ध्वनि (Sound)
ध्वनि एक प्रकार की ऊर्जा है जो किसी वस्तु के कंपन से उत्पन्न होती है।
यह कंपन आसपास के माध्यम (जैसे हवा, पानी) में तरंगों के रूप में फैलता है और जब हमारे कान तक पहुंचता है तो हमें ध्वनि सुनाई देती है। इसमें विक्षोभ का संचरण होता है जबकि कण एक स्थान से दूसरे स्थान पर गति नहीं करते हैं
माध्यम की आवश्यकता के आधार पर (Based on medium necessity):
1. अप्रत्यास्थ / विद्युत चुम्बकीय तरंग जिन तरंगों के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है जैसे प्रकाश तरंगे, ऊष्मा (अवरक्त) विकिरण, रेडियो तरंगे आदि
2. यांत्रिक / प्रत्यास्थ जबकि ऐसी तरंगे जिनके संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है उन्हें यांत्रिक (mechanical) तरंगें कहते हैं। यांत्रिक तरंगो के संचरण में माध्यम की प्रत्यास्थता एवं घनत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है इसलिये यांत्रिक तरंगो को प्रत्यास्थ (elastic) तरंगे भी कहते हैं। जैसे ध्वनि तरंगे, पृथ्वी में भूकम्पीय तरंगे
ऊर्जा संचरण के आधार पर (Based on energy propagation):
1. प्रगामी तरंग माध्यम में नियत वेग से संचरित होती है। प्रगामी तरंगों के द्वारा ऊर्जा का स्थानान्तरण होता है
- प्रकाश एवं ध्वनि प्रगामी तरंग होती है
2. अप्रगामी तरंगों में माध्यम के कण विभिन्न आयाम के साथ कम्पन्न करते हैं लेकिन ऊर्जा का संचरण नहीं होता है।
- संचरण की दिशा के आधार पर (Based on direction of propagation) तरंगों को, जितनी विमाओं में वे ऊर्जा संचरित करती है, के आधार पर एक, द्वि या त्रि-विमीय तरंगो में वर्गीकृत कर सकते हैं।
• तनी हुई डोरी में एक विमीय तरंगें,
• पानी की सतह पर द्वि-विमीय तरंगे
• जबकि एक बिन्दु स्त्रोत से ध्वनि और प्रकाश तरंगे त्रि-विमीय होती है।
- माध्यम के कणों के कम्पन के आधार : ध्वनि तरंगे अनुदैर्ध्य तरंग होती है-
- इस प्रकार की तरंगों में माध्यम के कम्पनशील कण संपीडन (उच्च दाब) तथा विरलन (निम्न दाब) के क्षेत्र बनाते हैं
- इसमें माध्यम के कण तरंग संचरण की दिशा में कम्पन्न करते है।
- कण का वेग तरंग वेग के समान्तर व प्रतिसमान्तर होता है।
- इनको ध्रुवित नहीं किया जा सकता उदाहरण ध्वनि तरंगे, गैस में तरंगे।
- विद्युत चुम्बकीय तरंगें अनुप्रस्थ तरंग होती है (जिनमें माध्यम के कण संचरण की दिशा के लम्बवत कम्पन करते हैं)
- ध्वनि तरंगे यांत्रिक अनुदैर्ध्य तरंगें होती हैं। यांत्रिक होने के कारण इन्हें संचरण के लिये माध्यम की आवश्यकता हेली है।
- ये सभी माध्यमों (ठोस, द्रव, एवं गैस) में संचरण कर सकती हैं। >
- निर्वात में ध्वनि का संचरण नहीं हो पाता, क्योंकि माध्यम अनुपस्थित होता है, अर्थात् वायुमंडल नहीं रहता।
- यही कारण है कि अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा के धरातल पर एक-दूसरे की बात नहीं सुन सकते
ध्वनि तरंगों से जुड़ी कुछ भौतिक राशियां तरंग दैर्ध्व, आवृत्ति, आयाम, आवर्तकाल तथा तरंग वेग।
तरंग दैर्ध्य (Wavelength)
