जीवों में पोषण (Nutrition)
जीवित शरीर में होने वाले वे सभी प्रक्रियाएँ (Processes) या अनुरक्षण (रख-रखाव) कार्य जो जीवन के लिए अनिवार्य होते हैं, जैव प्रक्रम (biological process) कहलाते हैं। पोषण, श्वसन, उत्सर्जन तथा वहन जैव प्रक्रम के उदाहरण हैं।
सभी जीवों को जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा एवं निर्माण सामग्री के स्रोत के रूप में भोजन की आवश्यकता होती है चुंकि जन्तु अपने भोजन का संश्लेषण पादपों की तरह स्वयं (प्रकाश संश्लेषण) नहीं कर सकता। अतः यह भोजन के लिए अन्य जीव जन्तुओं पर निर्भर करता है। जिससे प्राप्त कच्चे भोज्य पदार्थ को शरीर के उपयोगी पदार्थ में बदलता है। इससे प्राप्त ऊर्जा का उपयोग विभिन्न उपापचयी क्रियाओं तथा मरम्मत व वृद्धि हेतु किया जाता है, इसे पोषण कहते हैं।
पाचन (Digestion):- जटिल खाद्य पदार्थों को पाचक
एंजाइमों (हाइड्रोलाइटिक एंजाइम) की सहायता से सरल एवं अवशोषण योग्य बनाने की प्रक्रिया पाचन कहलाती है।
पाचन एक भौतिक, रासायनिक एवं जल अपघटनिय (हाइड्रोलाइटिक) प्रक्रिया है
नोट- मुख्यतः 6 प्रकार के खाद्य पदार्थों में खनिज, विटामिन एवं जल का पाचन नहीं होता यह सीधे अवशोषित किए जाते हैं।
पाचन के प्रकार –
1. अंतः कोशिकीय पाचन :- जब पाचन की क्रिया कोशिका के अन्दर खाद्य रिक्तिका में होती है। उदाहरण- प्रोटोजोआ (अमीबा, पैरामिशीयम) एवं पोरीफेरा (स्पंज)।
2. बाह्य कोशिकीय पाचन :- जब पाचन की क्रिया कोशिका के बाहर या पाचक नाल में हो। उदाहरण- सीलेन्ट्रेटा से कोर्डेटा संघ तक के जीवो में जैसे केंचुआ (ऐनेलिडा), तिलचट्टा (आर्थोपोडा), मछली, मेंढ़क, मानव (कोडेंटा)। नोट- कुछ प्राणियों जैसे – सीलेन्ट्रेटा (हाइड्रा) एवं प्लेटीहेल्मेंथिज (प्लेनेरिया) में दोनों प्रकार का पाचन पाया जाता है।
मानव का पाचन तंत्र:- उत्पत्ति – एक्टोडर्म व एण्डोडर्म दोनों से ।
मनुष्य का पाचन तंत्र आहार नाल एवं सहायक ग्रंथियों से मिलकर बना होता है।
A. आहार नाल (Alimentary Canal):- मुख से लेकर गुदा तक वह भाग जिनसे होकर भोजन गुजरता है।
आहार नाल की लम्बाई 8-10 मीटर (32 fit)
क्रम – मुख (Mouth) ग्रसनी (Pharynx) प्रसिका / ग्रासनाल (Esophagus) आमाशय (Stomach) छोटी आँत (Small Intestine) बड़ी आँत (Big Intestine) → गुदा (Anus)
नोट- शाकाहारी जीवों की आहारनाल मांसाहारी जीवों की तुलना में अधिक बड़ी होती है। क्योंकि शाकाहारी जीवों में जटिल खाद्य पदार्थ सेल्युलोज का पाचन होता है।
आहारनाल की भित्ति (घसीका से गुदा तक) में चार स्तर होते हैं।
म्युकोसा की उपकला में श्लेष्मा ग्रंथियां पायी जाती है, जिन्हें गोब्लेट ग्रंथि कहते हैं। यह मुख्यतः श्लेष्मा (Mucus) का स्त्राव करती है।
1. मुख (Mouth):- मुख ऊपरी एवं निचले ओष्ठो द्वारा घिरा हुआ छिद्र है, जो मुख गुहा में खुलता है।
होठो पर लेबियल ग्रंथियां पायी जाती हैं, जो होठो को नम बनाए रखती है।
