जैव रासायनिक चक्रण
प्रत्येक जीव में शरीर का निर्माण कोशिकाओं से होता है, अनेक कोशिकाओं के समूह से ऊतक, ऊतकों के घगठन से अंग, अंगों के समुच्चय से तंत्र एवं तंत्रों के समुच्चय से एक व्यष्टि जीव (Individual organism) का निर्माण होता है। जीवों के समूह को एक जाती बुलाया जाता है जो एक दुसरे के साथ जनन द्वारा सन्तान उत्पन्न करने की क्षमता रखते हो और जिनकी सन्तान स्वयं आगे सन्तान जनने की क्षमता रखती हो।
एक जाती विशेष के जीवों के समूह को जनसंख्या या समष्टि या जीव संख्या (Population) कहा जाता है किन्तु जब विभिन्न जातीयों की यही जीव संख्या किसी एक समय, एक निश्चित क्षेत्रफल या स्थान विशेष में विद्यमान हो तो इससे समुदाय (Community) का गठन होता है। समुदाय और उसके चारों ओर विद्यमान अजैविक पर्यावरण के बीच निरन्तर क्रिया, प्रतिक्रिया एव सहक्रिया होती रहती है। इस प्रकार एक पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण होता है।
सम्पूर्ण भूमण्डल की वह परिसीमा जहाँ तक पारिस्थितिक तंत्र संचालित है पारिमण्डल (Ecosphere) या जैवमण्डल (Biosphere) कहलाता है अर्थात जीवधारियों से युक्त मृदा (थलमण्डल), जल (जलमण्डल) तथा वायु (वायुमण्डल) के समुच्चय को ही जैवमण्डल या पारिमण्डल कहते हैं। जीवमंडल के जैविक और अजैविक घटकों के बीच का सामंजस्य जीवमंडल को गतिशील और स्थिर बनाता है। इस सामंजस्य के द्वारा जीवमंडल के विभिन्न घटकों के बीच पदार्थ और ऊर्जा का स्थानांतरण होता है।
जैविक घटक (Biotic) –
उत्पादक – हरे पोधे, पादपप्लवक (Phytoplankton)
उपभोक्ता या गुरु उपभोक्ता – शाकाहारी बकरी, गाय, हिरण, टिड्डा, गन्ना तना भेदक (प्राथमिक उपभोक्ता)
मांसाहारी- शेर, चीता, अधिकांश पक्षी, मछलियाँ, भेड़िया, मेंढक, सर्प (द्वितीयक उपभोक्ता)
सर्वाहारी या उच्च मांसाहारी – चूहे, सूअर, मनुष्य, कुत्ते, कौआ (तृतीयक उपभोक्ता)
अपघटक या लघु उपभोक्ता – जीवाणु एवं कवक (प्रकृति के अपमार्जक)
अजैविक घटक (Abiotic)-
भौतिक घटक – इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के जलवायवीय कारक जैसे सूर्य का प्रकाश, ताप, आर्द्रता, वायु, तथा द्रव इत्यादि को शामिल किया जाता है।
कार्बनिक घटक – इनमें प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट एवं ह्यूमसी पदार्थ सम्मिलित हैं।
अकार्बनिक घटक – इनमें पोषक तत्त्व एवं यौगिक आते हैं। जैसे कार्बन, नाइट्रोजन, सल्फर, फॉस्फोरस, कार्बनाडाई ऑक्साइड एवं पानी आदि, इनका परिस्थितिकी तंत्र में चक्रण होता है।
- Ecology (पारिस्थितिक) के जनक – रीटर
- भारतीय Ecology के जनक प्रो. रामदेव मिश्रा
- Ecology शब्द की व्याख्या – हेकल
- Ecosystem (पारितंत्र) शब्द A. g. टेन्सले
- पारितंत्र प्रकृति की एक क्रियाशील ईकाई है
- पारितंत्र से पोषक कभी समाप्त नहीं होते हैं। ये बार-बार पुनः चक्रित होते हैं एवं अनंत काल तक चलते रहते हैं। एक पारितंत्र के विभिन्न घटकों के माध्यम से पोषक तत्त्वों की गतिशीलता को पोषक चक्र कहा जाता है। पोषक चक्र का एक अन्य नाम जैव भू रसायन चक्र (जैव सजीव जीवन, भू चट्टानें, हवा, पानी) है।
