जन्तुओं एवं पादपों का आर्थिक महत्व
पादपों का आर्थिक महत्व – वे पादप जिनसे मनुष्य के लिये उपयोगी पदार्थों की प्राप्ति की जाती है, आर्थिक दृष्टि से उपयोगी पादप माने जाते हैं। उपयोगी पादपों तथा उनके उत्पादों के अध्ययन को आर्थिक वनस्पति विज्ञान (Economic Botany) कहते हैं।
1. खाद्य पादप (Food Plants)
(क) अनाज तथा मोटे अनाज: गेहूं, चावल, मक्का, जौ, बाजरा।
(ख) दालें:- चना, मूंग, उड़द, अरहर, मोठ।
(ग) सब्जियाँ:- आलू, बैंगन, टमाटर, कडू, भिण्डी।
(घ) फलः अनार, संतरा, केला, सेब।
2. सहखाद्य पादप (Food Adjuncts)
(क) मसाले तथा गर्म मसालेः- हल्दी, मिर्च, काली मिर्च, धनिया।
(ख) पेय पदार्थः चाय, कॉफी।
3. औषधीय पादप (Medicinal Plants)
(क) औषधीय पादपः- अश्वगंधा, गिलोय, सफेद मूसली, नीम, अतीस, अफीम, सर्पगन्धा
(ख) धूम्रपान, चर्वण तथा मादक पदार्थः तम्बाकू, सुपारी, भांग
4. औद्योगिक पादप (Industrial Plants)
(क) रेशे वाले पादपः- कपास, जूट, पटसन
(ख) टिम्बर पादपः- सागवान, शीशम
(ग) रबड़ पादपः पारा रबड़
(घ) गोंद तथा रेजिन्सः- बबूल, चीड़
(ड) वाष्पशील तेलः- चन्दन, मोगरा
(च) वसीय तेलः- सरसों, मूंगफली, नारियल, अरण्ड
(छ) शर्करा व स्टार्चः- गन्ना, चुकन्दर, अरारोट, साबूदाना
A. खाद्यान्न फसलें (Cereal Crops)
(1) चावल (Rice): –
- वैज्ञानिक नाम ओराइजा सेटाइवा (Oryza sativa)
- चावल की फसल को धान कहा जाता है।
- यह एक खरीफ की फसल है।
- विश्व मे सर्वाधिक प्रयोग किया जाने वाला अनाज है जिसके उत्पादन में प्रथम स्थान पर चीन व द्वितिय स्थान पर भारत है।
- सामान्यतः अनाज पादप कुल ग्रेमिनी या पोएसी (एकबीजपत्री पौधे) के सदस्य होते हैं।
- चावल स्टार्च का एक अच्छा स्त्रोत है। (स्टार्च परीक्षण के लिए आयोडीन का उपयोग)
- चावल विटामिन B का अच्छा स्त्रोत होते है
- चावल की छीलन पर विटामिन B या थाइमीन पाई जाती है इसलिए चावल की पॉलिश करने पर विटामिन B कम हो जाता है एवं बैरी बैरी रोग हो जाता है।
- चावल की वह किस्म जिसे जैव प्रौद्यौगिकी द्वारा बनाया गया है जिसमें विटामिन ए प्रचुर मात्रा में पाया जाता है- गोल्डन राईस या सुनहरा चावल
- चावल में ओराइजीन प्रोटीन भी पाई जाती है।
- इसकी उन्नत किस्में बासमती, स्वर्णदाना, जया, रत्ना, सोना आदि है
- चावल की बासमती फसल प्रसिद्ध जैव पेटेंट है
- अनाजों का राजा चावल तथा अनाजों की रानी मक्का को कहा जाता है।
- फलों का राजा आम (Mangifera indica) को तथा फलों की रानी लीची होती है। फूलों का राजा गुलाब तथा फूलों की रानी ग्लोडियोलस को कहा जाता है।
(2) गेहूं (Wheat) –
- वैज्ञानिक नाम ट्रिटिकम एस्टाइवम (Triticum aestivum)
- कुल (family) – प्रेमिनी (Gramineae)
- गेहूँ एक एकवर्षीय शाक है
- गेहूं में ग्लूटैमिक अम्ल पाया जाता है।
- गेहूं में ग्लूटिन प्रोटीन पाई जाती है जिसकी अधिकता से सीलिएक रोग हो जाता है जो की एक स्व प्रतिरक्षात्मक (
- Auto Immune Disease) है जिसमें छोटी आंत प्रभावित होती है।
- इसे रबी की फसल के रूप में उगाया जाता है इसकी उन्नत किस्में सोनालिका, कल्याण सोना, शर्बती सोनारा आदि हैं।
(3) मक्का (Maize) :
- वैज्ञानिक नाम जीआ मेज (Zea mays)