मुख, गुहा का ऊपरी भाग कठोर तथा कोमल तालु (palate) द्वारा बना होता है। तालु नासा गुहा (Nasal Cavity) व मुख गुहा (Oral Cavity) को अलग करता है।
कोमल तालु के आगे की ओर V आकार की एक कोमल संरचना लटकी रहती है। जिसे अलिजिव्हा / युवुला (वेलम पेलेटाई) कहते हैं।
युवुला भोजन को नासा गुहा में जाने से रोकता है।
a) जीभ (Tongue) :- मुख गुहा के अधर तल (नीचे) पर एक पेशीय जिल्ह्वा पाई जाती है जिह्वा की सतह पर स्वाद कलिकाएं (Taste buds) होती है, जो स्वाद का अनुभव करवाती हैं।
जीभ एक संवेदी अंग है।
मानव में 5 संवेदी अंग होते हैं- आंख, कान, नाक, जीभ एवं त्वचा।
जिह्वा का अग्र भाग स्वतंत्र होता है, जबकि जिह्वा का पश्च भाग होइड हड्डी से जुड़ा होता है। (जीभ में कोई हड्डी नहीं होती)
जिह्वा की मध्य अधर सतह मुख गुहा के फर्श से एक बहुत अधिक
लचीली झिल्ली द्वारा जुड़ी होती है। जिसे फ्रेनुलम लिंगवा कहते हैं।
जीभ स्वाद का पता लगाने, भोजन निगलने, बोलने, भोजन को दिशा दिखाने में सहायक है।
जीभ में सर्वाधिक फिलिफोर्म पैपीला पाई जाती है परन्तु इनमे स्वाद कलिकाएँ नहीं होती
(b) दांत (Teeth) :- मनुष्य के दोनों जबड़ों में 16-16 अर्थात कुल 32 दांत पाए जाते हैं, जो भोजन को काटने, चीरने, फाड़ने एवं चबाने में सहायक हैं।
मनुष्य के दांतों का दंतसूत्र (वयस्क) = 2123
17 के कम उम्र के व्यक्ति का दंतसूत्र = 2122
अस्थाई या दुधिया दांतों का दंतसूत्र = 2102
अस्थाई या दुधिया दांतों की संख्या = 20
छोटे बच्चे में अग्र चर्वणक दांत नहीं पाए जाते।
मनुष्य के दांतों की विशेषताएं – द्विबारदंती, विषमदंती और गर्तदंती
(नोट मनुष्य समदंती नहीं होता)
द्विबार दंती (Diphyodont) मनुष्य के जीवन काल में 20 दांत 2 बार आते हैं। अग्र चर्वणक तथा अंतिक चर्वणक ( अक्लदाढ़- अवशेषी अंग) दांत जीवन काल में एक बार आते हैं, इन्हें स्थाई दांत कहते हैं।
हाथी में ऊपरी Incisor आकर में बड़े होकर हाथी दांत (Tusk) कहलाते हैं
गर्तदंती (Thecodont) स्तनधारीयों के दांत अस्थि की गुहा में स्थित होते हैं मनुष्य के दो मैक्सीला और मैण्डीवल अस्वि से जुड़े रहते हैं।
दांत की संरचना- दांतों का अध्ययन Odontology में करते हैं।
दांतों और हड्डियों में पाया जाने वाला तत्व कैल्शियम और फॉस्फोरस है।
टूथपेस्ट में फ्लोराइड का उपयोग दांतों की सड़न को काफी हद तक कम करने के लिए किया जाता है
स्तनियों के दांत के निम्न तीन भाग होते हैं-
शिखर (crown) मसूड़ों के उपर बाहर निकला भाग-डेन्टीन का बना हुआ।
ग्रीवा (neck) – मसूड़ों में स्थित
मूल (root) – यह जबड़ों की अस्थियों की गर्तिकाओं में स्थित होते हैं इसमें अस्थि समान सीमेन्ट पाया जाता है।
दांतों के शिखर पर एक सफेद कठोर चमकदार परत पाई जाती है, जो इनेमल की बनी होती है। यह जन्तु जगत का सबसे कठोरतम भाग है। इसकी उत्पत्ति Ectoderm से होती है।
इनेमल बनाने वाली कोशिकाएँ Ameloblast कहलाती है।