ध्वनि तरंग में एक संपीडन तथा एक सटे हुए विरलन की कुल लंबाई को तरंग दैर्ध्य कहते हैं।
दो क्रमागत संपीडनों या दो क्रमागत विरलनों के मध्य बिंदुओं के बीच की दूरी को तरंग दैर्ध्य कहते हैं।
तरंग दैर्ध्य को ग्रीक अक्षर लैम्डा (1) से निरूपित करते हैं। इसका S.I. मात्रक मीटर (m) है।
आवृत्ति (Frequency)
एक सेकंड में उत्पन्न पूर्ण तरंगों की संख्या या एक सेकंड में कुल दोलनों की संख्या को आवृत्ति कहते हैं।
एक सेकंड में गुजरने वाले संपीडनों तथा विरलनों की संख्या को भी आवृत्ति कहते हैं।
• जैसे – 1 हर्ज = 1 दोलन प्रति सेकंड
आवृत्ति का S.I. मात्रक हर्ट्ज (Hz) है। आवृत्ति को ग्रीक अक्षर (न्यू) से प्रदर्शित करते हैं।
आवर्त काल (Period)
एक कंपन या दोलन को पूरा करने में लिए गए समय को आवर्त काल कहते हैं।
दो क्रमागत संपीडन या विरलन को एक निश्चित बिंदु से गुजरने में लगे समय को आवर्त काल कहते हैं।
आवर्त काल का S.I. मात्रक सेकेण्ड (S) है। इसको T से निरूपित करते हैं।
किसी तरंग की आवृत्ति आवर्त काल का व्युत्क्रमानुपाती होता है। nu = 1 / T
आयाम (Amplitude)
किसी माध्यम के कणों के उनकी मूल स्थिति के दोनों और अधिकतम विस्थापन को तरंग का आयाम कहते हैं।
आयाम को ‘A’ से निरूपित कहते हैं तथा इसका S.I. मात्रक मीटर ‘m’ है।
तरंग वेग या चाल (Wave velocity or speed)
एक तरंग द्वारा एक सेकंड में तय की गई दूरी को तरंग का वेग कहते हैं।
इसका S.I. मात्रक मीटर/सेकंड है।
वेग = चली गई दूरी/लिया गया समय
ध्वनि की तरंगदैर्ध्य है और यह T समय में चली गई है।
वेग = तरंगदैर्ध्य × आवृत्ति
प्रश्न- एक ध्वनि तरंग का आवर्तकाल 0.053 है। इसकी आवृत्ति क्या होगी?
उत्तर – आवृत्ति v = 1 / Gamma दिया गया है T = 0.05S
v = 1/0.05 = 100/5 = 20Hz
ध्वनि तरंग की आवृत्ति 20 Hz है
ध्वनि में तारत्व, प्रबलता तथा गुणता जैसे अभिलक्षण पाए जाते हैं-
तारत्व (Pitch)
- उत्पन्न ध्वनि मोटी (grave) है अथवा बारीक (shrill)। तारत्व ध्वनि तरंग की आवृत्ति पर निर्भर करता है।
- आवृत्ति बढ़ने पर ध्वनि का तारत्व बढ़ जाता है और ध्वनि तीक्ष्ण या पतली हो जाती है।
- स्त्रियों और बच्चों की आवाज का तारत्व ज्यादा होना ही उनकी आवाज़ का पुरुषों की तुलना में पतले होने का कारण है।
- ध्वनि के तारत्व की तीव्रता या प्रबलता से सम्बन्ध नहीं होता, ज्यादा तीव्रता की ध्वनि का तारत्व कम या अधिक कुछ भी हो सकता है। जैसे शेर की दहाड़ की प्रबलता मच्छर की भिनभिनाहट से ज्यादा होती है। लेकिन शेर की दहाड़ का तारत्व मच्छर की भिनभिनाहट से कम होता है।
प्रबलता (Loudness)
- किसी भी ध्वनि का तेज या धीरे (मंद) सुनाई देना प्रबलता होता है।
- प्रबलता ध्वनि के लिये कानों की संवेदनशीलता की माप है।
- ध्वनि की प्रबलता ध्वनि तरंगों के आयाम पर निर्भर होती है। प्रबलता (आयाम)
- मृदु ध्वनि का आयाम कम होता है तथा प्रबल ध्वनि का आयाम अधिक होता है।
- ध्वनि की तीव्रता – किसी इकाई क्षेत्रफल से प्रति सेकंड तल से गुजरने वाली ध्वनि ऊर्जा को ध्वनि की तीव्रता कहते हैं।
