जनन स्वास्थ्य
‘परिवार नियोजन’ (family planning) (अब परिवार कल्याण (family welfare)) कार्यक्रम की शुरुआत 1951 में हुई थी।
Amniocentesis जाँच से गर्भ में होने वाले विभिन्न आनुवांशिक विकार जैसे Down syndrome, haemophilia, sickle-cell anemia आदि की उपस्थिति का पता लगाया जाता है तथा भ्रूण की जीवितता को निर्धारित किया जाता है। इसके द्वारा गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिंग की जाँच इसका दुरुपयोग है एवं अवैध भी है।
- जनसंख्या के सांख्यिकीय अध्ययन को डेमोग्राफी/जनसांख्यिकी कहा जाता है
- हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है।
- जनसंख्या नियन्त्रण हेतु उपाय / गर्भ निरोधक विधियाँ-
अस्थाई विधियाँ
(1) प्राकृतिक विधियाँ
(2) रोध उपाय
(3) रासायनिक विधियों
(4) अन्तः गर्भाशयी युक्तियाँ (IUDS)
(5) गर्भनिरोधक गोलियां
(6) टीके एवं अंतरोंप
स्थाई विधियाँ – शल्य क्रियात्मक विधियाँ
1) प्राकृतिक विचियाँ – ये विधियाँ अंडाणु (ओवम) एवं शुक्राणु के संगम को रोकने के सिद्धांत पर कार्य करती हैं। इनमें से एक उपाय आवधिक संयम (Periodic abstinence) है जिसमें एक दंपति माहवारी चक्र के 10वें से 17वें दिन के बीच की अवधि के दौरान मैथुन से बचते हैं जिसे अंडोत्सर्जन की अपेक्षित अवधि मानते हैं। इस अवधि के दौरान निषेचन एवं गर्भधारण के अवसर बहुत अधिक होने के कारण इसे निषेच्य अवधि भी कहा जाता है। इस तरह से, इस दौरान मैथुन (सहवास) न करने पर गर्भाधान से बचा जा सकता है।
बाह्य स्खलन (Withdrawal) या अंतरित मैथुन (कोइटस इन्ट्रप्सन) एक अन्य विधि है जिसमें पुरुष साथी संभोग के दौरान वीर्य स्खलन से ठीक पहले स्त्री की योनि से अपना लिंग बाहर निकाल कर वीर्यसेचन से बच सकता है। स्तनपान अनार्तव (लैक्टेशनल एमेनोरिया) विधि भी इस तथ्य पर निर्भर करती है कि प्रसव के बाद, स्त्री द्वारा शिशु को भरपूर स्तनपान कराने के दौरान अंडोत्सर्ग और आर्तव चक्र शुरू नहीं होता है। यह अवधि 4-6 माह की होती है। गर्भधारण के अवसर लगभग शून्य होते हैं। यह विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा 6 माह की अवधि तक ही कारगर मानी गई है। चूँकि उपर्युक्त विधियों में किसी दवा या साधन का उपयोग नहीं होता, अतः इसके दुष्प्रभाव लगभग शून्य के बराबर हैं। हालाँकि, इसके असफल रहने की दर काफी अधिक है।
(1) रोध (बैरियर) विधियों के अंतर्गत रोधक साधनों के माध्यम से अंडाणु और शुक्राणु को भौतिक रूप से मिलने से रोका जाता है। इस प्रकार के उपाय पुरुष एवं स्त्री, दोनों के लिए उपलब्ध हैं। कंडोम (निरोध) आदि रोधक उपाय हैं जिन्हें पतली रबर या लेटेक्स से बनाया जाता है ताकि इस के उपयोग से पुरुष के लिंग या स्त्री की योनि एवं गर्भाशय ग्रीवा को संभोग से ठीक पहले, ढक दिया जाए और स्खलित शुक्राणु स्त्री के जननमार्ग में नहीं पहुँच सकें। इनका एकबार उपयोग करके फेंक दिया जाता है
डायाफ्रॉम, गर्भाशय ग्रीवा टोपी तथा वॉल्ट आदि भी रबर से बने रोधक उपाय है। जो स्त्री के जनन मार्ग में सहवास के पूर्व गर्भाशय ग्रीवा को ढकने के लिए लगाए जाते हैं। ये गर्भाशय ग्रीवा को ढक कर शुक्राणुओं के प्रवेश को रोककर गर्भाधान से छुटकारा दिलाते हैं। इन्हें पुनः इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके साथ ही इन रोधक साधनों के साथ- साथ शुक्राणुनाशक क्रीम, जेली एवं फोम (झाग) का प्रायः इस्तेमाल किया जाता है, जिससे इनकी गर्भनिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।