इनेमल का 96% भाग अकार्बनिक लवण Ca के फास्फेट (कैल्शियम फॉस्फेट तथा कार्बोनेट पाये जाते हैं तथा जल की मात्रा लगभग 3% पायी जाती है। – दांतों का मुख्य भाग डेन्टीन का बना होता है। इसका निर्माण Odontoblast कोशिकाओं से होता है। इसकी उत्पत्ति mesoderm से होती है। दांत Ectomesodermal होता है (एक्टोमी नेोडर्मल)
c) लार (Saliva):- लार का स्त्राव लार ग्रंथियों द्वारा किया जाता है।
मनुष्य में 3 जोड़ी (कुल 6) लार ग्रंथियां पाई जाती है- पेरोटिड, सब मैक्जिलरी, सब लिंगुअल
1. कर्णपूर्व (पेरोटिड) सबसे बडी लार पंथि, वायरस के संक्रमण से होने वाला मम्पस रोग में प्रभावित अंग पेरोटिड।
2. अयोजम्भ (सब मैक्जिलरी) सबसे ज्यादा लार (लगभग 70%) का स्त्राव करने वाली।
3. अधोजिह्वा (सब लिंगुअल) – सबसे छोटी व सबसे कम (बार्थोलिन या रीविनस नलिका) लार स्त्रावित
प्रतिदिन मानव लगभग 1500 ml (1.5 lit.) लार का स्लाव करता है।
लार की pH 6.8 (हल्की अम्लीय प्रकृति)
संगठन 99.5% जल, कुछ आयन Na, K, CI, HCO₃, IgA Antibody, कुछ मात्रा में यूरिया एवं यूरिक अम्ल
लार से उपस्थित एंजाइम टायलिन या लारीय एमाइलेज (स्टार्च का माल्टोज में पाचन) और लाइसोजाइम (जीवाणुओं की कोशिका भित्ति गला कर सुरक्षा करना)
लाइसोजाइम अश्रु ग्रंथियों के स्राव (आँसू) और नाक के बलगम, और स्वेद (पसीने) में भी पाया जाता है
भोजन/कार्बोहाइड्रेट/स्टार्च (30%) के पाचन की शुरुआत मुख से होती है।
लार की किया के पश्चात भोजन बोलस कहलाता है।
भोजन में उपस्थित अम्ल को उदासीन करने का कार्य लार में उपस्थित बाइकार्बोनेट आयन करते हैं।
2. ग्रसनी (Pharynx) :- मुख गुहा एवं ग्रासनली (oesophagus) के मध्य का भाग ग्रसनी होती है। यह पाचन एवं श्वसन की प्रक्रिया का एक सामान्य (comman) अंग हैं। इसके तीन भाग है-
1. मुख ग्रसनी (Oropharynx), 2. नासा ग्रसनी (Nasopharynx), 3. कंठ प्रसनी (Laryngopharynx)
> मुख गुहा के पीछे ऊपर स्थित कोमल तालु ग्रसनी को दो भागों में बांटता है, प्रसनी का ऊपरी भाग नासा प्रसनी व नीचे का भाग मुख ग्रसनी कहलाता है।
> 1 जोड़ी यूस्टेकिचन नलिका के छिद्र नासा ग्रसनी में उपस्थित होते हैं।
> मुख यसनी एवं नासा ग्रसनी जहां मिलते हैं उसे कंठ ग्रसनी कहते हैं।
3. ग्रसिका/ग्रासनाल/भोजन नाल (Oesophagus):-)
ग्रसनी के अंत में 2 छिद्र खुलते हैं- (i) घाटी (Glottis), (ii) निगल द्वार
> निगल द्वार (Gullet) के माध्यम से भोजन भोजननली में प्रवेश करता हैं यह एक पतली नलिका है, जो डायफ्राम के माध्यम से उदर गुहा में आमाशय में खुलती है।
> आहार नाल में ग्रसिका से गुदा तक क्रमाकुंचन (peristaltic) गति पाई जाती है। जिससे भोजन आगे बढ़ता है।
> सर्वाधिक क्रमाकुंचन गति आमाशय में और सबसे कम गुदा में पाई जाती है।
> यह लगभग 25 cm लम्बी पेशीय नलिका होती है, जो भोजन को मुख से आमाशय तक पहुंचाती है। >