यह दो प्रकार के होते हैं-
(क) गैसीय चक्र – जैसे- नाइट्रोजन चक्र, कार्बन चक्र, जल चक्र एवं ऑक्सीजन चक्र
(ख) अवसादी या तलछटी चक्र जैसे- सल्फर एवं फॉस्फोरस चक्क्र
A. नाइट्रोजन चक्र
- नाइट्रोजन वायुमण्डल में सबसे अधिक मात्रा (78%) में पायी जाने वाली गैस है।
- यह न्यूक्लिक अम्लों, विटामिन, प्रोटीन, अमीनो अम्लों, एन्जाइमों, हरित लवक एवं यूरिया आदि यौगिकों के रूप में जीवों में उपस्थित होती है।
- यह एक क्रांतिक पोषक तत्व (N,P,K) है एवं इसकी कमी से कई प्रकार के पादप रोग उत्पन्न होते हैं।
- पादप, वायु के साथ नाइट्रोजन को भी रंध्रों द्वारा ग्रहण करते हैं परन्तु इस रूप में इसका स्वांगीकरण नहीं कर सकते हैं। पादप नाइट्रोजन को केवल मृदा द्वारा प्राप्त करते हैं, क्योंकि मृदा में यह कार्बनिक एवं अकार्बनिक नाइट्रोजन युक्त यौगिकों के रूप में विद्यमान रहती है।
गैसीय अवस्था में उपस्थित मुक्त नाइट्रोजन का उपयोग उच्च विकसित सजीवों द्वारा नहीं किया जा सकता है। कुछ जीवाणु, कवकें, नीलहरित शैवाल आदि वातावरणीय मुक्त नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने में सक्षम होते हैं। ये सूक्ष्मजीव स्वतंत्र अथवा सहजीवी अवस्था में पाये जा सकते हैं।
पौधे नाइट्रोजन का उपयोग मुख्यतः नाइट्रेट (NO3) के रूप में करते हैं।
नाइट्रोजन चक्र निम्न चार चरणों में सम्पन्न होता है-
(1) नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen fixation)
(2) अमोनीकरण (Ammonification)
(3) नाइट्रीकरण (Nitrification)
(4) विनाइट्रीकरण (Denitrification)
(1) नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen fixation) –
- वायुमण्डल की मुक्त नाइट्रोजन (N2) से नाइट्रोजन के यौगिक जैस नाइट्राइट (NO2) नाइट्रेट (NO3) आदि का निर्माण नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहलाता है।
I. अजैविक नाइट्रोजन (N2}) स्थिरीकरण (Abiological Nitrogen N, Fixation) – इस प्रकार का नाइट्रोजन स्थिरीकरण मुख्यतः पर्यावरणीय कारकों के प्रभाव से सम्पन्न होता है, इसमें जीवों की आवश्यकता नहीं होती। यह दो प्रकार से हो सकता है-
(1) वायुमण्डलीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Atmospheric Nitrogen Fixation) –
प्रकृति में तड़ित (बिजली चमकने) एवं पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से वायुमण्डल में उपस्थित मुक्त नाइट्रोजन ऑक्सीजन से संयुक्त होकर नाइट्रिक आक्साइड (NO) का निर्माण करती है। नाइट्रिक आक्साइड आक्सीजन से पुनः संयोजित होकर नाइट्रोजन डाई आक्साइड (N*O_{2}) बनाता है।
नाइट्रोजन डाई आक्साइड जल से अभिक्रिया करके नाइट्रस अम्ल (HNO3) व नाइट्रिक अम्ल (HNO3) का निर्माण करता है। इस प्रकार निर्मित नाइट्रिक अम्ल वर्षा जल के साथ मृदा में चला जाता है। जहाँ यह क्षारीय पदार्थों से क्रिया करके नाइट्रेट (NO3) का निर्माण करता है, जिसका अवशोषण पौधों द्वारा किया जाता है।
तड़ित N+O₂ मेघगर्जन 2NO (नाइट्रिक आक्साइड) 2NO+O → 2NO (नाइट्रोजन डाई आक्साइड)
