नियन्त्रण एवं समन्वय – अंतःस्रावी तंत्र (Endocrine system)
तंत्रिका तंत्र – विभिन्न अंगों के बीच एक बिन्दु दर बिंदु द्रुत समन्वय का कार्य करता है। तंत्रिकीय समन्वय काफी तेज लेकिन अल्प अवधि का होता है। तंत्रिका तंतुओं द्वारा शरीर की सभी कोशिकाओं का तंत्रिकायन नहीं होने के कारण कोशिकीय क्रियाओं के लिए तथा निरन्तर नियमन के लिए एक विशेष प्रकार के समन्वय की आवश्यकता होती है। यह कार्य हार्मोन द्वारा संपादित होता है। तंत्रिका तंत्र और अंतः स्त्रावी तंत्र मिलकर शरीर के क्रियात्मक कार्यों का समन्वय और नियंत्रण करते हैं। इन दोनों तंत्रों के सम्मिलित अध्ययन को न्यूरो एण्डोक्राइनोलॉजी (Neuro endocrinology) कहते हैं।
अन्तःस्रावी तंत्र का अध्ययन Endocrinology
- अन्तःस्रावी (Endocrine) शब्द ग्रीक भाषा के शब्द ऐन्डो (Endo = within) तथा क्राइनी (Krinein = to secrete) स्रावण करना से निर्मित हुआ है जिसका अभिप्नाय आन्तरिक स्रावण से है।
- अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा जिन रासायनिक यौगिकों का स्रावण किया जाता है उन्हें हॉर्मोन (Hormones) कहते हैं। हार्मोन सूक्ष्म मात्रा में उत्पन्न होने वाले अपोषक रसायन हैं जो अंतरकोशिकीय संदेशवाहक के रूप में कार्य करते हैं।
- हॉर्मोन ऐसे सक्रिय संदेशवाहक कार्बनिक पदार्थ हैं जो बाह्य एवं आन्तरिक उद्दीपन के कारण, अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से स्रावित होकर रुधिर के माध्यम से संचरित होकर विशिष्ट लक्ष्य अंगों या कोशिकाओं की कार्यिकी को प्रभावित करते हैं।
- ये ग्रन्थियाँ अपने स्राव को सीधे रुधिर में मुक्त करती हैं।
- अंतःस्रावी ग्रंथियों में नलिकाएं नहीं होती हैं अतः वे नलिकाविहीन ग्रंथियां कहलाती हैं > क्लॉड बरनार्ड (Claude Bernard) ने अन्तःस्रावण (Internal secretion) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया था।
- थॉमस एडिसन को अन्तःस्रावी विज्ञान का जनक (Father of endocrinology) कहा जाता है।
- स्टार्लिंग ने हार्मोन को उत्तेजक पदार्थ की संज्ञा दी। बैलिस एवं स्टार्लिंग ने 1903 में ग्रहणी की श्लेष्मिक कला की अन्तःस्रावी कोशिका से सबसे पहले हार्मोन प्राप्त किया जिसे सिक्रेटिन (Secretin) नाम दिया गया।
मानव शरीर में निम्न तीन प्रकार की ग्रंथियाँ (Glands) पायी जाती है –
1. बहिः स्रावी ग्रंथियाँ (Exocrine Glands) ये ग्रंथियाँ अपने स्राव को नलिकाओं द्वारा शरीर के विभिन्न भागों को पहुँचाती है। इसलिए इन्हें नलिका युक्त ग्रंथियाँ (Duct glands) भी कहते है। यह मुख्यतः एंजाइम का स्त्राव करती है। लेकराइमल, अश्रु ग्रंथि, स्वेद ग्रंथियाँ, तेल या सिबेसियस ग्रंथियाँ, सिरुमिनस ग्रंथियाँ (कान), लार ग्रंथियाँ, स्तन ग्रंथियाँ तथा यकृत आदि बहिःस्रावी ग्रन्थियाँ हैं।
एंजाइम प्रोटीन के बने होते है (अपवाद राइबोजाइम
सरल इन्जाइम
- वे केवल प्रोटीन के बने होते हैं
- प्रोटीन के बजाय आरएनए से बना एक एंजाइम है)। उदा. पेपिान, ट्रिप्पिन पैपाइन आदि।
संयुग्मित एन्जाइम (होली एन्जाइम)
- एंजाइम को जैव उत्प्रेरक भी कहते है।
- एंजाइम सक्रियण ऊर्जा को कम कर कार्य करता है।
- एंजाइम की खोज बुकनर (यीस्ट से जाइमेज एंजाइम) ने की एवं नाम कुहने ने दिया।
- स्वेद ग्रंथियाँ एक्राइन प्रकार की ग्रंथियाँ होती हैं जिनका स्रावी पदार्थ कोशिका झिल्ली से रिस रिस कर बाहर आता है। तेल या सिबेसियस ग्रंथियाँ होलोक्राइन प्रकार की होती हैं। जिनमें स्त्राव भर जाने पर ग्रंथि कोशिका टूट कर सावित पदार्थ के साथ ही बाहर चली जाती है।
- स्तन में कई नलिकाएँ मिलकर सह नलिकाएँ बनाती है। ये ग्रंथियाँ एपोक्राइन प्रकार की होती है।
2. अन्त: स्रावी ग्रंथियाँ (Endocrine glands)
- ये ग्रंथियाँ नलिका विहीन होती हैं।
- ये अपने स्राव को रक्त द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों तथा ऊतकों में पहुँचाती है। अन्तः स्रावी ग्रंथियों द्वारा जिन रासायनिक यौगिकों का स्राव किया जाता है उन्हें हार्मोन (Hormones) कहते है। जैसे पीयूष ग्रंथि, थायरोइड ग्रंथि, पैराथाइरॉयड ग्रंथि आदि ।
- रासायनिक दृष्टि से हारमोन्स अधिकतर प्रोटीन (जैसे इन्सुलिन) प्रकृति के होते हैं, तथा कुछ प्रोटीन के व्युत्पन्न (जैसे.