Glottis द्वार के उपर ऐपिग्लोटिस (घाटी ढक्कन) पाया जाता है जो भोजन को श्वास नली में जाने से रोकता है। > ग्रासनाल में श्लेष्मा जैसा चिपचिपा पदार्थ पाया जाता है, जो भोजन को फिसला कर आगे बढ़ाता है।
नोट- ग्रसनी एवं ग्रासनाल में कोई एंजाइम नहीं पाए जाते इसलिए यहां भोजन का पाचन नहीं होता है।
4. आमाशय (Stomach):- यह उदर गुहा में बांयी ओर (left side) डायफ्राम के नीचे स्थित रहता है। यह आहारनाल का सबसे चौड़ा भाग है। यह थेले समान पेशीय संरचना है, जो अंग्रेजी के आकृति का दिखाई देता है।
आमाशय के तीन भाग होते हैं (1) जठरागम (Cardiac), (2) फंडस (Fundus), (3) जठरनिर्गम (Pyloric)
> आमाशय के चारों ओर पेरिटोनियम का आवरण पाया जाता है।
आमाशय में 2-3 लीटर भोजन संग्रहण लगभग 4-5 घंटे (सबसे ज्यादा) तक होता है।
आमाशय की भीतरी दीवार स्तम्भाकार एपिचीलयम से निर्मित होती हैं इसमें जठर ग्रंथि पाई जाती है, जो जठर रस (Gastric juice) का स्त्राव करती है।
> गेस्ट्रिन हार्मोन जठर ग्रंथियों से जठर रस के स्त्रावण को प्रेरित करता है।
> जठर ग्रंथियों में निम्न कोशिकाएँ पाई जाती है-
a) पेष्टिक / मुख्य (Chief cells) / जाइमोजन कोशिकाएँ यह पेप्सिनोज तथा प्रोरेनिन का स्त्राव करती है। यह कुछ मात्रा में जठरीय लाइपेज का उत्पादन भी करती है। परन्तु यह वसा के पाचन में बहुत कम सहभागिता निभाता है। प्रोरेनिन शिशुओं में पाया जाता है, वयस्क में नहीं पाया जाता।
b) ऑक्जेन्टीक/अम्लजन / Pariental cells यह मुख्य रूप से HCI तथा नैज (आंतरिक) कारक का स्त्रवण करती है।
HCI का कार्य –
1. यह निष्क्रिय पेप्सिनोजन को पेप्सिन में बदलता है यह पेप्सिन प्रोटीन का पाचन (पेन्टोन्स) करता है।
2. यह निष्क्रिय प्रोरेनिन को रेनिन में बदलता है यह रेनिन नवजातों में दुध में पाई जाने वाली केसीन प्रोटीन को केल्सीयम पैराकेसीनेट में बदल देता है। (रेनिन एंजाइम वयस्क में सामान्यतः नहीं पाया जाता)
3. यह भोजन में आए जीवाणुओं का नाश कर इसे सड़ने से बचाता है।
4. HCI (pH 1.8) भोजन पर लार की क्रिया को रोकता है, तथा आमाशय के वातावरण को अत्यधिक अम्लीय बनाता है।
> आमाशय की पेशीय दीवार के संकुचन द्वारा भोजन अम्लीय जठर रस से पूरी तरह मिल जाता है, जिसे काइम कहते हैं।
> नैज कारक विटामिन B के अवशोषण के लिए आवश्यक है।
> आमाशय की दीवारों पर चिपचिपा पदार्थ पाया जाता है। जिसे श्लेष्मा (म्युकस) कहते हैं यह आमाशय पर HCI की क्रिया से बचाता है। श्लेष्मा का स्त्राव गोब्लेट कोशिकाएँ करती है।
> HCI की अधिक्ता से पेट की अम्लता बढ़ जाती है जिसे कम करने के लिए क्षारीय पदार्थ जैसे मिल्क ऑफ़ मैग्नीशियम – Mg(OH)2, बैंकिग सोडा आदि का उपयोग किया जाता है।
> अम्लता को दूर करने वाले ये क्षारीय पदार्थ एंटासीड (Antacid) कहलाते हैं।
> जठर रस की pH (1.5-2.5) अत्यधिक अम्लीय ।