- इसे भी खरीफ फसल के रूप में उगाया जाता है इसकी उन्नत किस्में विजय, शक्ति, रतन आदि है
- मक्का एक C4 पादप (मक्का, गन्ना और ज्वार) है
- मक्के का भुट्टा नर पुष्पक्रम (Tassel) होता है।
- मक्के को अनाज की रानी कहा जाता है।
- मक्के से पॉपकॉर्न बनाये जाते हैं।
(4) बाजरा (Pearl millet) –
- वैज्ञानिक नाम पेनिसिटम ग्लौकम / अमेरिकेनम / टाईफाइडिस
- इसे भी खरीफ फसल के रूप में उगाया जाता है
- अनाजों में सर्वाधिक सूखा सहने की क्षमता बाजरे में पाई जाती है।
- यह शुष्क क्षेत्रों का प्रमुख भोजन है।
- बाजरे की प्रमुख किस्म पूसा संकर है
- बाजरे का जोगिया / हरित बाली रोग (Green ear or Downy mildew disease) स्क्लेरोस्पोरा प्रेमिनिकोला कवक के कारण होता है।
B. दालें (Pulses)
ये प्रोटीन के उत्तम स्त्रोत हैं जो लेग्युमिनोसी कुल के सदस्य है, दलहनों की जडों में राइजोबियम जीवाणु नाईट्रोजन का स्थिरीकरण करता है अतः ये मिट्टी के लिए जैव उर्वरक का कार्य करती हैं। कुछ प्रमुख दालें-
चना – साइसर ऐराइटिनम (Gram – Cicer arietinum)-
यह रबी की फसल है इसके उत्पादन की दृष्टि से विश्व में भारत प्रथम स्थान पर है इसे दालों का राजा कहते हैं
2. मटर – पाइसम सेटाइवम (Pea Pisum sativum)
3. मूँगफली – ऐरेकिस हाइपोजिया (Ground nut – Ara-chis hypogea) भारत विश्व में मूँगफली का सबसे बड़ा उत्पादक है
4. सोयाबीन – ग्लाईसीन मैक्स (Soyabean Glycine max) इसमें सर्वाधिक प्रोटीन पाई जाती है (42%)
C. तेल उत्पादक पौधे (Oil yielding plants)
- ये जटिल कार्बनिक यौगिक है जो हाइडोकार्बन, एस्टर, एल्कोहाल, एल्डीहाइड आदि के बने होते हैं। तिलहन फसलों से वाष्पशील या सुगंध तेल एवं अवाष्पशील या वसीय तेल पाये जाते हैं।
- वाष्पशील तेल सामान्यतः पुष्पीय अंगों से निकाले जाते हैं जबकि अवाष्पशील तेल सामान्यतः बीज से निकाले जाते हैं।
- वाष्पशील तेलों की विशेष सुगंध एोमैटिक हाइड्रोकार्बनों के कारण होती है।
(i) खाने योग्य तेल मूँगफली का तेल, तिल का तेल, नारियल का तेल, सोयाबीन का तेल, अलसी का तेल, सूरजमुखी का तेल आदि
(ii) अखाद्य तेल- अरण्डी का तेल, तारपीन का तेल आदि
(iii) सुगन्धित तेल कपूर, चन्दन, लौंग, खस का तेल आदि
- मूंगफली /Ground Nut (अरेकिस हाइपोगिया) – सोयाबीन के बाद प्रोटीन का सबसे अच्छा स्त्रोत है (26%)।
- मूंगफली मृदा में नाईट्रोजन की मात्रा बढ़ा कर उर्वरता बढाता है।
सरसों (Mustard)- मस्टर्ड गैस एक जहरीली गैस है जिसे सरसों की गैस व प्रथम विश्व युद्ध की गैस कहा जाता है।
अलसी आमेगा 3 / लीनोलीनिक वसीय अम्ल का बहुत अच्छा स्त्रोत है जो कि रुधिर कोलेस्ट्रोल को कम करता है।
- नारियल का भ्रूणपोष नारियल का खाने योग्य पोषक पदार्थ है।
- अण्डाशय से निर्मित फल सत्य फल या वास्तविक फल कहलाते हैं।
- परिपक्व अण्डाशय को फल कहते हैं।
- जिन फलों का निर्माण अण्डाशय के अतिरिक्त अन्य किसी स्थान से होता है उन्हें असत्य फल या आभासी फल कहते है- उदाहरण- सेब, नाशपाती आदि
- बिना निषेचन के फल निर्माण की प्रक्रिया अनिषेकफलन या पार्थेनोकार्पी कहलाती है। केला, अंगूर आदि का निर्माण इस प्रक्रिया द्वारा किया जा सकता है।
- फलों में विटामिन डी को छोडकर लगभग सभी विटामिन अच्छी मात्रा में पाये जाते हैं।