- इसका SI मात्रक माइक्रोवाट / मीटर या जूल/सेकंड मी.) तथा सामान्य प्रयोग का मात्रक ‘बेल’ (Bel) है
- ‘बेल’ के दसवें भाग को डेसीबेल (Decibel-dB) कहते हैं। (ग्राहम बेल के सम्मान में)
- ऑडियोमीटर द्वारा ध्वनि की तीव्रता का मापन किया जाता है
- प्रबलता को भी डेसिबल (db) में मापा जाता है।
विभिन्न स्रोतों की प्रबलता (लगभग):
- सामान्य श्वासः 10 dB,
- व्यस्त यातायातः 70 dB,
- पागलपन: 150 dB
- मंद फुसफुसाहट: 30 dB,
- शोरगुल/वाहनों: 80 dB,
- सामान्य बातचीतः 60 dB,
- बहरापन: 140 dB,
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO): मनुष्य के लिए सर्वोत्तम ध्वनि 45 dB निर्धारित की गई है।
- 80 dB से ऊपर की ध्वनि (शोर): कष्टदायकहोती है, चाहे वह सुरमयी ही क्यों न हो।
गुणता (Timbre)
- यदि हारमोनियम, सितार और सारंगी से समान आवृत्ति व प्रबलता की ध्वनियाँ सुनी जायें, तो ध्वनियों को सुनते ही हमें बोध होता है कि कौन-सी ध्वनि किस वाद्य-यन्त्र की है। इस बात का ज्ञान हमें ध्वनि की गुणता से होता है।
- अतः गुणता ध्वनि की वह विशेषता है जिसके द्वारा समान आवृत्ति व प्रबलता की ध्वनियों को स्पष्टतया पहचाना जा सकता है।
- निर्भरताः संनादी (हार्मोनिक) स्वरों की संख्या, क्रम और आपेक्षिक तीव्रता पर निर्भर करती है।
- आवृत्ति की ध्वनि को टोन कहते हैं।
- अनेक ध्वनियों के मिश्रण को स्वर कहते हैं।
- शोर कर्णप्रिय नहीं होता है जबकि संगीत सुनने में सुखद होता है।
ध्वनि के प्रकार
1. श्रव्य ध्वनि (Sonic Sound):
ऐसी ध्वनि जिसे मनुष्य सुन सकता है।
मनुष्य की श्रव्य आवृत्ति परास 20 Hz से 20 kHz या 20,000 Hz होती है।
2. अवश्रव्य ध्वनि (Infrasonic Sound):
20 Hz से कम आवृत्ति की ध्वनि तरंगें हैं।
इन तरंगों को जानवर सुन सकते हैं, जैसे कि गैंडा, व्हेल, हाथी आदि।
हाथी तथा व्हेल अवश्वव्य ध्वनि उत्पन्न करते हैं।
भूकंप की तरंगें और हृदय की धड़कन भी अवश्रव्य ध्वनि के उदाहरण हैं।
3. पराश्रव्य ध्वनि (Ultrasonic Sound):
- 20 kHz से अधिक आवृत्ति की ध्वनि तरंगें हैं।
- कुत्ते, चमगादड़, डॉल्फिन, हिरण, बिल्लियाँ, बंदर, चिड़िया, तेंदुए पराध्वनि सुन सकते हैं।
- सोनोग्राफी में अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता है।
- अल्ट्रासोनोग्राफी वह तकनीक जो शरीर के आंतरिक अंगों का प्रतिबिंब पराध्वनि तरंगों की प्रतिध्वनियों द्वारा बनाती है।
- इसका उपयोग उद्योगों में धातु के इलाकों में दरारों या अन्य दोषों का पता लगाने के लिए किया जाता है।
- यह उद्योगों में वस्तुओं के उन भागों को साफ करने में उपयोग की जाती है, जिनका पहुंचना कठिन होता है। जैसे- सर्पिलाकार नली, विषम आकार की मशीन आदि।
- पराध्वनि संसूचक का उपयोग मानव शरीर के आंतरिक अंगों, जैसे- यकृत, पित्ताशय, गर्भाशय, गुर्दे और हृदय की जाँच करने में किया जाता है। जैसे पित्ताशय तथा गुर्दे में पथरी तथा विभिन्नअंगों में अर्बुद (ट्यूमर) का पता लगाने में