- थाइरॉक्सिन (अमीनो अम्ल)) या लिपिड रूप में स्टीराइड्स (जैसे- मिनरलोकॉट्रिकोइड्स, ग्लूकोकॉट्रिकोइड्स, टेस्टोस्टीरॉन, एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रॉन) होते है। स्टीराइड्स हारमोन्स का आधार पदार्थ कॉलेस्ट्रॉल होता है।
3. मिश्रित प्रथियों (Mixed glands)- इस प्रकार की पंथियों में बहिःस्रावी तथा अंतःस्रावी दोनों प्रकार की पंथियाँ होती है। तथा ये वाहिका युक्त होती है। जैसे- अग्याशय प्रेचि (Pancreas glands)।
मानव अंत: स्रावी तंत्र:-
- संगठित अन्तःस्रावी ग्रन्थि जहाँ हॉर्मोन उत्पादक कोशिकाएं गुच्छे में या उत्तक के रूप में उपस्थित होती है, उन्हें संगठित अंत: स्रावी ग्रन्थि कहते हैं।
- उदाहरण: पीयूष ग्रन्थि, पीनियल, पैराथॉयराइड, अग्नाशयय, वायमस, थॉयराइड, एड्रीनल, जनद (नर में वृषण और मादा में अंडाशय)
- असंगठित (विसरीत) अन्तःस्रावी पन्धि जहाँ हॉर्मोन उत्पादक कोशिकाएं वितरीत रूप से उपस्थित होती है। उन्हें असंगठित अथवा विसरीत अन्तःस्रावी पन्थि कहते हैं। उदाहरण: जठरान्त्र मार्ग, हृदय, यकृत, वृक्क
1. हाइपोथैलेमस –
- यह अग्र मस्तिष्क के डाइनसिफेलॉन का आधार भाग है।
- इसमें हार्मोन का उत्पादन करने वाली कई तंत्रिकास्रावी कोशिकाएं होती हैं जिन्हें न्यूक्ली कहते हैं
- हाइपोथैलेमस को मास्टर ऑफ मास्टर / हेडमास्टर / सर्वोच्च कमांडर ग्रन्थि भी कहते हैं।
- हाइपोथैलेमस से स्रावित होने वाले हॉर्मोन दो प्रकार के होते हैं-
(A) मोचक / प्रेरक हार्मोन (Releasing Hormones) यह पीयुष ग्रन्धि को स्त्राव करने के लिए प्रेरित करता है। हाइपोथैलेमस से निकलने वाला गोनेडोट्रोफिन मुक्तकारी हार्मोन (GnRH) के स्लाव पीयूष ग्रंथि में गोनेडोट्रोफिन हार्मोन के संश्लेषण एवं स्राव को प्रेरित करता है।
(B) निरोधी / संदमक हार्मोन (Inhibiting Hormones)
यह पीयुष ग्रन्थि के हार्मोन स्त्राव को रोकता है।
हाइपोथैलेमस से स्रवित सोमेटोस्टेटिन हार्मोन, पीयूष ग्रंथि से वृद्धि हार्मोन के स्राव का रोधक (GHIH) है। पश्च पीयूष ग्रंथि का तंत्रिकीय नियमन सीधे हाइपोथैलेमस के अधीन होता है।
2. पीयूष ग्रंथि (Pituitary Gland) –
- यह पंथि मटर के दाने के आकार की गुलाबी रंग की ग्रंचि है जो एक वृन्त (इंफन्डीवुलम) द्वारा हाइपोथैलेमस से जुड़ी रहती है। मानव में इसका व्यास लगभग 1.3 सेमी तथा वजन लगभग 0.5 ग्राम होता है।
- स्त्रियों में यह अपेक्षाकृत बड़े आकार की होती है।
- पीयूष ग्रंथि कपाल की स्फिनॉइड अस्थि के एक छिछले गर्त सैला टर्सिका (Sella turcica) में स्थित होती है। आंतरिकी के अनुसार पीयूष ग्रंथि एडिनोहाइपोफाइसिस और न्यूरोहाइपोफाइसिस नामक दो भागों में विभाजित होती है। एडिनोहाइपोफाईसिस दो भागों का बना होता है पार्स डिस्टेलिस और पार्स इंटरमीडिया।
- पार्स – डिस्टेलिस को साधारणतया अग्र पीयूष ग्रंथि कहते हैं जिससे वृद्धि हार्मोन या सोमेटोट्रोपिन (GH), प्रोलैक्टिन PRL) या मेमोट्रोपिन, थाइरॉइड प्रेरक हार्मोन (TSH) एड्रिनोकार्टिकोट्रॉफिक हार्मोन (ACTH) या कॉर्टिकोट्रोफिन, (
- ल्यूटीनाइजिंग हार्मोन (LH) और पुटिका प्रेरक हार्मोन (FSH) का स्राव करता है।
- पार्स इंटरमीडिया एक मात्र हार्मोन मेलेनोसाइट प्रेरक हार्मोन (MSH) या मेलेनोट्रोफिन का स्राव करता है। यद्यपि मानव में पार्स इंटरमीडिया (मध्यपिंड) पार्स डिस्टेलिस (दूरस्थ पिंड) में लगभग जुड़ा होता है।
- न्यूरोहाइपोफाइसिस (पार्स नर्वोसा) या पश्च पीयूष ग्रंथि, यह हाइपोथैलेमस द्वारा उत्पादित किए जाने वाले हार्मोन ऑक्सीटॉसिन और वेसोप्रेसिन का संग्रह और स्राव करती है। ये हार्मोन वास्तव में हाइपोथैलेमस द्वारा संश्लेषित होते हैं और तंत्रिकाक्ष होते हुए पश्च पीयूष ग्रंथि में पहुँचा दिए जाते हैं
- पीयूष ग्रंथि का उद्गम भ्रूण की एक्टोडर्म द्वारा होता है।
- इस ग्रंथि को मास्टर ग्रंथि कहते है।
- पीयूष ग्रंथि से स्रावित हार्मोन के अल्प स्त्राव एवं अति स्त्राव से होने वाले रोग –
एडिनोहाइपोफाइसिस द्वारा स्त्राव हार्मोन
1) सोमेटोट्रोपिक हार्मोन या वृद्धि हार्मोन (Somatotropic Hormone, STH or Growth hormone, GH). यह शरीर की वृद्धि का मुख्य प्रेरक है जो शरीर की अस्थियों व पेशियों के विकास तथा संयोजी ऊतकों की वृद्धि एवं कोशिका विभाजन को प्रोत्साहित करता है।