(3) रासायनिक विधियाँ (Chemical methods) इसमें वे रासायनिक गर्भनिरोधक शामिल किये जाते हैं, जिनमें शुक्राणुनाशक (spermicides) होते हैं। शुक्राणुनाशक ऐसे रसायन होते हैं जिनके संपर्क में आकर शुक्क्राणु मार / नष्ट कर दिये जाते हैं।
जैसे- जिंक सल्फेट, बोरिक अम्ल आदि।
4) अंतः गर्भाशयी युक्ति (इन्ट्रा यूट्राइन डिवाइस आई यू डी) जैसे कॉपर-टी, कॉपर-7 आदि। ये युक्तियाँ डॉक्टरों या (अनुभवी नर्सों द्वारा योनि मार्ग से गर्भाशय में लगाई जाती हैं। आई यू डी गर्भाशय के अंदर कॉपर का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (फैगोसाइटोसिस) बढ़ा देती हैं जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनकी निषेचन क्षमता को कम करती हैं।
(5) गर्भनिरोधक गोलियां (Birth control pills) – ये मुँह से tablets के रूप में ली जाती हैं (Oral contraceptives) और ये ‘गोलियों’ (pills) के नाम से लोकप्रिय हैं। ‘Mala D’ और ‘Mala N’ में progestogen और estrogen का संयोजन होता है। ये 21 दिन तक प्रतिदिन ली जाती हैं और इन्हें आर्तव चक्र (माहवारी) के प्रथम पाँच दिनों (जिनके दौरान रजोधर्म होता है), मुख्यतः पहले दिन से ही शुरू किया जाता है।
- Saheli’ नामक नई गर्भनिरोधक गोली जिसका निर्माण केंद्रीय औषध अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research Institute – CDRI) लखनऊ के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। यह एक गैर-स्टेरॉइडली सामग्री है। यह हफ्ते में एक बार ली जाने वाली गोली है।
- आपातकालिक गर्भनिरोधक उपाय मैथुन के 72 घंटे के भीतर ही प्रोजेस्टोजन या प्रोजेस्टोजन- एस्ट्रोजन संयोजनों का प्रयोग या आई यू डी के उपयोग को आपातकालिक गर्भनिरोधक के रूप में बहुत ही प्रभावी पाया गया है और इन्हें बलात्कार या सामान्य (लापरवाहीपूर्ण) असुरक्षित यौन संबंधों के कारण होने वाली संभावित सगर्भता से बचने के लिए लिया जा सकता है। “Unwanted-72′, ‘i-pill’, ‘ezy pill’ आदि आपातकालिक गर्भनिरोधक गोलियों के लोकप्रिय brands हैं।
(6) टीके (Injectables) और अंतरोंप (Implants) – स्त्रियों द्वारा प्रोजेस्टोजन अकेले या फिर एस्ट्रोजन के साथ इसका संयोजन भी टीके या त्वचा के नीचे अंतरॉप (इंप्लांट) के रूप में किया जा सकता है। इसके कार्य की विधि ठीक गर्भनिरोधक गोलियों की भाँति होती है तथा काफी लंबी अवधि के लिए प्रभावशाली होते हैं।
(7) शल्य क्रियात्मक विधियाँ (Surgical methods) / बंध्यकरण (Sterilisation) ये प्रायः उन लोगों के लिए सुझा जाती है, जिन्हें आगे सगर्भता नहीं चाहिए तथा वे इसे स्थाई विधि के रूप में (पुरुष/स्त्री में से एक) अपनाना चाहते हैं।
- शल्यक्रिया से युग्मक परिवहन रोक दिया जाता है, फलतः गर्भाधान नहीं होता है।
- बंध्यकरण प्रक्रिया को पुरुषों के लिए ‘शुक्रवाहक उच्छेदन (vasectomy), तथा स्त्रियों के लिए ‘डिंबवाहिनी (फेलोपियन नलिका) उच्छेदन (tubectomy)’ कहा जाता है।
- जनसाधारण इन क्रियाओं को ‘पुरुष या महिला नसबंदी के नाम से जानते हैं।
- सगर्भता का चिकित्सीय समापन (Medical Termination of Pregnancy – MTP)
- सगर्भता पूर्ण होने से पहले जानबूझ कर या स्वैच्छिक रूप से गर्भ के समापन को प्रेरित गर्भपात या चिकित्सीय सगर्भता समापन (MTP) कहते हैं।
- सन् 1971 में चिकित्सकीय गर्भ समापन कानून बनाया गया है (2017 संसोधन)
- In-vitro fertilisation – IVF में शरीर से बाहर लगभग शरीर के भीतर जैसी स्थितियों में निषेचन किया जाता है।
- यह test tube baby कार्यक्रम के नाम से जानी जाती है।
- प्रथम टेस्ट ट्यूब बेबी – Louise Brown