारा कायिक जनन-
- जड़ द्वारा – डहेलिया, शकरकंद में
- पत्तियों द्वारा – ब्रायोफिलम (पत्थरचट्टा), बिगोनिया में
- पत्र प्रकलिका (बुलबिल) अगेव में
- भूमिगत तने द्वारा आलू (कंद आँख), अदरक, हल्दी (प्रकन्द), प्याज, लहसुन (शल्क कंद), कोलोकेसिया, अरबी (घनकन्द)
8 ऊतक संवर्धन – ऊतक संवर्धन तकनीक में पौधे के ऊतक अथवा उसकी कोशिकाओं को पौधे के शीर्ष के वर्धमान भाग से पृथक कर नए पौधे उगाए जाते हैं। इन कोशिकाओं को कृत्रिम पोषक माध्यम में रखा जाता है जिससे कोशिकाएँ विभाजित होकर अनेक कोशिकाओं का छोटा समूह बनाती है जिसे कैलस कहते हैं। कैलस को वृद्धि एवं विभेदन के हार्मोन युक्त एक अन्य माध्यम में स्थानांतरित करते हैं। पौधे को फिर मिट्टी में रोप देते हैं जिससे कि वे वृद्धि कर विकसित पौधे बन जाते हैं।
ऊतक संवर्धन तकनीक द्वारा किसी एकल पौधे से अनेक पौधे संक्रमण मुक्त परिस्थितियों में उत्पन्न किए जा सकते हैं। इस तकनीक का उपयोग सामान्यतः सजावटी पौधों के संवर्धन में किया जाता है।
लैंगिक जनन
- इसमें नर एवं मादा दो जीव (जनक) मिलकर संतति उत्पन्न करते हैं।
- इसमें युग्मक निर्माण, निषेचन प्रक्रिया, युग्मनज निर्माण होते है।
- इसके परिणामस्वरूप जो संतति उत्पन्न होती है; वह अकारिकीय तथा आनुवंशिक रूप से अपने जनक के समान नहीं होती है।