- मसालों का राजा काली मिर्च को एवं मसालों की रानी छोटी इलायची को कहा जाता है।
- लौंग को पुष्प कलिका से प्राप्त किया जाता है।
महत्वपूर्ण मसाले (Important Spices) –
काली मिर्च, जीरा, लाल मिर्च, सौंफ, धनिया, जीरा, लौंग, अजवायन, हल्दी, हींग, अदरक, दालचीनी, इलायची आदि
पेय पदार्थ (Beverages)-
चाय तथा काफी बहुतायात से उपयोग में लिये जाने वाले पेय पदार्थ है चाय (थिन) कामेलिया साइनेन्निरस (Tea Camellia sinensis) पौधे की पत्तियों से तथा काफी (केफीन) काफिया अरेबिका (Coffee Coffea arabica) पौधे के भुने हुए बीजों से तैयार की जाती है।
सब्जियाँ (Vegetables) –
अनाज व दालों की भाँति सब्जियाँ भी मानव के संतुलित आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है ये विटामिन, खनिज तत्व, रेशे, जल आदि के प्रमुख स्त्रोत हैं ये पादप के विभिन्न भागों जैसे- मूल, स्तम्भ, पर्ण, पुष्प, फल, बीज आदि से प्राप्त की जा सकती है –
1. जड़ों से प्राप्त– गाजर, मूली, शलजम, शकरकन्द
2. स्तम्भ से प्राप्त– आलू, अरबी
3. पर्ण से प्राप्त- पालक, मेथी
4. पुष्पक्रम से प्राप्त– फूल, गोभी
5. फल से प्राप्त- टमाटर, बैंगन, ग्वारफली, भिण्डी
औषधीय पादप (Medicinal plants)-
पादप के विभिन्न भागों जैसे जड़, तना, पर्ण, पुष्प, फल, बीज आदि में औषधीय महत्व के रासायनिक पदार्थ पाए जाते हैं
इनमें से कुछ औषधीय पादप इस प्रकार हैं-
1. स्तम्भ से प्राप्त- हल्दी (Curcuma longa), अदरक, लहसुन, गूगल
2. मूल से प्राप्त – सर्पगन्धा, सफेद मूसली, अश्वगंधा (विचेनिया सोम्नीफेरा)
3. छाल से प्राप्त- कुनैन (सिनकोना वृक्ष की छाल से प्राप्त मलेरिया के उपचार में उपयोगी)
4. पर्ण से प्राप्त – ग्वारपाठा (Aloe vera), तुलसी (ओसिमम सेक्टुम) एवं ब्राहमी
5. फल से प्राप्त- अफीम (पैपेवर सोम्निफेरम) एवं आँवला (इम्बलिका ऑफिसिनालिस) (विटामिन C का सर्वोच्च स्लोत)
- अफीम पादप, पैपेवर सोमनिफेरम के कच्चे फल से प्राप्त दूध के सुखाने से बनता है। दूध में लगभग 30 प्रकार के
- एल्केलॉयड पाए जाते है, इनमें से मार्फीन, कोडिन, निकोटिन, सोमनिफेरिन, पैपेवरिन प्रमुख है। मार्फीन व कोडिन का प्रयोग दर्द निवारक दवा बनाने हेतु किया जाता है
रेशे उत्पादक पौधे (Fibre yielding plants) –
पादप के विभिन्न भागों जैसे तना, पर्ण, बीज आदि से मोटी भित्तीयुक्त संरचना बनती है, जिससे वस्ल, बोरे, रस्सी आदि बनाये जाते है, उन्हें रेशे कहते है। जैसे जूट (पौधे के तने से प्राप्त), कपास या रूई (पौधे के फल (तंतु बीज कोष्ठक) से प्राप्त) एवं नारियल (Cocos nucifera)
इमारती काष्ठ (Timber) – बहुवर्षीय बीज पत्री एवं अनावृतबीजी वृक्षों के द्वितीयक जाईलम को काष्ठ (Wood) कहते हैं वह काष्ठ जिससे फर्नीचर, दरवाजे, खिड़कियाँ आदि बनायी जाती है, उसे इमारती काष्ठ (Timber) कहते हैं कुछ प्रमुख इमारती काष्ठ उत्पादक वृक्ष इस प्रकार हैं सागवान, साल, शीशम, रोहिडा (राज्य पुष्प) या मारवाड सागवान (Tecomella undulata), खेजड़ी (राज्य वृक्ष) प्रोसोपिस सिनेरेरिया • क्रिकेट का बल्ला विलो लकड़ी से बनता है
• इंडिगोफेरा पौधे की पत्तियों से नीला रंजक (Blue dye) प्राप्त किया जाता है