- इन तरंगों का उपयोग हृदय की गतिविधियों को दिखाने तथा इसका प्रतिबिंब बनाने में किया जाता है। इसे इकोकार्डियोग्राफी कहते हैं।
- पराश्रव्य तरंगों को गाल्टन की सीटी, जिसे साइलेंट व्हिसिल (Silent whistle) भी कहते हैं, द्वारा उत्पन्न किया जा सकता है। इस सीटी का प्रयोग कुत्तों के प्रशिक्षण में किया जाता है।
- दुध में हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने में
- पराश्रव्य तरंगों की अत्यधिक आवृत्ति के कारण इनमें अधिक ऊर्जा होती है, साथ हीं छोटे तरंगदैर्ध्य के कारण इन्हें एक पतली किरण पुंज के रूप में बहुत दूर तक (संकेत भेजने में) भेजा जा सकता है।
- सोनार SONAR (Sound Navigation and Ranging) सोनार एक युक्ति जो पराध्वनि तरंगें उत्पन्न करके पानी के नीचे पिंडों की दूरी, दिशा तथा चाल नापने के लिए प्रयोग की जाती है।
- चमगादड़ अंधेरी रात में उच्च तारत्व की पराध्वनि तरंगें उत्सर्जित करते हुए उड़ती है व मार्ग का निर्धारण करती है
- पराध्वनि का उपयोग गुर्दे की छोटी पथरी को बारीक कणों में तोड़ने के लिए भी किया जा सकता है। ये कण बाद में मूत्र के साथ बाहर निकल जाते हैं।
विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल-
तरंग एक विक्षोभ है जो किसी माध्यम से होकर गति करता है और माध्यम के कण निकटवर्ती कणों में गति उत्पन्न कर देते हैं। ये कण इसी प्रकार की गति अन्य कणों में उत्पन्न करते हैं। माध्यम के कण स्वयं आगे नहीं बढ़ते, लेकिन विक्षोभ आगे बढ़ जाता है। किसी माध्यम में ध्वनि के संचरण के समय ठीक ऐसा ही होता है।
ध्वनि की चाल पदार्थ (माध्यम) के गुणों पर निर्भर करती है, जिसमें यह संचरित होती है। यह गैसों में सबसे कम द्रवों में ज्यादा तथा ठोसों में सबसे तेज होती है। (ठोस > द्रव गैस)
ध्वनि की चाल पर विभिन्न भौतिक राशियों का प्रभाव –
(1) ताप का प्रभाव – किसी माध्यम का ताप बढ़ने पर उसमें ध्वनि की चाल बढ़ जाती है।
> वायु का ताप 1°C बढ़ने पर वायु में ध्वनि की चाल 0.61m/s बढ़ जाती है।
> ऊँचाई बढ़ने पर तापमान कम हो जाता है ऐसे में क्षोभमंडल के भीतर ऊँचाई के साथ ध्वनि का वेग भी घटता जाएगा।
(2) दाब का प्रभाव- गैस का ताप नियत रखने पर, ध्वनि की चाल पर दाब-परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(3) आवृत्ति का प्रभाव – एक माध्यम से दूसरे में जाने पर ध्वनि की चाल में परिवर्तन आ जाता है। यह परिवर्तन तरंगदैर्ध्य में परिवर्तन के कारण आता है, ध्वनि की आवृत्ति वही रहती है, अर्थात् किसी माध्यम में ध्वनि की चाल आवृत्ति पर निर्भर नहीं करती।
(4) गैसों में ध्वनि की चाल – गैसों में ध्वनि तरंगों का वेग न्यूनतम होता है। हवा में ध्वनि का वेग 0°C पर 332 मी./से. होता है। (25°C पर 346 m/s)
> भिन्न-भिन्न गैसों से ध्वनि की चाल भिन्न-भिन्न होती है। हल्की गैस में ध्वनि की चाल ज्यादा तथा भारी में कम होती है।
(5) घनत्व का प्रभाव – ध्वनि का वेग माध्यम की प्रत्यास्थता एवं धनत्व पर निर्भर करता है।