2NO₂+H₂OHNO,+HNO, (नाइट्रिक अम्ल)
i) औद्योगिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Industrial Nitrogen Fixation) –
अत्यधिक ताप, दाब एवं उत्प्रेरक की उपस्थिति में वायुमण्डलीय नाइट्रोजन एवं हाइड्रोजन संयुग्मित होकर अमोनिया (NH3) बनाते हैं जिसका उपयोग औद्योगिक स्तर पर रासायनिक उर्वरक बनाने में किया जाता है।
अमोनिया निर्माण की यह विधि हैबर विधि कहलाती है।
N₂ + 3H, उच्च ताप उच्च दाब + उत्प्रेरक 2NH,
II. जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Biological Nitrogen Fixation) –
वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को सूक्ष्मजीवों द्वारा कार्बनिक अथवा अकार्बनिक यौगिकों में बदलने को जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहा जाता है।
इन सूक्ष्मजीवों को डाइएजोट्रोफ (Dia-azotrophs) कहते हैं, क्योंकि ये वायुमण्डल की डाइनाइट्रोजन (N=N) का यौगिकीकरण करते हैं।
जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण दो प्रकार से सम्पन्न होता है-
(1) असहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nonsymbiotic Nitrogen Fixation)-
इस प्रकार का नाइट्रोजन स्थिरीकरण मृदा में उपस्थित स्वतंत्र सूक्ष्मजीवों द्वारा किया जाता है। नाइट्रोजन के असहजीवी स्थिरीकरण में निम्न सूक्ष्मजीव भाग लेते है-
(a) वायुजीवी जीवाणु (Aerobic bacteria) – एजोटोबेक्टर, एजोमोनास
(b) अवायवीय जीवाणु (Anaerobic bacteria)- क्लॉस्ट्रीडियम
(c) प्रकाशसंश्लेषी जीवाणु (Photosynthetic bacteria) उदा.- क्लोरोबियम, रोडोसुडोमोनास
(d) कवक (Fungi) यीस्ट (Yeast)
(e) नीलहरित शैवाल या सायनोबैक्टीरिया नॉस्टोक, ऐनाबीना इत्यादि
नील हरित शैवाल में एक विशिष्ट कोशिका हेटेरोसिस्ट (Heterocyst) पायी जाती है जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण का कार्य सम्पन्न करती है।
इन सूक्ष्मजीवों की सक्रियता हेतु मोलिब्डेनम तत्व (Mo) की आवश्यकता होती है।
(ii) सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण ( Symbiotic Nitrogen Fixation)-
इस प्रकार के नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सूक्ष्मजीवों एवं पादपों के मध्य एक सहजीवी सम्बन्ध स्थापित्त हो जाता है।
लेग्युमिनोसी या फैबेसी कुल (फलीदार पादप) (चना, मसूर, मटर, उरद, मूग, सेम, अरहर, मेथी, मूँगफली, सोयाबीन) लेग्युमिनोसी यावेरी का बयान (izobium) एवं ब्रेडीराइजोबियम जीवाणु की विभिन्न जातीयाँ प्रवेश कर मूल ग्रन्थिकाओं का निर्माण करती हैं एवं मृदा की नाइट्रोजन को नाइट्रेट यौगिकों में बदलती हैं। >
एजोराइजोबियम के द्वारा लेग्यूमिनोसी कुल के पौधे में स्तम्भ गुलिकाएं (Stem nodules) बनाकर नाइट्रोजन स्थिरीकरण किया जाता है।
सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण में दो प्रकार के प्रोटीन का विशेष महत्त्व होता है –
1. लेगहीमोग्लोबीन (Leghaemoglobin)
2. नोडयूलिन (Nodulin) प्रोटीन
सहायक एन्जाइम – नाइट्रोजिनेज
सहायक जीन – NiF (निफ जीन)