• एगारोज जेल (electrophoresis में उपयोग) समुद्री घास से प्राप्त किया जाता है
- तम्बाकू पादप निकोटिएना टोबेक्कम, कूल सोलेनेसी की पत्तियों से प्राप्त किया जाता है। पत्तियों में 1-8 प्रतिशत तक निकोटिन नामक एल्केलॉयड पाया जाता है
- पेट्रो-पादप वे पौधे हैं जो पेट्रोल के पूरक के रूप में पेट्रोलियम पदार्थ का उत्पादन करते हैं।
- ये पौधे या शैवाल हाइड्रोकार्बन यौगिक या इथेनॉल का उत्पादन करते हैं।
- कैलोट्रोपिस प्रोसेरा, पेडिलेंथस मैक्रोकार्पस, कोपीफेरा लेंग्सडॉफी, और जेट्रोफा कर्कस पेट्रो-फसलों के उदाहरण है।
जन्तुओं के आर्थिक महत्व (Economic importance of animals)
प्राचीन काल से ही मानव विभिन्न जन्तुओं को पालतू बनाकर उनका उपयोग भोजन एवं अन्य उपयोगी सामग्री प्राप्त करने के लिए करता आया है नई तकनीकी विकसित हो जाने के कारण आज इन जन्तुओं की नई किस्मों को पालना अत्यन्त सरल व लाभप्रद हो गया है विभिन्न जन्तुओं जैसे मधुमक्खी, रेशमकीट, लाख कीट सवंर्धन, मोती या मुक्ता संर्वधन, प्रवाल एवं प्रवाल भित्तियाँ, मछली, पशु आदि के पालन एवं उनकी उत्तम नस्लों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
1. मधुमक्खी पालन (Apiculture) –
मधुमक्खी पादपों में परागण की क्रिया के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण कीट है इसके पालन से मनुष्य को दोहरा लाभ होता है मधुमक्खी के पालन से परागण की क्रिया आसानी से होने के कारण फसल की पैदावार में बोत्तरी होती है मधुमक्खी से प्राप्त शहद का उपयोग मनुष्य हजारो वर्षों से करता आया है यह उच ऊर्जा युक्त भोज्य पदार्थ होने के साथ-साथ औषधि के रूप में भी उपयोग में लिया जाता
मधुमक्खी संघ आर्थोपोडा (सबसे बड़ा संघ) के वर्ग इन्सैक्टा का एक सदस्य है, जो बहुरुपिता (Polymorphism) व कार्य विभाजन दर्शाने वाला सामाजिक कीट है। मधुमक्खी एक उपयोगी कीट है जिससे शहद (Honey) तथा मोम (Wax) जैसे लाभदायक पदार्थ प्राप्त होते हैं। मधुमक्खी पालन की तकनीक को ही मधुमक्खी पालन या एपीकल्चर कहते हैं।
मधुमक्खी की महत्वपूर्ण जातीयाँ (Important Species of Honey-bee)-
(i) एपिस डोर्सेटा या रॉक मधुमक्खी (Apis dorsata or Rock-bee)– इसे सारंग मक्खी भी कहते हैं। यह सबसे बड़े आकार की होती है तथा सर्वाधिक मात्रा में शहद उत्पन्न करती है। गुस्सैल (Aggressive) एवं प्रवासी प्रकृति होने के कारण इन्हें पालना सम्भव नहीं है।
(ii) एपिस इन्डिका अथवा भारतीय मोना मक्खी (Apis indica or Indian Mona-bee) – यह सम्पूर्ण भारत में मिलने वाली, सारंग मक्खी से छोटी तथा शान्त स्वभाव की होती है। इसके प्रति छत्ते से 3-4 किग्रा, शहद प्राप्त होता है। यह आसानी से पाली जा सकती हैं। (iii) एपिस फ्लोरिया अथवा भृंगा मक्खी (Apis florea or Bhringa bee)- यह आकार में सबसे छोटी व डरपोक प्रकृति की होती है। इसके एक छत्ते से केवल 250 ग्राम शहद प्राप्त होता है, अतः व्यापारिक दृष्टि से उपयोगी नहीं है।
iv) एपिस मैलीफेरा (Apis mellifera) यह यूरोपियन मक्खी भी कहलाती है तथा शान्त प्रकृति की होती है। इसके ( प्रति छत्ते से मोना मक्खी की अपेक्षा 9-10 गुणा अधिक शहद मिलता है। यह व्यापारिक दृष्टि से सर्वाधिक उपयोगी सकी इटालियन किस्म अधिक महत्वपूर्ण है।