5. छोटी आंत (Small Intestine):- आमाशय जठर निर्गम छिद्र (पाइलोरीक) द्वारा छोटी आंत में खुलता है। इसकी लम्बाई लगभग 6-7 मीटर होती है। परन्तु व्यास (मोटाई) कम होने के कारण इसे छोटी आंत कहते हैं। यह पाचन तंत्र का सबसे लम्बा अंग हैं। (क्षुद्रान्त्र और बृहदान्त्र की लम्बाइयों का अनुपात 5:1)
इसके तीन भाग है-
(i) ग्रहणी (डयुडेनम) छोटी आंत का प्रथम भाग अंग्रेजी के आकृति की संरचना।
> भोजन का सर्वाधिक पाचन (एंजाइमों को क्रिया) छोटी आंत के ग्रहणी भाग में होती है।
अग्याशयी वाहिनी एवं सामान्य पित्त वाहिनी इसी भाग में खुलती हैं इनके छिद्र पर ऑड्डी की अवरोधिनी पाई जाती है।
(ii) अग्रक्षुदांत्र (Jejunum) – छोटी आंत का मध्य भाग जो ग्रहणी से अधिक लम्बा परन्तु क्षुदान्त्र (lleum) से कम लम्बा होता है।
(iii) क्षुदांत्र (Ileum) – यह छोटी आंत का अंतिम व सबसे अधिक लम्बा व कुंडलीत भाग होता है।
– छोटी आंत में अंगुली समान उभार पाए जाते हैं जिन्हें रसांकुर (villi) कहते हैं। इसमें हजारो सुक्ष्म रसांकुर (Micro Villi) होते हैं, जो आंत्र की अवशोषण सतह का क्षेत्रफल कई गुना बढ़ा देते हैं।
– इन रसांकुरो में लसीका वाहिकाएं (लेक्टीयल cells) रक्त कोशिकाएँ तथा चिकनी पेशियां पाई जाती है।
> आंत में पाई जाने वाली लसिका ग्रंथियों को पेयर के समूह तथा आंत्र ग्रंथियों को लीबरकून गर्तिकाएं कहते हैं।
लीबरकून गर्तिकाओं में कोशिकाएँ निम्न कार्य करती है-
• कलश कोशिकाएँ (Goblet cells) श्लेष्मा का स्त्राव
• आंत्रीय कोशिकाएँ – आंत्रीयरस (एंजाइम) का स्त्राव (आंत्र रस हल्का क्षारीय (pH 7.5-8) तरल होता है।)
• पेनेध कोशिकाएँ – लाइसोजाइम का स्त्राव (जो जीवाणुओं को मारता है।)
> सूक्ष्म रसांकुर ब्रश बोर्डर का निर्माण करते हैं। ब्रश बॉर्ड एवं गोब्लेट कोशिकाओं के स्त्राव आपस में मिल कर आंत्रस्त्राव अथवा सक्कस एंटेरिकस बनाते हैं।
इसमें कई एंजाइम होते है- S (सुक्रेज), M (माल्टेज), E (इरेप्सीन), L (लाइपेज), L (लेक्टेज)
> आंत्रीय रस की क्रिया से बना भोजन अब काईल कहलाता है।
> आंत्र म्युकोसा द्वारा स्त्रावित एंटेरोकाइनेज द्वारा ट्रिप्सिनोजन को सक्रिय ट्रिप्सिन में बदलता है एवं अग्नाशय रस के अन्य एंजाइमों को सक्रिय करता है।
> सर्वप्रथम खोजा गया हार्मोन सीक्रेटिन आंत्र में पाया जाता है।
6. बड़ी आँत (Big Intestine) :- इसकी लम्बाई लगभग 1.5 मीटर होती है। इसका व्यास छोटी आंत से अधिक होने के कारण इसे बड़ी आंत कहते हैं। इसके तीन भाग है 1. सीकम, 2. कोलोन, 3. रेक्टम
3. सीकम- यह बड़ी आंत का प्रथम भाग है, जो अवशेषी अंग होता है।
> इस भाग में एक 1-8 cm लम्बी अंगुली समान संरचना पाई जाती है। जिसे कृमिरूपी परिशेषिका (vermiform
appendix) कहते हैं। यह मानव में अवशेषी अंग के रूप में होता है इसलिए मानव में सेल्युलोज का पाचन नहीं होता
> यहां कुछ सहजीवी जीवाणु भी पाए जाते है, जैसे E-colie (इश्वीरियाई कोलाई यह B12 के संश्लेषण में सहायक है।), कोलीफोर्म जीवाणु etc.