अलेग्युमिनोसी पादप की जड़ों पर फ्रैंकिया (Frankia) नामक सूक्ष्मजीव नाइट्रोजन स्थिरीकरण करता है।
(2) अमोनीकरण (Ammonification) –
मृदा में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों के विघटन से अमोनिया या अमोनियम यौगिकों के निर्माण की प्रक्रिया अमोनीकरण कहलाती है।
पादपों द्वारा अवशोषित अकार्बनिक नाइट्रोजन स्वांगीकृत होकर कार्बनिक पदार्थों में रुपान्तरित हो जाती है।
पौधों की मृत्यु एवं क्षयः के पश्चात ये कार्बनिक पदार्थ सूक्ष्मजीवाणुओं द्वारा पुनः विघटित होकर अकार्बनिक नाइट्रोजन को गैस रूप में वातावरण में मुक्त करते हैं।
यह क्रिया मृदा में उपस्थित सक्रिय प्यूट्रीफाइंग जीवाणुओं द्वारा निम्न चरणों में सम्पन्न होती है –
(क) प्रोटीन अपघटन (Proteolysis)- इस प्रक्रिया में प्रोटीन को विघटित कर अमीनो अम्लों में रूपान्तरित कर दिया जाता है। उदाहरण क्लोस्ट्रीडियम (Clostridium) स्यूडोमोनास (Pseudomonas)
(ख) विऐमीनीकरण (Deamination) – इस प्रकिया में अमीनो अम्लों का जीवाणुओं द्वारा विघटन कर इससे निर्मित अमोनिया को वातावरण में मुक्त कर दिया जाता है। उदाहरण बेसिलस (Bacillus) जीवाणु की विभिन्न जातीयाँ।
(3) नाइट्रीकरण (Nitrification) –
अमोनिया का नाइट्रेट में आक्सीकरण नाइट्रीकरण कहलाता है।
यह अभिक्रिया विभिन्न प्रकार के रसायन पोषित (Chemotrophic) जीवाणुओं द्वारा सम्पन्न होती है।
यह अभिक्रिया दो चरणों में पूर्ण होती है –
(क) अमोनिया का नाइट्राइट में परिवर्तन अमोनिया नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas) जीवाणु की उपस्थिति में आक्सीकृत होकर नाइट्राइट (NO₂) में परिवर्तित हो जाती है।
2NH,+30, Nitrosomonas, 2HNO2 + 2H₂O + ऊर्जा
(ख) नाइट्राइट का नाइट्रेट में रूपान्तरण नाइट्रोबेक्टर (Nitrobacter) जीवाणु की उपस्थिति में नाइट्राइट का आक्सीकरण होने पर नाइट्रेट (NO3) का निर्माण होता है-
2HNO₂+O, Nitrobacter, 2HNO, + ऊर्जा
(4) विनाइट्रीकरण (Denitrification) –
जीवाणुओं द्वारा मृदा में उपस्थित नाइट्रेट को नाइट्रोजन में बदलने की क्रिया विनाइट्रीकरण कहलाती है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। उदाहरण बैसिलस डिनाइट्रीफिकेन्स, थायोबैसिलस डिनाइट्रीफिकेन्स
B. जलीय-चक्र
पृथ्वी का 2/3 भाग (71%) जल से घिरा हुआ है, हमारे शरीर में 65-70% जल मौजूद होता है। जल सबसे अच्छा विलायक है।
जल, जलवाष्प (water vapour) बनता है और संघनन (condensation) के बाद वर्षा (वर्षण- precipitation) के रूप में सतह पर गिरता है और फिर नदियों के द्वारा समुद्र में (संग्रह) पहुँच जाता है, जलीय चक्र (hydrologic cycle) कहते हैं।
यह प्रक्रिया निम्न चरणों में सम्पन्न होती है-
1. वाष्पीकरण ( Evaporation) – जल (द्रव), जलवाष्प (गैस) में बदलकर वायुमण्डल में उपर जाता है।
वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) वाष्पोत्सर्जन एक जैविक प्रक्रिया है जो अधिकतर दिन में होती है। पौधों के अंदर का पानी, पत्तियों के छिद्रों (रंध्रो) के माध्यम से जल वाष्प के रूप में पौधे से वायुमंडल में स्थानांतरित होता है।