मधुमक्खी का सामाजिक संगठन (Social Organisation of Honey-bee) – मधुमक्खी के निवह (Colony) में उच्च स्तरीय सामाजिक संगठन पाया जाता है जो कि विकसित प्रकार का श्रम विभाजन दर्शाता है। मधुमक्खियों में तीन प्रभेद (Castes) पाये जाते हैं-
(i) रानी (Queen) – पूरे निवह में केवल एक बड़े आकार की रानी मक्खी होती है। इसको रॉयल जैली नामक उत्तम भोजन दिया जाता है। इसका कार्य केवल प्रजनन करना होता है।
(ii) नर या ड्रोन (Drone)– ये अनिषेचित अण्डों से विकसित होते हैं तथा इनका कार्य केवल रानी के साथ मैथुन कर अण्ड- निषेचन करना होता है
(iii) श्रमिक (Workers) ये हजारों की संख्या में होते हैं तथा ये निषेचित अण्डों से उत्पन्न, बन्ध्य मादाएँ होती हैं। ये निवह के समस्त आन्तरिक व बाहरी कार्य करते हैं। इनका कार्य परागकण एकत्रीकरण, शहद व मोम निर्माण, भोजन संग्रह व छत्ते की सुरक्षा करना होता है।
- मधुमक्खी का लार्वा मैगट कहलाता है।
- मधुमक्खी में अनिषेक जनन (पार्थेनोजेनेसिस) पाया जाता है। मधुमक्खी पादपों में परागण की क्रिया के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण कीट है
- शहद में मुख्यतः फ्रक्टोज शर्करा पाई जाती है।
- धुमक्खियों द्वारा पौधों के पुष्पों में स्थित मकरन्दकोशों से स्रावित मधुरस से तैयार किया जाता है
- बारूदी सुरंगों का पता लगाने में मधुमक्खी का उपयोग किया जाता है।
2.रेशमकीट पालन (Sericulture) –
- व्यापारिक दृष्टि के कच्चा रेशम (Raw silk) / प्राकृतिक रेशम प्राप्त करने के लिए रेशमकीटों का पालन सेरीकल्चर या सिल्क फार्मिंग कहलाता है।
- सर्वप्रथम सन् 2697 बी.सी. में चीन के क्वांग टी (K Wang Ti), प्रदेश की महारानी लोट्जू (Lotzu) ने रेशम निर्माण की खोज की।
- रेशम कीट की प्रमुख प्रजाती शहतूत रेशम कीट बॉम्बिक्स मोराई (शहतूत के पेड की पत्तीओं में)
- रेशम कीट वॉम्बिक्स मोराई ऑर्थोपोडा संघ के इन्सेक्टा वर्ग में लेपिडोप्टेरा गण का सदस्य है
- सर्वाधिक रेशम मलबरी प्रकार का उत्पादित होता है जो कि बोम्बिसाइडल कुल के कीट बॉम्बिक्स मोराई से प्राप्त होता है।
- प्राकृतिक रेशम कीट रेशा (Insect Fibre) होता है, जिसे रेशम के कीड़े के कोकून (Cocoon) से प्राप्त किया जाता के शरीर पर लपेटने से कोकून का निर्माण होता है।
- कीट के प्यूपा (Pupa) द्वारा धागे को स्वयं > रेशम कीट में रेशम ग्रंथियां होती हैं जिनसे तरल का स्त्राव होता है जो वायु के सम्पर्क में आते ही धागे का निर्माण करता है।
- रेशम कीट विपरीत लिंग को आकर्षित करने के लिए बाम्बीकॉल हार्मोन (फेरोमोन) का स्त्रावण करते हैं।
- भारत रेशम की सभी पाँचों वाणिज्यिक किस्मों (मलबरी, ट्रॉपिकल टसर, ओक टसर, ईरी और मूंगा) का उत्पादन करने वाला अकेला देश है।
- रेशम का धागा एक प्रोटीन संरचना है, जो ताप का कुचालक होता है।
- कपास एवं जूट प्राकृतिक बहुलक (Polymer) सेल्यूलोज़ से बने होते हैं।
- मूंगा रेशम का उत्पादन सिर्फ भारत में होता है।
- भारत में सर्वाधिक उत्पादन मलबरी रेशम का होता है।
- रेशमी वस्त्र उत्पादक शीर्ष राज्य कर्नाटक तथा असम हैं।
- ईरी एवं मूंगा का सर्वाधिक उत्पादन असम में होता है।