I. बौनापन (Dwarfism) – वृद्धि हार्मोन के अल्पस्राव से व्यक्ति बौना हो जाता है। ऐसे व्यक्ति प्रायः नपुंसक एवं बांझ होते हैं, जिनको मिजेट्स (Midgets) कहते हैं। ये व्यक्ति बुद्धि के विकास में सामान्य होते हैं। वयस्कों में इस कारण दुर्बलता तथा जनन क्षमता में कमी हो जाती है। इस बौने पन को ऐटीलिओसिस (Ateliosis) कहते है।
II. महाकायता (Gigantism) – वृद्धि हार्मोन से बाल्यकाल में अतिस्राव के कारण मनुष्य अधिक लम्बा या 7-8 फुट लम्बा हो जाता है क्योंकि हाथ-पैर की अस्थियाँ लम्बी हो जाती है।
III. अग्रातिकायता (Acromegaly) – वयस्क अवस्था में अति स्रवण से जबड़ों की हड्डियाँ लम्बी, गालों की अस्थियों उभरी हुई तथा हड्डियाँ लम्बाई की तुलना में अधिक चौड़ी होती है जिससे शरीर की वृद्धि अनुपातहीन और शरीर बेडौल व कुरूप हो जाता है। यह रोग अपातिकायता कहलाता है। कभी-कभी कशेरुक दण्ड झुक जाने के कारण कुबड़ा (Kyphosis) हो जाता है। कुबड़ा फ्लोराइड की अधिकता से भी हो सकता है।
IV. सिमण्ड रोग (Simmond’s Disease) – पूर्ण वृद्धि के बाद यदि वृद्धि हार्मोन का अल्प स्राव हो तो मनुष्य के ऊतक नष्ट होने शुरू हो जाते हैं, जिससे मनुष्य समय से पहले वृद्ध और अधिक कमजोर हो जाता है।
2) गोडोट्रोपिक हार्मोन (Gonadotropic Hormone GTH) ये हार्मोन नर व मादा में क्रमशः वृषण तथा अण्डाशयों को उत्तेजित करते हैं। ये नर व मादा जनन अंगों की परिपक्वता तथा क्रियाशीलता के लिए उत्तरदायी है। ये मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
(i) पुटिका प्रेरक हार्मोन (Follicle Stimulating Hormone, FSH)
- यह स्त्रियों में अण्डाशयी पुटिकाओं की वृद्धि, उनके परिपक्वन तथा मादा हॉर्मोन ऐस्ट्रोजन्स (Estrogens) के स्राव को उत्तेजित करता है। यह पुरुषों में शुक्र जनन नलिकाओं (Seminiferous tubules) की वृद्धि तथा शुक्राणु निर्माण को प्रेरित करता है। (ii) ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन या अन्तराली कोशिका प्रेरक हार्मोन (Luteinizing Hormones, LH or Interstitial
- Cell Stimulating Hormone, IGSH)- यह हार्मोन पुरुषों में वृषण की अंतराली या लीडिंग कोशिकाओं ( Interstitial cells or leydig’s cells) को प्रेरित कर एन्ड्रोजन अर्थात् नर हार्मोन स्राव को प्रेरित करता है। स्त्रियों में ग्राफीयन पुटिका के परिपक्वन, अण्डोत्सर्ग तथा कॉर्पस ल्युटियम के विकास को प्रेरित करता है। मादा में यह कॉपर्स ल्युटियम कोशिकाओं द्वारा प्रोजेस्टरोन हार्मोन के स्रावण को भी प्रेरित करता है।
3) थाइरॉइड उत्तेजक हॉर्मोन (Thyroid Stimulating Hormone, TSH) यह हॉर्मोन थाइरॉयड ग्रंथि की वृद्धि एवं नियमन का कार्य करता है।
> पीयूष ग्रन्थि पेरा थाइरॉयड ग्रन्थि पर नियंत्रण नहीं करती है।
4) ऍड्रिनो कॉर्टिको ट्रोपिक हॉर्मोन (Adrenocorticotropic Hormone, ACTH)- यह हॉर्मोन अधिवृक्क कोर्टस भाग की वृद्धि एवं उससे निकलने वाले हार्मोनों पर नियंत्रण करता है। पीयूष ग्रंथि के अग्र भाग से कॉर्टिकोट्रॉफ कोशिकाओं द्वारा इस हार्मोन का स्राव होता है। इसका स्राव हाइपोथैलेमस से स्रावित कॉर्टिकोट्रोपिन मोचक हार्मोन द्वारा प्रेरित होता है।
पीयूष ग्रन्धि अधिवृक्क मेड्यूला भाग को नियंत्रित नहीं करती है।
5 ) लैक्टोजेनिक ट्रॉपिक या प्रोलेक्टिन अथवा मैमोट्रॉपिक हार्मोन (Lactogenic tropico or Prolactin or Mammotropic Hormone, LTH) इस हॉर्मोन का स्राव पीयूष ग्रंथि की लैक्टोट्रॉफ कोशिकाओं द्वारा होता है। स्त्रियों में यह हॉर्मोन गर्भावस्था में स्तनों में वृद्धि करता है तथा शिशु जन्म के बाद दुग्ध का निर्माण करता है।
इसे दुग्धजनक (Lactogenic) हार्मोन भी कहते है।
6) मिलैनोसाइट प्रेरक हार्मोन (Melanocyte Stimulating Hormone, MSH) – इसे इन्टरमीडिन भी कहते है। क्योंकि यह हॉर्मोन पार्स इन्टरमीडिया द्वारा स्राव होता है। यह हार्मोन रंगा कोशिकाओं में मेलानिन के कणों को फैलाकर रंग को गहरा करता है।
- मानव में यह त्वचा पर तिल बनने तथा चकते बनने को प्रेरित करता है।
- मानव त्वचा का रंग मेलानिन वर्णक के कारण होता है।
न्यूरोहाइपोफाइसिस द्वारा स्त्राव हार्मोन
7) वेसोप्रेसिन या ऐन्टीडाईयूरेटिक हार्मोन (Vasopressin or Antidiuretic Hormone, ADH) – यह वृक्क नलिकाओं द्वारा जल के पुनः अवशोषण (Reabsorption) को बढ़ाता है, इसलिए इसकों मूत्र विरोधी हॉर्मोन (Antidiuretic Hormone) भी कहते है।