2. संघनन (Condensation) – वायुमंडल में उपर तापमान कम होने के कारण यह जलवाष्प संघनित होकर जल बुँदे या हिमकण (बादल) बनाता है।
3. वर्षण या अवक्षेपण (precipitation) – जल बुँदे या हिमकण का भार अधिक होने के कारण (गुरुत्वाकर्षण) ये वर्षा (द्रव) या हिमपात (ठोस) के रूप में सतह पर वापस आती है।
4. भंडारण (Storage) – सारा जल जो पृथ्वी पर गिरता है तुरंत समुद्र में नहीं चला जाता है। इसमें से कुछ मृदा के अंदर (अंतःस्राव) चला जाता है और भूजल का हिस्सा बन जाता है। कुछ भूजल झरनों के द्वारा सतह पर आ जाता है या हम इसे अपने व्यवहार के लिए कूपों और नलकूपों की मदद से सतह पर लाते हैं। जीवन की विभिन्न प्रक्रियाओं में स्थलीय जीव-जंतु और पौधे (केशिकीय जल) जल का उपयोग करते हैं। अधिकांश जल, अंततः महासागरों में वापस चला जाता है।
C. कार्बन-चक्र
कार्बन पृथ्वी पर बहुत सारी अवस्थाओं में पाया जाता हैं। यह अपने मूल रूप (तत्व) में हीरा और ग्रेफ़ाइट (अपरूप) में पाया जाता है।
यौगिक के रूप में यह वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (लगभग 0.04%) के रूप में, विभिन्न प्रकार के खनिजों व चट्टानों में कार्बोनेट और हाइड्रोजन कार्बोनेट के रूप में पाया जाता है।
सभी जीवरूप कार्बन आधारित अणुओं; जैसे-प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, न्यूक्लिक अम्ल और विटामिन पर आधारित होते हैं।
जीवों के शुष्क भार का 49 प्रतिशत भाग कार्बन से बना होता है और जल के पश्चात् यही आता है।
बहुत सारे जंतुओं के बाहरी और भीतरी कंकाल भी कार्बोनेट लवणों से बने होते हैं।
जल की तरह कार्बन का भी विभिन्न भौतिक एवं जैविक क्रियाओं के द्वारा पुनर्चक्रण होता है-
क्लोरोफिल युक्त हरे पादपों की पत्तीयों द्वारा रंध्रो की सहायता से प्रकाश संश्लेषण के समय वायुमण्डल से C*O_{2} को पहण किया जाता है और के अपचयन से ग्लूकोज (C_{6}*H_{12}*O_{6}) का निर्माण होता है। C*O_{2}
श्वसन के समय C_{6}*H_{12}*O_{6} को O_{2} की उपस्थिति में पुनः C*O_{2} में बदल दिया जाता है। यह कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में वापस चली जाती है।
जानवर और पौधे अंततः मर जाते हैं, और विघटित होने पर, कार्बन वापस वायुमंडल में छोड़ दिया जाता है।
कुछ कार्बन जो वायुमंडल में वापस नहीं छोड़ा जाता, अंततः जीवाश्म ईंधन बन जाता है।
फिर इन जीवाश्म ईंधन (पेट्रोलियम उत्पाद, कोयला और प्राकृतिक गैस) का उपयोग (दहन) मानव निर्मित गतिविधियों के लिए किया जाता है, जो अधिक कार्बन को वायुमंडल में वापस मुक्त करता है।
ग्रीन हाउस प्रभाव
शीशे (glass) द्वारा ऊष्मा को रोक लेने के कारण शीशे के अंदर का तापमान बाहर के तापमान से काफी अधिक हो जाता है। ठंडे मौसमों में ऊष्ण कटिबंधीय पौधों को गर्म रखने के लिए आवरण बनाने की प्रक्रिया में इस अवधारणा का उपयोग किया गया है। इस प्रकार के आवरण को ग्रीन हाउस कहते हैं।