ध्वनि का वेग प्रत्यास्थता गुणांक के वर्गमूल के समानुपाती जबकि घनत्व के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होता है। V
यदि समान प्रत्यास्थता के दो अलग-अलग माध्यम हौं, तो जिसमें घनत्व कम होगा उसमें ध्वनि का वेग अधिक होगा। ध्वनि की चाल गैसों के घनत्व अथवा अणुभार के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
• हाइड्रोजन गैस सबसे हल्की होती है। अतः हाइड्रोजन गैस में ध्वनि की चाल अन्य गैसों की अपेक्षा अधिक होती है।
(6) आर्द्रता का प्रभाव – जलवाष्प का घनत्व, शुष्क वायु के घनत्व से कम होता है। अतः नमी युक्त वायु का घनत्व भी शुष्क वायु से कम होता है। इसीलिये जब वायु में आर्द्रता बढ़ती है, तो ध्वनि की चाल बढ़ जाती है। यही वजह है कि ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा बरसात में जब वायु में नमी (Humidity) अधिक होती है, ध्वनि की चाल बढ़ जाती है तथा ध्वनि दूर-दूर तक सुनायी देती है।
(7) माध्यम के वेग का प्रभाव – माध्यम के वेग की दिशा में ध्वनि की चाल बढ़ जाती है तथा विपरीत दिशाओं में घट जाती है।
> प्रकाश की चाल ध्वनि की चाल से अधिक है।
डॉप्लर प्रभाव (Doppler Effect)-
किसी तरंग स्रोत तथा प्रेक्षक के मध्य सापेक्षिक गति के कारण प्रेक्षक की तरंग की आवृत्ति बदली हुई प्रतीत होती है। त की आवृत्ति में इस आभासी परिवर्तन को डॉप्लर प्रभाव या डॉप्लर परिवर्तन (Doppler Shift) कहते हैं। की आवृत्ति में इस कारण ही जब रेलगाड़ी सीटी बजाते हुए आती है, तो उसकी ध्वनि तीक्ष्ण सुनाई पड़ती है और जब ट्रे दूर जाती है तो सीटी की आवाज मोटी होती प्रतीत होती है। डॉप्लर प्रभाव एक तरंग सम्बन्धी घटना है। अतः यह केवल ध्वनि तरंगों पर ही लागू नहीं होता है, बल्कि सभी प्रकार की विद्युत चुम्बकीय तरंगों (प्रकाश) पर भी लागू होता हैं
- डॉप्लर ने ही सन् 1842 में इस प्रभाव की व्याख्या की थी।
- डॉप्लर प्रभाव के अनुप्रयोग वायु में उड़ते विमान के वेग का पता लगाना, जल के भीतर पनडुब्बी का वेग पता लगाना।
ध्वनि का परावर्तन (Reflection of Sound)
किसी सतह से टकराकर ध्वनि का वापस आना ध्वनि का परावर्तन है। प्रकाश की भाँति ध्वनि भी किसी ठोस या द्रव की सतह से परावर्तित होती है तथा परावर्तन के नियमों का पालन करती है।
> ध्वनि तरंगों का तरंगदैर्ध्य अधिक होता है, इसीलिये ध्वनि तरंगों के परावर्तन के लिये बड़े आकार के अवरोधक (पृष्ठ) की आवश्यकता होती है, जैसे पहाड़, दीवार, इत्यादि।
ध्वनि के परावर्तन के अनुप्रयोग
(i) मेगाफोन या लाउडस्पीकर, हॉर्न, तूर्य और शहनाई आदि इस प्रकार बनाए जाते हैं कि वे ध्वनि को सभी दिशाओं में फैलाए बिना एक ही दिशा में भेजते हैं। इन सभी यंत्रों में शंक्वाकार भाग ध्वनि तरंगों को बार-बार परावर्तित करके श्रोताओं की ओर भेजता है। इस प्रकार ध्वनि तरंगों का आयाम जुड़ जाने से ध्वनि की प्रबलता बढ़ जाती है।
(ii) स्टेथोस्कोप एक चिकित्सा यंत्र है जो मानव शरीर के अंदर हृदय और फेफड़ों में उत्पन्न ध्वनि को सुनने में काम आता है। हृदय की धड़कन की ध्वनि की रबर की नली में बारम्बार परावर्तित होकर डॉक्टर के कानों में पहुँचती है।