- इसकी कमी से मूत्र के साथ जल की अत्यधिक मात्रा रहने के कारण मूत्र पतला तथा रुधिर गाढ़ा हो जाता है। इसको मूत्रलता (Diuresis) कहते हैं। इस कारण व्यक्ति मूत्र की अत्यधिक मात्रा का उर्त्सजन करता है जिसे डायबिटीज इन्सिपिड्स (Diabetes insipidus) कहते हैं।
8) आक्सीटोसिन (Oxytocin) या पोटोसीन (Pitocin) यह हॉर्मोन स्त्रियों में गर्भावस्था के अंतिम काल में गर्भाशय की दीवार की अनैच्छिक पेशियों के संकुचन को प्रेरित करता है, जिससे प्रसव के समय प्रसव पीड़ा उत्पन्न कर शिशु जन्म में सहायक होता है। प्रसव के पश्चात् यह गर्भाशय की दीवार को पुनः सामान्य बनाने में सहायक होता है। इस हार्मोन द्वारा प्रसव के पश्चात् स्त्रियों में स्तन ग्रंथियों द्वारा दुग्ध निष्कासन को भी प्रेरित किया जाता है। शिशु मे मातृत्व प्रेम के कारण इसे लव हार्मोन भी कहते है।
3. पीनियल काय (Pineal Body) –
- पीनियल ग्रंथि अग्र मस्तिष्क के पृष्ठीय (ऊपरी) भाग में स्थित होती है। सबसे छोटी अंतः स्त्रावी ग्रन्थि है (पीनियल 15 ग्राम जबकि पीयूष .5 ग्राम)
- यह पीनियल ग्रंथि मेलेटोनिन हार्मोन स्रावित करती है।
- मेलेटोनिन हमारे शरीर की दैनिक लय (24 घंटे) के नियमन का एक महत्वपूर्ण कार्य करता है।
- उदाहरण के लिए यह सोने-जागने के चक्र एवं शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करता है। इन सबके अतिरिक्त, मेलेटोनिन उपापचय, वर्णकता, मासिक (आर्तव) चक्र प्रतिरक्षा क्षमता को भी प्रभावित करता है।
- इसे जैविक घड़ी (Biological Clock), शरीर की आत्मा एवं तीसरी आँख कहते है।
- तेज प्रकाश में इसका स्राव कम होता है तथा मंद प्रकाश या अंधकार में इस हॉर्मोन का स्राव अधिक होता है।
- स्तनियों में यह हार्मोन लैगिंक व्यवहार का नियन्त्रण करता है। यह लैंगिक उत्तेजना को रोकता है। यह जननांगों के विकास में देरी व इनके कार्य का अवरोधन (inhibition) करता है।
- इस ग्रन्थि को मनुष्य आदि में निकाल देने से यौवनावस्था जल्दी आ जाती है।
- जन्मान्ध शिशुओं में तथा तीव्र प्रकाश में रहने वाले बच्चों में इस हार्मोन की कमी से यौवनावस्था शीघ्र आ जाती है। “एम्फिबीया” तथा “रेप्टाइल्स” में यह हार्मोन त्वचा के रंग बदलने (मेटाक्रोसिस) से सम्बन्धित होता है। यह त्वचा के मिलेनोफोर्स को प्रभावित करके पीयूष ग्रन्थि के MSH हार्मोन के विपरित कार्य करता है, यह त्वचा के रंग को हल्का करता है।
- मनुष्य में पीनियल काय लगभग 7 या 8 वर्ष की आयु में नष्ट होना प्रारम्भ हो जाती है और 14 वर्ष की उम्र में इसमें अंतराली उत्तक और CaCO3, या Ca3(PO4)2 के कण जमा हो जाते है। इन्हें ” मस्तिष्क की रेत” (Brain sand) कहते है।
4. थाइरॉइड ग्रन्थि या अवटुग्रंथि (Thyroid Gland) –
- थाइरॉइड ग्रंथि श्वास नली के दोनों ओर स्थित दो पालियों से बनी होती है
- यह ग्रंथि द्विपालित “H” आकार की प्रतीत होती है।
- इसका रंग गुलाबी होता है।
- यह सबसे बड़ी अन्तःस्रावी ग्रंथि है।
- वयस्क मनुष्य में ग्रंथि लगभग 5 सेमी लम्बी और 3 सेमी चौड़ी होती है।
- इसका भार औसतन 25 ग्राम होता है तथा पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में कुछ बड़ी होती है।
- इस ग्रंथि द्वारा मुख्यतः तीन हार्मोन्स का स्राव किया जाता है
a. थायरॉक्सिन या टेट्राआयोडोथाइरोनिन (Thyroxin or Tetraiodothyronine) इसकी कुल मात्रा 65 से 90% होता है। तक होती है। इसका निर्माण आयोडीन व टायरोसिन के द्वारा होता है यह अपेक्षाकृत कम सक्रिय यह Basal Metabolic Rate (BMR) तथा हृदय स्पंदन दर को बढ़ाता है। इसकी मेंढक के टेडपोल (लार्वा) को वयस्क में कायान्तरण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
b . ट्राइआयोडोथाइरोनिन (Tri-iodothyronine, T3) यह आयोडीन युक्त हार्मोन है यह T4 की तुलना में अत्यधिक सक्रिय व शक्तिशाली होता है। यह कुल हार्मोन का 10% भाग बनाता है T3 व 14 को सम्मिलित रूप से थायरॉइड हार्मोन कहते है।
c. कैल्सिटोनिन (Calcitonin) थायरॉइड ग्रंथि की “C” कोशिकाएँ इस हार्मोन का निर्माण करती हैं। इस हार्मोन द्वारा मूत्र में कैल्शियम के उत्सर्जन में वृद्धि तथा अस्थियों के विघटन को कम करने का कार्य किया जाता है।
इस प्रकार यह हॉर्मोन पैराथायरॉइड ग्रंथि के पैराथार्मोन के विपरीत कार्य करता है।
थायरॉइड सम्बन्धी रोग –
- थायरॉक्सिन हार्मोन के अल्प स्रावण के कारण मनुष्य में निम्नलिखित रोग हो जाते हैं-