वायुमंडलीय प्रक्रियाओं में भी ग्रीन हाउस होता है। कुछ गैसें (कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्स आक्साइड (N.O), मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, जलवाष्प) पृथ्वी से ऊष्मा को पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर जाने से रोकती हैं।
वायुमंडल में विद्यमान इस प्रकार की गैसों में वृद्धि संसार के औसत तापमान को बढ़ा सकती है। इस प्रकार के प्रभाव को ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं।
कार्बन डाइऑक्साइड भी एक इसी प्रकार की ग्रीन हाउस गैस है। वायुमंडल में विद्यमान कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि से वायुमंडल में ऊष्मा की वृद्धि होगी। इस प्रकार के कारणों द्वारा वैश्विक ऊष्मीकरण (global warming) की स्थिति उत्पन्न हो रही है। जिससे ग्लेशियर पिघल रहे हैं एवं समुद्री जल का स्तर बढ़ रहा है।
D. ऑक्सीजन-चक्र
- ऑक्सीजन पृथ्वी भूपर्पटी सबसे अधिक मात्रा (46.6%) में पाया जाने वाला तत्व है।
- इसकी मात्रा मूल रूप में वायुमंडल में लगभग 21 प्रतिशत है।
- वायु में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में भी पाई जाती है।
- पृथ्वी के पटल में यह धातुओं तथा सिलिकन के ऑक्साइडों के रूप में पाई जाती है। यह कार्बोनेट, सल्फेट, नाइट्रेट तथा अन्य खनिजों के रूप में भी पाई जाती है।
- यह जैविक अणुओं; जैसे-कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, न्यूक्तिक अम्ल और वसा का भी एक आवश्यक घटक है। वायुमंडल से ऑक्सीजन का उपयोग तीन प्रक्रियाओं में होता है- श्वसन, दहन तथा नाइट्रोजन के ऑक्राइड के निर्माण में।
- वायुमंडल में ऑक्सीजन में केवल प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया के द्वारा लौटती है।
ओजोन परत
- पृथ्वी की सतह से करीब 30 किलोमीटर की ऊंचाई (समतापमण्डल में) पर ओजोन (O3) गैस की एक पतली परत (3 मिमी मोटी) पाई जाती है।
- ऑक्सीजन (O₂) के सामान्य द्विपरमाण्विक अणु के विपरीत ओजोन (O3) विषैला होता है।
- यह सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों को अवशोषित कर पृथ्वी की सुरक्षा करती है
- ओजोन परत का क्षय ऊपरी वायुमंडल में मौजूद ओजोन परत का पतला होना है। ऐसा तब होता है जब वायुमंडल में क्लोरीन और ब्रोमीन परमाणु ओजोन के संपर्क में आते हैं और ओजोन अणुओं को नष्ट कर देते हैं।
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) की उपस्थिति वायुमंडल में ओजोन परत के ह्रास के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है।
- ओजोन परत की मोटाई डॉब्सन में मापी जाती है।
- अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छिद्र पाया गया।
- ओजोन परत के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस हर साल 16 सितंबर को मनाया जाता है।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का प्रस्ताव 1987 में ओजोन-क्षयकारी पदार्थों के उपयोग, उत्पादन और
- आयात को रोकने और पृथ्वी की ओजोन परत की रक्षा के लिए किया गया था।
E. फॉस्फोरस चक्र
गार फॉस्फोरस जैविक झिल्लियाँ, न्यूक्लिक एसिड (अम्ल) तथा कोशिकीय ऊर्जा स्थानांतरण प्रणाली का एक प्रमुख घटक है।