(iii) कंसर्ट हॉल, सम्मेलन कक्षों तथा सिनेमा हॉल की छतें वक्राकार बनाई जाती हैं जिससे कि परावर्तन के पश्चात् ध्वनि हॉल के सभी भागों में पहुँच जाए। कभी-कभी वक्राकार ध्वनि-पट्टों को मंच के पीछे रख दिया जाता है जिससे कि ध्वनि, ध्वनि-पट्ट से परावर्तन के पश्चात् समान रूप से पूरे हॉल में फैल जाए।
- श्रवण सहायक युक्ति- यह बैटरी चालित इलेक्ट्रॉनिक मशीन है जो कम सुनने वाले लोगों द्वारा प्रयोग की जाती है। माइक्रोफोन ध्वनि को विद्युत संकेतों में बदलता है जो एंप्लीफायर द्वारा प्रवर्धित हो जाते हैं। ये प्रवर्धित संकेत युक्ति के स्पीकर को भेजे जाते हैं। स्पीकर प्रवर्धित संकेतों को ध्वनि तरंगों में बदलकर कान को भेजता है जिससे साफ सुनाई देता है।
- टेलीफोन यंत्र में मुँह के सामने रखे जाने वाला हिस्सा, जो आवाज का संग्रहण कर, विद्युत चुंबकीय तरंगों के माध्यम से सूचना का संचार करता है, माउथपीस कहलाता है
प्रतिध्वनि (Echo) –
- ध्वनि के परावर्तन के कारण मूल ध्वनि के कुछ क्षणों बाद सुनाई देने वाली उसकी प्रतिलिपि को ‘प्रतिध्वनि’ कहते हैं।
- हमारे मस्तिष्क में ध्वनि की संवेदना लगभग 0.1 सेकंड तक बनी रहती है। अतः प्रतिध्वनि सुनने के लिये मूल ध्वनि तथा परावर्तित ध्वनि के बीच कम से कम 0.1 सेकंड का समय अंतराल होना चाहिये।
- यदि हम मान लें कि 25°C तापमान पर ध्वनि की चाल 346 मी./से. है, तो ध्वनि द्वारा वायु में 0.1 सेकंड में चली गई दूरी = 346 × 0.1 = 34.6 मीटर।
- अतः प्रतिध्वनि सुनने के लिये किसी परावर्तक पृष्ठ की न्यूनतम दूरी 34.6/2 = 17.3 मीटर (लगभग 17 मीटर) होनी बाहिये। यह दूरी वायु के ताप के साथ बदल जाएगी, क्योंकि ताप के साथ ध्वनि की चाल में परिवर्तन हो जाता है।
- प्रतिध्वनि द्वारा समुद्र की गहराई, वायुयान की ऊँचाई, सुदूर स्थित पहाड़ की दूरी आदि माप सकते हैं। ‘सोनार’ ध्वनि के इसी गुण पर आधारित है।
- चमगादड़ गहन अंधकार में भोजन की खोज तथा उड़ान के लिये पराध्वनि तरंगें उत्सर्जित करते हैं तथा परावर्तन के पश्चात् इनका संसूचन करते हैं।
अनुरणन (Reverberation)
- किसी हॉल में ध्वनि स्रोत के बंद होने के उपरान्त भी ध्वनि का कुछ देर तक सुनाई देना अनुरणन कहलाता है और वह समय जिसके दौरान यह ध्वनि सुनाई देती रहती है, अनुरणन काल कहलाता है।
- वास्तव में हॉल की दीवारें, छत और फर्श के कारण बहुल परावर्तन (Multiple reflection) होता है, जो अनुरणन का कारण है।
- यदि किसी हॉल में अनुरणन काल 0.8 सेकंड हो, तो वक्ता द्वारा दिया जाने वाला भाषण श्रोताओं को स्पष्ट नहीं सुनाई देगा। इससे बचने के लिये हॉल की दीवारों को मोटे सरंध्र परदों से ढक देते हैं या हॉल की दीवारें खुरदुरी बनाई जाती हैं।
- अनुरणन रोकने के लिये ही संगीत कार्यक्रमों (Music concerts) के हॉलों की दीवारों को ऐसा बनाते हैं कि वे ध्वनि तरंगों का अवशोषण कर लें। साथ ही फर्श पर कालीन का प्रयोग भी किया जाता है।