1. अवटुवामनता या जड़मानवता (Cretinism) बचपन में थायरॉक्सिन की कमी से यह रोग होता है। इस रोग में शारीरिक व मानसिक वृद्धि मंद हो जाती है। हाथ-पांव बैडोल हो जाते है। बच्चे बौने रह जाते हैं इनकी आधारी उपापचयी दर में कमी हो जाती है। ऐसे बच्चों को क्रेटिन्स (Cretins) कहते है। इनके जननांग भी विकसित नहीं होते। ये बेध्य होते हैं।
2. अवटुअल्पक्रियता या मिक्सिडिमा (Myxedema) – यह रोग प्रौढ व्यक्तियों में थायरॉक्सिन के अल्प स्रावण से
होता है। इस रोग में जड़मानवता के साथ त्वचा का मोटा होना, बालों का झड़ना, स्मरण शक्ति कमजोर होना, त्वचा पीली होना और जनन क्षमता कम हो जाती है।
3. सामान्य चेंचा या गलगण्ड (Goiter) – इस रोग में थाइरॉयड ग्रंथि बड़ी होकर फूल जाती है जिससे गर्दन भी फूलकर मोटी हो जाती है। यह रोग भोजन में आयोडीन की कमी कारण होता है। प्रायः पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में यह रोग अधिक होता है क्योंकि वहाँ पानी में आयोडीन की कमी होती है।
4. हाशीमोटो का रोग (Hashimoto’s Disease) – यह रोग अल्पस्राव के उपचार में ली जाने वाली औषधि, जो एन्टीजन की तरह पहचानी जाती है, के विरुद्ध शरीर में ऐन्टीबॉडी बनने के कारण होता है। ये एंटीबॉडी थायरॉइड ग्रंथि को नष्ट कर देती है। इसे थायरॉइड की आत्महत्या (Suicide of thyroid) भी कहते है। अतः यह एक स्वप्रतिरक्षित रोग है।
- अल्प स्राव वाली सभी बीमारियों को भोजन में आयोडीन की मात्रा बढ़ाने से ठीक किया जा सकता है।
- थायरॉइड ग्रंथि द्वारा थायरॉक्सिन हार्मोन के अधिक स्राव के कारण उपापचय क्रियाओं की दर में वृद्धि, हृदय की गति बढ़ना, स्वभाव चिड़चिड़ा होना, शरीर से पसीना अधिक आना तथा हाथ-पाँवों में कम्पकम्पाहट जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते है।
अतिस्राव से निम्न रोग हो जाते हैं-
1. नेत्रोत्सेंधी गलगण्ड (Exophthalmic Goiter) – इस रोग में व्यक्ति के नेत्र गोलक के नीचे श्लेष्म जमा हो जाता है और नेत्र गोलक बाहर की ओर आ जाते हैं। इस प्रकार के रोग को नेत्रोत्सेंधी गलगण्ड कहते है। ऐसे व्यक्ति की दृष्टि डरावनी, घूरती हुई सी (Staring) होती है। इसमें ग्रंथि के फूल जाने की अवस्था को ग्रेवी का रोग कहते हैं
2. प्लूमर रोग – थायरॉइड् ग्रंथि में जगह-जगह गांठें बन जाये तो यह प्लूमर रोग कहलाता है।
5. पैराथायरॉइड ग्रंथि (Parathyroid Gland)
- मानव में चार पैराथाइरॉइड ग्रंथियाँ, थाइरॉइड ग्रंथि की पश्च सतह पर स्थित होती है। थाइरॉइड ग्रंथि की दो पालियों पर प्रत्येक में एक जोड़ी पैराथाइरॉइड ग्रंथियाँ पाई जाती हैं।
- पैराथायरॉइड ग्रंथि द्वारा पैराथार्मोन का स्राव किया जाता है। जिसे कॉलिप का हॉर्मोन भी कहते है। पैराचार्मोन के कार्य- इस हॉर्मोन द्वारा फॉस्फेट के उत्सर्जन में वृद्धि, वृक्क तथा आंत्र द्वारा क्रमशः कैल्शियम के पुनः अवशोषण में वृद्धि की जाती है। यह रक्त में कैल्शियम व फॉस्फेट आयन्स का नियमन करता है। यह अस्थियों पर कार्य कर अस्थि अवशोषण (विघटन/विखनिजन) प्रक्रम में सहायता करता है।
- यह विटामिन “D” के निर्माण में सहायता करता है।
- बाल्यावस्था में पैराथॉर्मोन की कमी से रुधिर में Ca की मात्रा में कमी व फॉस्फेट की मात्रा में वृद्धि होती है इससे तंत्रिका एवं पेशी क्रिया में अनायास वृद्धि होने से माँसपेशियों में जकड़न एवं ऐंठन के दौरे पड़ने लगते है। इसे हाइपोकैल्सीमिक टिटेनी (Hypocalcemic tetany) कहते है।
- पैराचॉर्मोन के अतिस्रावण सम्बन्धी रोग इसके अतिस्रावण से कैल्शियम विघटित होकर अस्थियों से रक्त में आ जाता है। इसे हाइपरकैल्सीमिया (Hypercalcimia) कहते है। इससें अस्थियाँ भंगुर, कोमल व खोखली हो जाती है।
- इस रोग को ओस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) रोग कहते है।
- Ca” आयनों की अधिकता से वृक्कों (kidney) में पथरी (stone) बनने लग जाती है।
6. थाइमस ग्रंथि (Thymus Gland))
- यह ग्रंथि हृदय के ठीक आगे
- ट्रेकिया के समीप स्थित होती है।
- यह नवजात शिशु में आकार मे बड़ी तथा यौवनावस्था के पश्चात् इसके आकार में लगातार ह्रास होता जाता है।
- वृद्धावस्था में यह तंतु के समान डोरी रुप में ही रह जाती है।
- थाइमस ग्रंथि द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन थाइमोसिन (Thymosin) कहलाता है।