- रेशम मकड़ियों द्वारा उत्पादित रेशा गॉसमिर कहलाता है
रेशम कीट का जीवन चक्र-
I. अण्डा-8-10 दिन रेशम कीट में आंतरिक निषेचन के बाद लार्वा अवस्था आती है।
II. लार्वा/इल्ली/ कैटरपिलर लार्वा रेशमकीट के लार्वा को कैटरपिलर (Caterpillar) कहा जाता है यह सबसे लम्बी व सर्वाधिक सक्रिय अवस्था (30-35 days) (7.5 cm length) है। रेशम कीट की लार्वा अवस्था में पाई जाने वाली एक जोडी रेशम ग्रंथियां लार ग्रंथियों में रूपान्तरित हो जाती है। लार्वा अवस्था में कीट रेशम की पत्तियों का खाता है लेकिन विकास के बाद पत्तियों को खाना बन्द कर देता है। फिर यह रेशम के धागे को स्वयं के शरीर पर लपेट कर कोया या कोकून बनाता है जिससे नई अवस्था आती है। Crysalis कहते हैं।
IV. शलभ / Insect/कीट प्यूपा अवस्था के 10-12 दिन बाद वयस्क कीट का निर्माण होता है।
कोकून से रेशम प्राप्त करने के लिए कोकून या कोया को गर्म पानी में डालकर उबला जाता है या ओवन में रख दिया जाता है जिससे कीट मर जाता है इस क्रिया को स्टिफलिंग कहा जाता है। इस प्रक्रिया से रेशम ढीला हो जाता है जिसे रीलिंग विधि द्वारा उधेडा जाता है।
• एक कोया से 1000-1200 मीटर लम्बा रेशम प्राप्त किया जाता है।
• 1 कोकून का भार 1.8 से 2.2 किग्रा होता है।
• रेशम का भीतरी भाग फाइब्रिन प्रोटीन एवं बाहरी भाग सिरीसिन प्रोटीन का बना होता है।
3. मत्स्यपालन (Pisciculture) –
मछलियों की उपयोगी तथा उच्च उत्पादक क्षमता से युक्त प्रजातियों का नियन्त्रित परिस्थितियों में संवर्धन करने को मत्स्यपालन कहते हैं। मछलियाँ प्रोटीन का अति उत्तम स्रोत हैं। प्रोटीन्स के अतिरिक्त इनमें खनिज लवण, विटामिन (विशेषकर ए एवं डी) तथा स्वाध्यप्रद वसाएँ भी प्रचुरता में पाई जाती है। अतः मछली अपने आप में एक सम्पूर्ण आहार है।
- मछलियों समेत कुछ अन्य जलीय जीवों (प्रॉन, लोब्स्टर, मौलस्का आदि) के पालन व संवर्धन को जल सबंर्धन या जलकृषि (Aquaculture) कहते हैं।
- वर्तमान में भारत का विश्व में समुद्रीय भोज्य उत्पादन की दृष्टि से छठवां स्थान है।
वर्धनशील मछलियों के प्रकार (Types of Cultivable Fishes)-
1. देशज (Indigenous) या स्वच्छ जल में प्राकृतिक रूप से पायी जाने वाली मछलियाँ जैसे मेजर र्प (Major carps) – कतला, रोहू, मृगला लॉच, और पर्च
(2) लवणजलीय मछलियाँ जो अलवण जल (Fresh water) के लिए अनुकूलित हो गयी हों जैसे चानोस (Chanos), पॉम्पेनो, मुलेट्स (Mullets)।
(3) विदेशी मछलियाँ (Exotic fishes) जो दूसरे देशों से लायी गयी हैं जैसे मिरर कार्प (Mirror carp), चीनी कार्य (Chinese carp), कूसियन कार्य (Crucian carp) तथा सामान्य कार्प (Common carp)- गैम्बूशिया
- मलेरिया के जैविक नियंत्रण में गैम्बूशिया मछली का प्रयोग किया जाता है क्योंकि यह मच्छरों का भक्षण करती है।
- मछली सबसे सस्ती एवं आसानी से पाचन योग्य जंतु प्रोटीन मानी जाती है।
- रोहू (labeo rohita): भारत में पाई जाने वाली सबसे स्वादिष्ट मछली, जिसे टापरा या रूई नाम से भी जाना जाता है।
- कतला (Catla): देश में सबसे ज्यादा मात्रा में उत्पादित की जाने वाली मछली जो बहुत तेजी से वृद्धि करती है।
- मछली के तेल में या कोड लीवर ऑयल में विटामिन ए एवं डी पाये जाते हैं।