ध्वनि का अपवर्तन (Refraction of Sound)
जब ध्वनि तरंगें एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हैं, तो अपने पथ से विचलित हो जाती हैं, इसे ‘ध्वनि का अपवर्तन’ कहते हैं। विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल का भिन्न-भिन्न होना तथा भिन्न तापों पर ध्वनि की भित्र चाल के कारण ध्वनि का अपवर्तन होता है।
- ध्वनि के अपवर्तन के कारण ही ठंडी रात में ध्वनि दूर तक तथा स्पष्ट सुनाई देती है, जबकि दिन में अपेक्षाकृत कम दूरी तक सुनाई देती है।
ध्वनि का व्यतिकरण (Interference of Sound)
- जब दो ध्वनि तरंगें किसी माध्यम में संचरित होते हुए किसी बिन्दु पर मिलती है, तो ध्वनि ऊर्जा का पुनर्वितरण हो जाता है। इस परिघटना को ध्वनि का व्यतिकरण कहा जाता है।
- यदि दोनों तरंगें उस बिन्दु पर एक ही कला में होती हैं, तो ध्वनि की तीव्रता अधिकतम हो जाती है, इसे संपोषी व्यतिकरण (Constructive Interference) कहते हैं।
- वहीं यदि मिलन बिन्दु पर दोनों तरंगों की कला विपरीत हो, तो ध्वनि की तीव्रता न्यूनतम हो जाती है, इसे ‘विनाशी व्यतिकरण’ (Destructive Interference) कहते हैं।
- कभी-कभी संगीत कार्यक्रमों में विभित्र स्पीकरों की ध्वनियों का व्यतिकरण होता है, जिससे कुछ स्थानों पर ध्वनि तीव्रता ज्यादा, जबकि कुछ स्थानों पर ध्वनि तीव्रता बहुत कम सुनाई पड़ती है।
ध्वनि का विवर्तन (Diffraction of Sound)
- जब ध्वनि तरंगें किसी अवरोध से टकराती हैं, तो अवरोध के किनारों से मुड़कर आगे बढ़ती हैं, इस परिघटना को ‘ध्वनि का विवर्तन’ कहते हैं।
- ध्वनि के इस गुण के कारण ही बाहर से आने वाली आवाजें कमरे के भीतर (मुड़कर) भी सुनाई पड़ती हैं।
प्रणोदित कम्पन (Forced Vibration)
कम्पन करने वाली वस्तु पर यदि कोई बाह्य आवर्त बल लगाया जाए जिसकी आवृत्ति वस्तु की स्वाभाविक आवृत्ति से कम्पन करने की चेष्टा करती है, किन्तु शीघ्र ही वस्तु आरोपित बल की आवृत्ति से स्थिर आयाम के कम्पन करने के लिए बाध्य हो जाती है, तो बाह्य आवर्त बल के प्रभाव में वस्तु द्वारा उत्पन्न इस कम्पन को प्रणोदित कम्पन कहते हैं
अनुनाद Resonance
किसी मुक्त दोलन करने वाली वस्तु पर जब कोई बाह्य आवर्त बल आरोपित किया जाता है, तो वस्तु प्रणोदित दोलनों के अन्तर्गत दोलन करती है। लेकिन यदि बाह्य आवर्त बल की आवृत्ति वस्तु की अपनी स्वाभाविक आवृत्ति के बराबर हो तो इस दशा में दोलनों का आयाम बहुत अधिक बढ़ जाता है। इसी अवस्था को अनुनाद कहते हैं। >
अनुनाद की क्रिया के कारण ही सैनिकों को किसी पुल पर कदम मिलाकर न चलने की सलाह दी जाती है।
कोलाहल या शोर (Noise)
जो ध्वनि कान को सुरीली प्रतीत नहीं होती, कोलाहल कहलाती है। सांगीतिक ध्वनि को छोड़कर सभी ध्वनियों इसमें सम्मिलित हैं। इस प्रकार के ध्वनि उत्पादक गति आवर्त (Periodic) नहीं होती, इनके कम्पनों का आयाम अनियमित रूप से घटता-बढ़ता रहता है। अतः इन ध्वनियों के समय-विस्थापन वक्र अनियमित होते हैं। टिन के डिब्बे को डण्डे से मारने पर, बन्दूक की गोलियाँ छोड़ने पर जो ध्वनि उत्पन्न होती है, कोलाहल के उदाहरण हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने ध्वनि स्तर निर्धारित किए हैं-