- थाइमोसिन टी-लिंफोसाइट्स के विभेदीकरण में मुख्य भूमिका निभाते हैं जो कोशिका माध्य प्रतिरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त थाइमोसिन तरल प्रतिरक्षा (humoral immunity) के लिए प्रतिजैविक के उत्पादन को भी प्रेरित करते हैं। इस ग्रंथि को प्रतिरक्षा का प्रमुख अंग तथा T- लिम्फोसाइट्स का प्रशिक्षण केन्द्र कहा जाता है। बढ़ती उम्र के साथ थाइमस का अपघटन होने लगता है, फलस्वरूप थाइमोसिन का उत्पादन घट जाता है। इसी के परिणामस्वरूप वृद्धों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कमजोर पड़ जाती है
- यह जनन ग्रंथियों के परिपक्वन मे भी सहायक है।
7. अग्नाशय (Pancreas)
- उदर गुहा में आमाशय के पीछे (Curve of duodenum) स्थित अग्नाशय ग्रन्थि हल्की गुलाबी रंग की होती है। यह एक मिश्रित ग्रन्थि होती है।
- पेन्कियास या अग्नाशय में पाचक एन्जाइम स्त्रावित करने वाली ऐसिनाई (Acini) पायी जाती है। जो ग्रन्थि का 99% भाग बनाती है बहीं स्त्रावी (Exocrine) प्रकृति की होती है।
- इन्हीं के बीच में बिखरी हुयी अंसख्य सूक्ष्म अन्तःस्त्रावी (Endocrine) ग्रन्थियां पायी जाती है। जिन्हे ” लैंगर हँस के द्वीप समूह” कहते है। जो लगभग 10 से 20 लाख होती है। यह ग्रन्थि का लगभग 1% भाग बनाती है। इनकी खोज लैंगर हैन्स ने की थी।
- प्रत्येक लैंगर हैंस द्वीप में मुख्य रूप से निम्न कोशिकाएं होती है-
(a) अल्फा (a) कोशिकाएं ये “ग्लुकाॉन” (glucogon) हार्मोन स्त्रावित करती हैं।
- ग्लूकागॉन हार्मोन ग्लाइकोजन को ग्लूकोज में बदलता है।
(b ) बीटा (B) कोशिकाएं ये “इन्सुलिन” (Insulin) हार्मोन स्त्रावित करती हैं।
- बैटिंग व बेस्ट ने 1921 में सर्वप्रथम इन्सुलिन को प्राप्त किया।
- वैज्ञानिक सेंगर (1953) ने इसकी प्रोटीन संरचना की खोज की इसके लिए उन्हें 1958 में नोबल पुरस्कार दिया गया
- इन्सुलिन में जिंक (Zn) धातु होती है > इन्सुलिन हार्मोन ग्लूकोज को ग्लाइकोजन में बदलता है।
- इन्सुलिन की अल्पता से रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है (हाइपरग्लाइसीमिया), जिससे मधुमेह (डायबिटीज मेलीटस) रोग हो जाता है। इसके फलस्वरूप मूत्र के साथ ग्लूकोज उत्सर्जित होता है जिसे ग्लाइकोसुरिया कहते है। > मधुमेह मनुष्य में आनुवंशिक भी होता है।
- इन्सुलिन के अतिस्राव से रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा धीरे-धीरे कम होने लगती है। इस अवस्था को हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycaemia) कहा जाता है। इस स्थिति में शरीर की कोशिकाएं रुधिर से अधिक मात्रा में ग्लूकोज ग्रहण करने लगती है। रोगी थकावट महसूस करता है, देखने की शक्ति कम होने लगती है, शरीर में ऐंठन होना इसका प्रमुख लक्षण है।
- ग्लूकागॉन और इन्सुलिन हार्मोन रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करते है।
(c) गामा (y) या डेल्टा (8) कोशिकाएं ये “सोमेटोस्टेटिन” हॉर्मोन का स्राव करती हैं। यह हॉर्मोन इन्सुलिन तथा ग्लूकेगॉन के स्राव में निरोधक की भाँति कार्य करता है।
8. अधिवृक्क प्रथि (Adrenal gland))
- प्रत्येक वृक्क के अग्र सिरे पर एक टोपीनुमा, पीले भूरे रंग की अधिवृक्क ग्रंथि स्थित रहती है।
- इन ग्रंथियों का निर्माण भ्रूण की मीजोडर्म एवं एक्टोडर्म द्वारा होता है।
- इसका बाहरी भाग वल्कुट (Cortex) तथा आंतरिक भाग मध्यांश (Medulla) कहलाता है।
- इसे जीवन की बुद्धिमानी तथा जीवन रक्षक ग्रन्थि भी कहते हैं।
अधिवृक्क वल्कुट द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन (Hormones Secreted by Adrenal Cortex)
1. मिनरैलो कॉर्टिकॉयड्स (Mineralocorticoids) – ये हॉर्मोन रुधिर तथा वृक्क में खनिज आयनों की सान्द्रता का नियमन करते हैं। इनमें सबसे मुख्य ऐल्डोस्टेरोन (Aldosterone) है। इस हॉर्मोन के द्वारा वृक्क नलिकाओं में Na* तथा CI आयनों के अवशोषण तथा K आयनों के उत्सर्जन में वृद्धि की जाती है।
2. ग्लूकोकॉर्टिकॉयड्स (Glucocorticoids)- इसके प्रमुख हार्मोन कॉर्टिसॉल (Cortisol) एवं कॉर्टिसोन (Cortisone) होते हैं। इन हॉर्मोन्स के द्वारा कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा प्रोटीन के उपापचय को नियंत्रित किया जाता है ये रुधिर में ग्लूकोज, वसीय अम्लों तथा ऐमीनो अम्लों की मात्रा बढ़ाते है। ये यकृत में ग्लाइकोजिनेसिस, ग्लूकोनिओजिनेसिस तथा यूरीओजिनेसिस को प्रेरित करते हैं।
- ये किसी ऊतक में संक्रमण होने पर प्रतिरक्षी पदार्थ (Antibodies) के बनने की क्रिया को रोकते हैं। अतः ये प्रतिरक्षी निषेधात्मक (Immune suppressive) होते है। इसके अतिरिक्त अंगों के प्रत्यारोपण को सफल बनाने हेतु उपयोगी है। ये प्रदाहरोधी (Anti-inflammatory) प्रकृति के होते है। इनका उपयोग गठिया, दमा इत्यादि के उपचार में किया जाता है।