अनेक प्राणियों को अपना कवच, अस्थियाँ एवं दाँत आदि बनाने के लिए इसकी आवश्यकता होती है। फॉस्फोरस का प्राकृतिक भंडारण चट्टानों में है जो कि फॉस्फेट के रूप में फॉस्फोरस को संचित किए हुए हैं। जब चट्टानों का अपक्षय होता है तो थोड़ी मात्रा में ये फॉस्फेट भूमि के विलयन में घुल जाते हैं एवं उन्हें पादपों की जड़ों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। शाकाहारी और अन्य जानवर इन तत्त्वों को पादपों से ग्रहण करते हैं। कचरा उत्पादों एवं मृत जीवों को फॉस्फोरस विलेयक जीवाणुओं द्वारा अपघटित करने पर फॉस्फोरस मुक्त किया जाता है।
फॉस्फोरस एवं कार्बन चक्र के बीच दो व्यापक अंतर हैं। पहला बरसात के द्वारा वायुमंडल में फॉस्फोरस का निवेश, कार्बन निवेश की अपेक्षा बहुत कम होता है।
दूसरा, जीवों और पर्यावरण के बीच फॉस्फोरस का गैसीय विनिमय बिल्कुल नगण्य होता है।
F. सल्फर चक्र / गंधक चक्र
सल्फर अनेक प्रकार के प्रोटीन, विटामिन व एन्जाइमों के निर्माण में प्रयुक्त होता है।
गंधक (S) का मुख्य भण्डार ठोस रूप मे पृथ्वी के अंदर रहता है। आमतौर पर मिट्टी की चट्टानों और खनिजों के अंदर गहराई में दवा हुआ पाया जाता है। चट्टानों का अपक्षय और भू-तापीय छिद्र दोनों ही इसे पर्यावरण में जारी करने में योगदान करते हैं।
पौधों इसे मुख्यतः सल्फेट आयन के रूप में अवशोषित करते हैं और कार्बनिक रूपों में बदलने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
उसके बाद, सल्फर का कार्बनिक रूप जानवरों द्वारा उनके द्वारा खाए जाने वाले भोजन के माध्यम से ग्रहण किया जाता है, इससे सल्फर खाद्य श्रृंखला में ऊपर चला जाता है।
उपभोक्ता तथा उत्पादक की मृत्यु के पश्चात अनॉक्सी जीवाणु जैसे एरोबेक्टर तथा ऑक्सीकारक जीवाणु थायोबेसीलस आदी शरीर के कार्बनिक सल्फर युक्त यौगिकों को H₁S में बदल देते है।
H2S का जीवाणु द्वारा ऑक्सीकरण होता है जिससे सल्फर पुनः प्राप्त होता है।
इस कार्य में जीवाणुओं के अलावा कवक जैसे ऐस्परजिलस, न्यूरोस्पोरा आदि का विशेष योगदान होता है।
कुछ प्रकाश संश्लेषी जीवाणु जैसे हरे व बैंगनी सल्फर जीवाणु, प्रकाश संश्लेषण की क्रियाओं में H.S का उपयोग करते हैं जिससे सल्फर मुक्त होती है।
यह सल्फर, सल्फेट आयन के रूप में मृदा में रहती है। जहां से पौधों द्वारा इसे पुनः प्राप्त कर लिया जाता है।
सल्फर कई प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से सीधे वायुमंडल में छोड़ा जाता है, जैसे ज्वालामुखी विस्फोट, दलदलों में जैविक कचरे का अपघटन और अम्लीय वर्षा। सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइड वर्षा के जल से साथ घुल कर अम्लीय वर्षा करते हैं
- जीवों में पोषण
- मानव जनन तंत्र
- जनन स्वास्थ्य
- नियन्त्रण एवं समन्वय – अंतःस्रावी तंत्र (Endocrine system)
- जैव प्रक्रम – उत्सर्जन (Excretion)
- जैव प्रक्रम – परिवहन (Transportation)
- श्वसन (Respiration)
- कोशिका संरचना एवं प्रकार्य
- जैव रासायनिक चक्रण
- तापमान एवं उष्मा, तापमापी, उष्मा संचरण