b. कोलोन बड़ी आंत का सबसे लम्बा भाग है जिसके निम्न भाग है- आरोही (↑), अनुप्रस्थ (-), अवरोही (1) एवं सिग्मोइड (,)
c. मलाशय (Rectum) बड़ी आंत का अंतिम भाग है, जहां मल इकट्ठा होता है।
> मल में गंध का कारण इंडोल एवं ऐस्टोल
7. गुदा (Anus) :- यह आहार नाल का अंतिम अंग है जहां से अपचित अपशिष्ट का त्याग किया जाता है।
B. सहायक ग्रंथियां :- 1. लार ग्रंथि, 2. यकृत, 3. अग्नाशय
यकृत (Liver) :- मानव शरीर का सबसे बड़ा आंतरिक अंग।
> यह डायफ्राम के नीचे दो पालियों में पाया जाता है।
> इसका अधिकांश भाग Right side होता है।
> इसका निर्माण भ्रूण की एन्डोडर्म से होता है।
> यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि (बही स्त्रावी) है।
– इसका वजन लगभग 1.5 kg होता है।
> यकृत का अध्ययन हिपेटोलोजी में करते हैं।
> यकृत की कोशिकाएँ हिपेटोसाइट कहलाती है।
> यकृत में कुफ्फर कोशिकाएँ पाई जाती है जिन्हें महाभक्षाणु भी कहते हैं क्योंकि यह जीवाणुओं एवं जीर्ण-शीर्ण रक्ताणुओं का विघटन करता है।
> RBC के विघटन से पित्त वर्णक बिलुरुबीन (पीला) एवं बिलिवर्डीन (हरा) बनता है।
> यकृत में पित्त रस का निर्माण होता है, जो यकृत के नीचे स्थित पिताशय में संग्रहित होता है।
पित्त रस (bile juice) – वसा का पायसीकरण (छोटे-छोटे टुकड़ों में बदलना) कर वसा के पाचन में सहायता करता है परन्तु इसमें पाचन एंजाइम नहीं पाए जाते।
> पित्त रस में पित्त वर्णक (विलुरुबीन एवं बिलीवर्डीन), पित्त लवण, कोलेस्ट्रोल, लेसीचिन आदि पदार्थ पाए जाते हैं।
इसकी प्रकृति क्षारीय होती हैं। pH (7.4-7.8)
> यकृत से सम्बंधित रोग हेपेटाइटिस, सिरोसिस (अधिक शराब से) पीलिया etc.