3. लिंग हॉर्मोन्स (Sex Hormones)- अधिवृक्क वल्कुट से तीन प्रकार के लिंग हॉर्मोन्स ऐन्ड्रोजन, ऐस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टरॉन की थोड़ी-थोड़ी मात्रा का स्राव किया जाता है।
• स्त्रियों में इस हॉर्मोन की अधिकता से पुरुषों जैसे लक्षण (चेहरे पर बाल बढ़ने लगते है) इस रोग को दीर्घलोपता (Hirsutism) या एंड्रीनल विरिलिज्म कहते है।
गाइनीकोमैस्टिया (Gynaecomastia) पुरुषों में महिलाओं जेसे लक्षण आना।
- ऐडीसन का रोग (Addison’s Disease) ऐड्रीनल कार्टेक्स हार्मोन के अल्पस्त्राव से सोडियम व जल की काफी मात्रा मूत्र के साथ उत्सर्जित होने से शरीर का निर्जलीकरण हो जाता है। रुधिर दाब अत्यधिक घट जाता है। त्वचा कॉस्य वर्ण (Bronzing) हो जाती है। रोगी की पेशियों व मस्तिष्क कमजोर तथा शरीर ताप कम हो जाता है। व्यक्ति में भूख में कमी, मितली व घबराहट होने लगती है। अन्त में रोगी की मौत हो सकती है। अधिवृक्क ग्रंथि के हॉर्मोन जीवन रक्षक (Life saving) हॉर्मोन का कार्य करते हैं।
- कॉन्स रोग (Conn’s Disease) – यह रोग मिनेरेलो कॉर्टिकॉयड्स की अधिकता से उत्पन्न होता है।
अधिवृक्क मध्यांश द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन (Hormones Secreted by Adrenal medulla)
• अधिवृक्क मध्यांश दो प्रकार के हार्मोन का स्राव करता है जिन्हें एड्रिनलीन या एपिनेफ्रीन और नॉरऍड्रिनलीन या नारएपिनेफ्रीन कहते हैं। इन्हें सम्मिलित रूप में कैटेकॉलमीनस कहते हैं।
- एड्रिनलीन और नॉरएड्रिनलीन किसी भी प्रकार के दबाव या आपातकालीन स्थिति में अधिकता में तेजी से स्रावित होते हैं, इसी कारण ये आपातकालीन हार्मोन या युद्ध हार्मोन या फ्लाइट हार्मोन कहलाते हैं।इसके द्वारा विपत्ति एवं संकट काल के समय तीन प्रकार की अनुक्रियायें उत्पन्न हो सकती है। इनमें भय (Fear), संघर्ष (Fight) तथा पलायन (Flight) व्यवहार शामिल है। अतः अधिवृक्क मध्यांश (Adrenal medulla) को 3F पंथि भी कहते हैं।
- अधिवृक्क ग्रंथि विपत्ति प्रतिक्रिया (Stress), शर्करा (Sugar) व लवण (Salt) उपापचय तथा लैंगिक विकास सम्बन्धी क्रियाओं (Sex related processes) का नियंत्रण करती है। अतः यह ग्रंथि 45 ग्रंथि भी कहलाती है।
- ये हार्मोन सक्रियता (तेजी), आँखों की पुतलियों के फैलाव, रोंगटे खड़े होना, पसीना आदि को बढ़ाते हैं। दोनों हार्मोन हृदय की धड़कन, हृदय संकुचन की क्षमता और श्वसन दर को बढ़ाते हैं। कैटेकोलएमीन, ग्लाइकोजन के विखंडन को भी प्रेरित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। साथ ही ये लिपिड और प्रोटीन के विखंडन को भी प्रेरित करते हैं।
9. वृषण (Testes)
- वृषण एक नर जनद पंथि (Gonad Gland) है।
- पुरुषों में एक जोड़ी वृषण उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में स्थित होते हैं।
- नर में वृषण (Testes) की अंतराली कोशिकाएँ या लीडिंग कोशिकाएँ अन्तः स्रावी प्रकृति की होती है।
- अंतराली कोशिकाओं के द्वारा नर हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन (एंड्रोजन) जो कि स्टेरॉयड हार्मोन है, का स्राव होता है।
- इन हार्मोनों पर नियन्त्रण पीयूष ग्रंथि के LH या ICSH के द्वारा होता है।
- एंड्रोजेन केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर कार्य कर नर लैंगिक व्यवहार (लिबिडो) को प्रभावित करता है। > ऐन्ड्रोजन हॉर्मोन नर में द्वितीयक लैंगिक लक्षण के विकास हेतु जिम्मेदार होते है। इनके द्वारा नर में वृषण कोष, मूंछ आना, भारी आवाज होना, शरीर पर बालों का होना तथा मैथुन इच्छा का विकास होना आदि कार्य सम्पादित किये जाते हैं।
- यौवनावस्था से पूर्व वृक्षणों को शल्य क्रिया द्वारा हटा देने को जनदनाशन या बधियाकरण (Orchidectomy or Castration) कहते है। इसके कारण नर हॉर्मोन का स्रावण कम हो जाता है और व्यक्ति नपुंसक (Neuter) हो जाता है। उसमें प्राथमिक एवं द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का विकास नहीं हो पाता है।
10. अण्डाशय (Ovaries)] अण्डाशय एक मादा जनद ग्रंथि है। महिलों मे एक जोड़ी अंडाशय होते है जो गर्भाशय के दोनों तरफ पाए जाते है। इससे तीन प्रकार के हॉर्मोन स्त्रावित होते है-