- मछली पालन में पाली जाने वाली मछलियों को मांसाहारी मछलियां खा जाती है इसके नियंत्रण के लिए महुआ की खली, जाल या ब्लीचिंग पाउडर का प्रयोग किया जाता है। कीड़े मकोडों पर नियंत्रण के लिए चूने का प्रयोग किया जाता है।
- मछली के आहार के रूप में चावल की भूसी एवं सरसों की खली, गेहूं के चापड, अनाज के टुकडे आदि का प्रयोग किया जाता है
- वर्तमान में मत्स्य विभाग की 12 प्रयोगशालायें कार्यरत हैं (केन्द्रीय प्रयोगशाला लखनऊ में)
- मत्स्य पालन का सम्बन्ध नीली क्रांति से है।
4. मुर्गी पालन/कुक्कुट पालन (Poultry Farming)
- वैज्ञानिक नाम – गैलस डोमेस्टिकस
- भारत में घरेलू मुर्गी (Domestic fowl), गैलस डोमेस्टिकस (Gallus domesticus) को मुख्यरूप से पाला जाता है
- मुर्गीपालन मुख्य रूप से अंडे व मांस के लिए किया जाता है।
- मुर्गीपालन में प्रयुक्त मुर्गी की कुछ नस्लें माँस उत्पादन के लिए अधिक उपयुक्त होती हैं जिन्हें ब्रॉयलर्स (Broilers) कहा जाता है जैसे- प्लाइमॉथ रॉक ।
- प्रमुखतः अण्डे उत्पादन हेतु पालन की जाने वाली मुर्गियाँ लेयर्स (Layers) कहलाती हैं।
- पारम्परिक या देशी नस्लें (Indigenous or Desi Breeds)- इनमें असील (Aseel), ककरनाथ (Kakarnath), ब्रह्मा (Brahma), बसरा (Busara), बैगस (Ghagus), चिटगांन (Chittagong) इत्यादि नस्लें शामिल हैं। उपरोक्त में से असील नस्ल को मुर्गों की लड़ाई (Cock-fighting) के लिए गेम बर्ड (Game bird) की तरह पाला जाता है।
- विदेशी नस्लें (Exotic Breeds)- इनमें अधिकतर यूरोपियन नस्लें शामिल हैं। विदेशी नस्लों में सफेद लैगहॉर्न (White leghorn), प्लाइमॉथ रॉक (Plymouth rock), रोडे आइलैण्ड रैड (Rhode island red), न्यूहैम्पशायर (New hampshire) इत्यादि प्रमुख हैं। ये नस्लें उन्नत नस्लों की श्रेणी में आती हैं।
- अधिक अंडा देने वाली व्हाइट लेग हार्न, मिनार्का आदि। केवल मांस देले वाली असील, व्हाइट कार्निस, व्हाइट रॉक न्यू हैम्प शायर आदि।
- मांस और अंडा दोनों के लिए- रोड आइलैंड रेड, अस्ट्रालार्प इत्यादि ।
- उन्नत नस्ल की मुर्गियाँ साल भर में लगभग 250-300 अंडे देती हैं जबकि देशी मुर्गियाँ केवल 50-60 अंडे।
- केवल अंडे के लिए सबसे अच्छी किस्म व्हाइट लैग हॉर्न है।
- मुर्गी के दाने में मक्का, जौ, और बाजरा जैसे अनाज शामिल होते हैं
- अण्डे मुर्गीपालन के लिए हमेशा ऐसी मुर्गियाँ पाली जाए जो अधिक और बड़े अंडे देने वाली हों मुर्गी के अण्डों की ऊष्मायन अवधि-21 दिन
- मुर्गियों में होने वाले मुख्य रोग – रानीखेत (virus) या टूनकी, चिकन पॉक्स, कोलेर
- अण्डों से सम्बन्धित क्रांति रजत क्रांति कहलाती है। मांस से सम्बन्धित क्रांति को लाल क्रांति कहते हैं
5. डेयरी उद्योग (Dairy Industry)-
मानव ने प्राचीन काल से ही कुछ पशुओं को पालतू कर उनके दूध का अपने पोषण हेतु उपयोग करता रहा है वर्तमान में दुग्ध उत्पादन डेयरी उद्योग का एक प्रमुख व लाभकारी व्यवसाय बन गया है दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से भैंस अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है भैंस की कुछ अच्छी नस्लें इस प्रकार हैं जैसे जाफराबादी, मुर्रा, सूखी, भदावरी, मेहसाना आदि गाय (बोस इन्डिकस) की नस्लें जैसे- गिर, साहिवाल, सिन्ध, देवकी, हरियाणा आदि