> यकृत को शरीर की प्रयोगशला भी कहते हैं। यह शरीर का मुख्य उपापचयी अंग है।
यकृत के कार्य –
> जन्तुओं में भोजन का संचय ग्लाइकोजन के रूप में यकृत में होता है। जबकी पादपों में भोजन का संचय स्टार्च (मंड) के रूप में होता है।
I. विएमिनीकरण एवं यूरिया निर्माण अमीनो अम्ल से अमोनिया पृथक करना विएमिनीकरण तथा अमोनिया को
यकृत आर्निधिन चक्र द्वारा यूरिया में बदलता है।
II. प्लाज्मा प्रोटीन का निर्माण गामा ग्लोबुलिन्स को छोड़कर शेष सभी प्रोटीन का निर्माण करता है।
प्रोथोम्बिन व फाइब्रिनोजन रक्त स्कंदन में सहायक है।
III. हिपेरिन का संश्लेषण हिपेरिन एक प्राकृतिक प्रतिस्कंदक (Anticlotting) पदार्थ है, जो शरीर में रक्त का थक्का नहीं बनने देता।
IV. विटामिन A का संश्लेषण यकृत बीटा केरोटीन को विटामिन A में बदल देता है। नोट- त्वचा विटामिन D का निर्माण करती है। यकृत विटामिन A, D, E, K, B12 का संचय करता है विटामिन C का नहीं।
V. यकृत निराविषीकरण (विषेल पदार्थों को विषहीन बनाना) करता है।
VI. हीमोपोएसिस यकृत एवं प्लीहा भ्रूणावस्था में RBC एवं WBC का निर्माण करते हैं।
अग्राशय (Pancreas):- यह एक मिश्रित (बहिस्त्रावी एवं अन्तःस्त्रावी) ग्रंथि है।
> शरीर की सबसे बड़ी मिश्रित ग्रंथि है।
> शरीर की दुसरी सबसे बड़ी पाचक ग्रंथि है।
– अग्नाशय ग्रन्थि का बही स्वावी भाग (एशिनाई) अग्नाशय रस (पूर्ण पाचक रस) का स्त्राव करता है जिसमे निम्न एंजाइम पाए जाते हैं- ट्रिप्सिन, काइमोट्रिप्सिन, एमिलेज, लाइपेज, न्युक्लिएज
> अग्नाशय के लेंगर हेंस द्विपिकाओं की कोशिकाओं से हार्मोन का स्त्राव होता है
मानव के पाचन तंत्र की क्रिया विधि (Mechanism of digestive system of human)]
मानव के पाचन तंत्र की क्रिया निम्र चरणों में सम्पन्न होती है-
1. अन्तर्यहण (Ingestion)- भोजन को ग्रहण करने की क्रिया अन्तर्ग्रहण (Ingestion) कहलाती है।
2. पाचन (Digestion)
3. पचित भोजन का अवशोषण (Absorption of digested food) –
पचित भोजन का आंत्र की उपकला कोशिकाओं में पाये जाने वाले सूक्ष्मांकुर (microvilli) के माध्यम से रुधिर या
लसीका में स्थानान्तरण को अवशोषण कहते हैं।
> अवशोषण की मुख्य क्रिया विधियाँ सक्रिय अभिगमन एवं विसरण हैं।
> ऐमीनो अम्ल एवं ग्लूकोज का अवशोषण सक्रिय अभिगमन द्वारा रूधिर में होता है
> वसा का अवशोषण वसीय अम्लों, मोनोग्लिसराइड एवं कोलेस्टेरॉल के रूप में विसरण द्वारा लसिका में होता है।
> विटामिन व लवण सक्रिय या निष्क्रिय विधि से अवशोषित होते है।
> जल का अवशोषण केवल विसरण द्वारा होता है।
– वृहद्रांत्र में जल व कुछ विटामिन (जैसे विटामिन k) अवशोषित होते हैं।
4. स्वांगीकरण (Assimilation)- अवशोषित खाद्य पदार्थ रुधिर द्वारा कोशिकाओं में पहुँचा कर प्रोटोप्लाज्म में बदलने की प्रक्रिया स्वांगीकरण कहलाती है।
5. बहिः क्षेपण (Egestion) -भोजन का अपचित शेष भाग मल के रूप में शरीर से बाहर त्यागने की प्रक्रिया।
पाचन तंत्र से सम्बंधित रोग :-
1. मम्पस पेरोटाइड ग्रंथि में सुजन (वायरस)।
2. Acidity – अम्ल की मात्रा बढ़ना (Mg(OH), मिल्क ऑफ मेग्नीशियम – Antacid का उपयोग )
3. अल्सर अधिक अम्लीयता से आहारनाल (आंत) में घाव (पता एंडोस्कोपी से)
4. दन्तक्षय (कैविटी)- मुख की pH 5.5 से कम होने पर दांतों (इनेमल) का विघटन (उपचार दंतमंजन, कोलगेट)