1. ऐस्ट्रोजन (Estrogen) यह हार्मोन ग्राफीयन पुटकों द्वारा स्त्रावित होता है। इस हॉर्मोन द्वारा मादा में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों (गर्भाशय, अण्डवाहिनी, योनि, क्लाइटोरिस, स्तनों आदि) का विकास होता है। आवाज का बारीक होना, मासिक चक्र का प्रारम्भ, नितम्ब भारी होना, शालीनता एवं मैथुन इच्छा जाग्रत होना इत्यादि का भी विकास होता है। > ऐस्ट्रोजन हॉर्मोन की अल्पस्राव या अतिस्स्रावण से मासिक चक्र में अनियमितता हो जाती है।
2. प्रोजेस्टरोन हॉर्मोन (Progesterone Hormone) इस हॉर्मोन का स्त्रावण अण्डाशय में अण्डोत्सर्ग के पश्चात् विकसित पीले रंग की ग्रन्थि कॉर्पस ल्युटियम द्वारा होता है। कॉर्पस ल्युटियम का नियंत्रण पीयूष ग्रंथि के ल्युटिनाइजिंग हार्मोन के द्वारा होता है। इस हॉर्मोन के स्त्रावण से स्त्रियों में स्तनों का विकास, दुग्ध ग्रंथियों की वृद्धि एवं सक्रियण, गर्भधारण के लिए आवश्यक संरचनात्मक व कार्यिकीय परिवर्तन, गर्भाशय की भित्ति में रुधिर परिवहन का बढ़ना तथा ग्लाइकोजन व वसाओं का संचयन आदि कार्यों का प्रेरण किया जाता है।
3. रिलेक्सिन (Relaxin) – इस हार्मोन का स्रावण कार्पस ल्यूटियम के द्वारा किया जाता है। इसका कार्य प्रसव क्रिया (शिशु जन्म) के समय प्यूबिस सिम्फॉयसिस के जोड़ में शिथिलता लाना है, अतः यह हॉर्मोन शिशु जन्म में सहायक है।
अपरा (Placenta))
- यह एक अस्थाई ग्रन्थि है जो महिला में गर्भावस्था के दौरान विकसित होता है तथा गर्भस्थ शिशु एवं माता के गर्भाशय के ऊतक के बीच संपर्क बनाता है इसके द्वारा गर्भाशय में स्थित भ्रूण के शरीर में माता के रक्त का पोषण पहुँचता रहता है और जिससे भ्रूण की वृद्धि होती है। यह भ्रूण की सुरक्षा में भी सहायक है।
- अपरा अंतःस्रावी अंग के रूप में कार्य करता है। इससे Human Chorionic gonadotropin (hcg) हार्मोन का सावण रोपण (implantation) के कुछ दिनों बाद शीघ्र ही होने लगता है। यह कोर्पस ल्युटियम को बनाए रखने में मदद करता है जिससे प्रोजेस्ट्रॉन का स्रावण लंबे समय तक होता रहे।
- मूत्र में मानव कोरियोनिक गोनाडोटोपिन (HCG) हॉर्मोन की उपस्थिति गर्भावस्था के लिए सामान्य परीक्षण का आधार है। HCG हार्मोन गर्भावस्था की पुष्टि करता है।
अन्य अंग जो हार्मोन स्त्रावित करते है –
> हृदय (Heart) से एट्रियल नेंट्रियुरेटिक कारक (एएनएफ) हार्मोन स्वावित होता है जो रक्त दाब को कम करता है। > वृक्क (Kidney) से इरिथ्रोपोइटिन नामक हार्मोन का उत्पादन करती होता है, जो रक्ताणु उत्पत्ति (आरबीसी के निर्माण) को प्रेरित करता है।
जठर आंत्रीय पथ (Gastro intestinal tract hormone): जठर आंत्रीय पथ के विभिन्न भागों में उपस्थित अंतःस्त्रावी कोशिकाएँ चार मुख्य पेप्टाइड हार्मोन का स्राव करती है-
गेस्ट्रिन- जठर ग्रन्थियों पर कार्य कर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल और पेप्सिनोजेन के स्राव को प्रेरित करता है। सेक्रेटिन- बहिःस्रावी अग्नाशय पर कार्य करता है और जल तथा बाइकार्बोनेट आयनों के स्राव को प्रेरित करता है।
कोलिसिस्टोकाइनिन अग्नाशयय और पित्ताशय दोनों पर कार्य क्रमशः अग्नाशयी एंजाइम और पित्त रस के स्राव को प्रेरित करता है।
जठर अवरोधी पेप्टाइड (GIP) जठर स्राव और उसकी गतिशीलता को अवरुद्ध करता है।
पादप हार्मोन (फाइटोहार्मोन) को दो प्रमुख समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है –
(1) वृद्धि प्रवर्धक हार्मोन (Growth promoting hormones) वे हार्मोन्स जो वृद्धि को प्रेरित करते है अथवा वृद्धि दर को बढ़ाते हैं वृद्धि प्रवर्धक हार्मोन कहलाते हैं।
वर्ग में ऑक्सिन, जिब्बेरेलिन, साइटोकाइनिन तथा इथाइलिन को सम्मिलित किया गया है।
(2) वृद्धि अवरोधक हार्मोन (Growth inhibitory hormones) – वे हार्मोन्स जो वृद्धि की दर को कम कर देते हैं, वृद्धि अवरोधक कहलाते हैं। इस वर्ग में एब्सिसिक अम्ल को सम्मिलित किया गया है।
- ऑक्सिन प्ररोह के अग्रभाग (टिप) में संश्लेषित होता है तथा कोशिकाओं की लंबाई में वृद्धि में सहायक होता है।
- जिब्बेरेलिन तने की वृद्धि में सहायक होते हैं।
- साइटोकाइनिन कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है और इसीलिए यह उन क्षेत्रों में जहाँ कोशिका विभाजन तीव्र होता है, विशेष रूप से फलों और बीजों में अधिक सांद्रता में पाया जाता है। इथाइलीन (एथिलीन) कच्चे फलों को शीघ्रता से पकाने में सहायक हार्मोन है।
- एब्सिसिक अम्ल वृद्धि का संदमन करने वाले हॉर्मोन का एक उदाहरण है। पत्तियों का मुरझाना इसके प्रभावों में सम्मिलित है।