- कुछ राज्यों में बकरी का पालन भी दुग्ध उत्पादन के लिए किया जाता है, सिरोही, बारबरी, कश्मीरी पश्मीना, जमनापरी आदि बकरी की अच्छी नस्ले हैं
मोती या मुक्ता सर्वर्धन (Pearl culture) –
मोलस्का संघ के जन्तु आर्थिक रूप से मानव के लिए अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है बटन, मोती तथा कौड़ी प्राप्त होने के कारण ये व्यापारिक दृष्टिकोण से उपयोगी हैं
- कृत्रिम तकनीक के माध्यम से सीपियों को पालकर उनसे मुक्ता या मोती बनाकर प्राप्त करना मुक्ता या मोती सवंर्धन (Pearl culture) कहलाता है
- मोती को एक मूल्यवान रत्न माना जाता है जो प्राय सफेद, चमकीली, गोलाकार संरचना होती है जिसे आयस्टर (Oyster) जैसे मोलस्क अपने कवच के नीचे स्वयं की रक्षा के लिए स्त्रावित करते हैं
- सीलेन्ट्रेटा संघ के पॉलिप जंतु (एन्थोजोआ वर्ग) कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) का बना बाह्य कंकाल स्त्रावित करते हैं, जिसे कोरल या प्रवाल (Corel) कहते हैं
पशुपालन (Animal Husbandry)-
कृषि विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत पालतू पशुओं के भोजन, आवास, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि का अध्ययन किया जाता है उसे पशुपालन (Animal husbandry) कहते हैं
- पशुओं का आहार वैज्ञानिक तरीके से किया जाना चाहिए, जिसमें चारे की गुणवत्ता और मात्रा पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए।
- दूध की पैदावार मुख्य रूप से फॉर्म में रखे गए नस्लों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है।
- लाख कीट लैसिफर लेक्का या टैकार्डिया लैका को कहा जाता है जिससे लाख की प्राप्ति होती है। लाख का उपयोग ठप्पा देने का चपड़ा बनाने, चूड़ियों और पालिशों के निर्माण, लकडी के खिलौनों के रंगने और सोने चाँदी के आभूषणों में रिक्त स्थानों को भरने में होता है। केंचुए की खेती वर्मी कल्चर कहलाती है एवं केंचुए की खाद की वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं।
- केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है। केंचुए को किसान का मित्र कहा जाता है
- लेमन घास एक प्राकृतिक मच्छर विकर्षक है। इसका उपयोग प्राकृतिक मच्छर प्रतिकर्षी तैयार करने में किया जाता है।
- पाइरेथ्रिन नामक पदार्थ मच्छर मारने की दवा mosquito coil के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। यह गुलदाऊदी तथा गेंदा के पुष्प से प्राप्त होता है, जो एक बीजीय पौधा है।
- भारत में पशमीना बकरियाँ और अंगोरा खरगोश की स्पीशीज- युग्म से उच्च गुणवत्ता वाली ऊन की थोड़ी मात्रा प्राप्त होती है।
- नोस्कापीन, पोस्ता (पॉपी) से प्राप्त किया जाता है। इसके अन्य जैसे Narcotine
- ‘रेगिस्तान का जहाज’ कहा जाने वाला जानवर ऊँट अपने कूबड़ का उपयोग ‘वसा के संग्रह’ के लिए करता है।
- हृदय रोग के उपचार के लिए अर्जुन वृक्ष की छाल का प्रयोग किया जाता है।
- सर्पगन्धा रक्तचाप के उपचार में सहायक है तथा स्मृति में सुधार के लिए आयुर्वेद में ब्राह्मी पौधे का उपयोग किया जाता है।