5. पीलिया – बिलुरुबीन, बिलिवर्डीन की मात्रा बढ़ जाती है।
6. यकृत सिरोसिस – ऐल्कोहॉल के सेवन से यकृत कोशिकाओं का विघटन।
7. हिपेटाइटिस – वायरस जनित रोग प्रभावित अंग (यकृत)
8. मोटापा – BMI (Body mass index) मानव भार व लम्बाई का अनुपात होता है, जो 30 kg/m²से अधिक होने पर मोटापे की स्थिति कहते हैं।
9. हर्निया आंत के आस-पास की मांसपेशियां या ऊतक कमजोर होकर फट जाती है जिसके कारण आंत या मूत्राशय पेट की ऊतक दीवार को बाहर की ओर धकेलता हैं। जिससे मांसपेशी में छेद से अंग बाहर की ओर निकल आता है।
10. पाइल्स / मस्से / बवासीर रक्त वाहिनियाँ मलाशय में प्रवेश कर जाती है। जिसके कारण मल त्याग के साथ रक्त आता है एवं गुदा भाग में फुंसी का निर्माण हो जाता है।
अन्य रोग – उल्टी में आमाशय, दस्त डायरिया में छोटी आंत एवं अपच, कब्ज में बड़ी आंत प्रभावित होती है
> कोशिका के अन्दर पदार्थों का जाना Endocytosis – Phagocytosis (ठोस), Pinocytosis (तरल)
> कोशिका के बाहर पदार्थों का जाना Exocytosis
अन्य जीवों में पोषण प्राणियों के पोषण में पोषक तत्वों की आवश्यकता, आहार के अंतग्रहण (भोजन ग्रहण करने की विधि) और शरीर में इसके उपयोग की विधि सम्मिलित है
• भोजन के अंतरण की विधि विभिन्न जीवों में अलग-अलग होती है जैसे मधुमक्खी और मर्मर पक्षी (हमिंग बर्ड) पौधों का मकरंद चूसते हैं, मानव एवं कुछ अन्य जंतुओं में शिशु मां का दूध पीते हैं, अजगर जैसे सर्प वंश के प्राणी अपने शिकार को समूचा ही निकल जाते हैं। स्टार फिश (इकाइनोडर्मेटा संघ) कैलशियम कार्बोनेट के कठोर कवच वाले जंतुओं का आहार करती है कवच खोलने के बाद यह अपने मुंह से आमाशय बाहर निकालती है तथा जंतु के कोमल भागों को स्वाती है आमाशय वापस शरीर के अंदर चला जाता है आहारं धीरे-धीरे पचता है।
घास खाने वाले जंतुओं में पाचन
– यह घास को जल्दी-जल्दी निकलकर अमाशय के एक भाग में भंडारित कर लेते हैं इसे प्रथम आमाशय (रूमैन) कहते हैं।
– रूमैन में भोजन का आंशिक पाचन होता है जिसे जुगाल कहते हैं परंतु बाद में जंतु इसको छोटे पिंडों के रूप में पुनः मुख में लाता है जिसे वे चबाता रहता है इसे जुगाली करना कहते हैं जुगाली करने वाले जन्तु रुमिनेंट्स कहलाते हैं। इसमें मेथेन की गंध आती है।
इनका आमाशय चार भागों में बंटा होता है 1. रूमेन, 2. रेटिकुलम, 3. ओमेसम, 4. एबोमेसम ।
> घास में सेलुलोज की प्रचुरता होती है जो एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट है किसी रूमिनेंट्स पशु, हिरण आदि के रूमैन सेलुलोज का पाचन करने वाले जीवाणु पाए जाते हैं बहुत से जंतु एवं मानव सेलुलोज का पाचन नहीं कर सकते।
> कुछ जानवरों जैसे घोड़ा खरगोश आदि ने छोटी आंत एवं बड़ी आंत के बीच (बड़ी आंत में) एक थैली नुमा बड़ी संरचना होती है जिसे अंधनाल कहते हैं जहां भोजन का पाचन करने के लिए कुछ जीवाणु पाए जाते हैं जो मनुष्य के आहार नाल में अनुपस्थित होते हैं।
अमीबा में संभरण एवं पाचन अमीबा एक, एक कोशिकीय जीव है अमीबा निरंतर अपनी आकृति व स्थिति बदल रहता है इसकी झिल्ली पर एक या अधिक अंगुली सम्मान उभार पाए जाते हैं जिन्हें पादाभ या कूटपाद कहते हैं जो इन्हें गति देने एवं भोजन पकड़ने में सहायता करते हैं। अमीबा में खाद्य धानिया पाई जाती है जिसमें पाचक रस स्त्रावित होते हैं जो भोजन के पाचन में सहायक है।