- औद्योगिक क्षेत्रों में, अनुमेय सीमा दिन के लिए 75 dB और रात में 70 dB है।
- वाणिज्यिक क्षेत्रों में, यह 65 dB और 55 dB है, जबकि
- आवासीय क्षेत्रों में यह क्रमशः दिन और रात के दौरान 55 dB और 45 dB है।
आज हमें सुरक्षा प्रदान करने वाले सभी साधनों से उत्पन्न शोर परोक्ष रूप से हमारे स्वास्थ्य पर निरन्तर घातक प्रभाव डालते हैं। मानव के लिए 40 से 50 डीबी की ध्वनि सहनीय समझी जाती है।
शोर प्रदूषण का शरीर पर निम्न प्रभाव पड़ता है –
(1) श्रवण क्रिया पर प्रभाव पड़ना।
(2) उच्च रक्तचाप व हृदय रोग बढ़ना।
(3) कानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना।
मैक संख्या (Mach Number): किसी माध्यम में किसी पिण्ड की चाल तथा उसी माध्यम में ताप व दाब की उन्हीं परिस्थितियों में ध्वनि की चाल के अनुपात को उस वस्तु की उस माध्यम में मैक संख्या कहते हैं
मैक संख्या (Mach Number) =वाहन की चाल/ध्वनि की चाल
- यह हवा में ध्वनि की गति की तुलना में एक विमान की गति का वर्णन करता है, जिसमें मैक-1 ध्वनि की गति के बराबर होता है यानि प्रति सेकंड 343 मीटर।
- यदि मैक संख्या 1 से अधिक है, तो पिण्ड की चाल पराध्वनिक (Supersonic) कहलाती है।
- यदि मैक संख्या 5 से अधिक है, तो चाल अतिपराध्वनिक (Hypersonic) कहलाती है।
- जब पिण्ड की चाल पराध्वनिक हो जाती ती है, तो वह अपने पीछे माध्यम में एक शंक्वाकार विक्षोभ छोड़ता जाता है।
- इस विक्षोभ में संचरण को ही प्रघाती तरंग (Shock Waves) कहते हैं।
ध्वनि उत्पादक स्रोत ध्वनि की चाल से अधिक तेजी से गति करती है तो ये वायु में प्रघाती तरंगें उत्पन्न करते हैं। इन ज्याती तरंगों में बहुत अधिक ऊर्जा होती है। इस प्रकार की प्रघाती तरंगों से सम्बद्ध वायुदाब में परिवर्तन से एक बहुत तेज जोर प्रबल ध्वनि उत्पन्न होती है, जिसे ध्वनि बूम कहते हैं। ध्वनि बूम में इतनी मात्रा में ऊर्जा होती है कि यह खिड़कियों के होशों को तोड़ सकती है और यहाँ तक कि भवनों को भी क्षति पहुँचा सकती है।
RADAR-(Radio Detection and ranging) –
- राडार का आविष्कार टैलर व लियो यंग (यू.एस.ए.) ने वर्ष 1922 में किया था।
- यह यंत्र अन्तरिक्ष में आने-जाने वाले वायुयानों के संसूचन और उनकी स्थिति ज्ञात करने के काम आता है।
- राडार, एक यंत्र है जिसकी सहायता से रेडियो तरंगों का उपयोग दूर की वस्तुओं का पता लगाने में तथा उनकी स्थिति, अर्थात् दिशा और दूरी, ज्ञात करने के लिए किया जाता है।
- जीवों में पोषण
- मानव जनन तंत्र
- जनन स्वास्थ्य
- नियन्त्रण एवं समन्वय – अंतःस्रावी तंत्र (Endocrine system)
- जैव प्रक्रम – उत्सर्जन (Excretion)
- जैव प्रक्रम – परिवहन (Transportation)
- श्वसन (Respiration)
- कोशिका संरचना एवं प्रकार्य
- जैव रासायनिक चक्रण
- तापमान एवं उष्मा, तापमापी, उष्मा संचरण