कोशिका संरचना एवं प्रकार्य

  • कोशिका को सजीवों के शरीर की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई कहते हैं।
  • कोशिका का अध्ययन – साइटोलॉजी (जनक – रोबर्ट हुक)
  • कार्ल पी. स्वानसन को आधुनिक कोशिका विज्ञान के जनक के रूप में जाना जाता है।
  • कोशिका (मृत एवं पादप कोशिका) को सबसे पहले रॉबर्ट हुक ने 1665 में कॉर्क / Phallem (पेड़ की छाल का एक भाग) में देखा एवं इसे सेलुली (छोटा कमरा) कहा।
  • रॉबर्ट हुक ने माइक्रोग्राफिया पुस्तक में इसका वर्णन किया।
  • एन्टोनी वान ल्युवेनहाक ने 1674 में पहली बार तालाब के पानी में से जीवित कोशिका (जंतु कोशिका) को देखा व इसे एनिमलक्यूल कहा।
  • जीवाणु, शुक्राणु, प्रोटोजोआ एवं RBC की खोज भी एन्टोनी वान ल्युवेनहाक ने की थी।
  • स्लाइडेन (B) व श्वान (Z) ने संयुक्त रूप से कोशिका सिद्धांत 1838-39 में प्रतिपादित किया।
  • पहली बार रूडोल्फ विर्ची (1855) ने स्पष्ट किया कि नई कोशिकाओं का निर्माण पूर्व स्थित कोशिकाओं के विभाजन से होता है (ओमनिस सेलुला इ सेलुला)।

1. इन्होंने स्लाइडेन व श्वान की कल्पना को रूपांतरित कर नया कोशिका सिद्धांत को प्रतिपादित किया। वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में कोशिका सिद्धांत निम्नवत है –

(i) सभी जीव कोशिका व कोशिका उत्पाद से बने होते हैं।
(ii) सभी कोशिकाएँ पूर्व स्थित कोशिकाओं से निर्मित होती है।

  • कोशिका सिद्धांत का अपवाद – वायरस
  • सबसे छोटी कोशिका माइकोप्लाज्मा / PPLO (Pleuro Pneumonia Like Organisms) (0.3 µm)
  • सबसे बड़ी कोशिका शुतुरमुर्ग का अंडा (170 mm × 130 mm या 15cm)
  • सबसे बड़ा एक कोशिकीय जीव एसीटेबुलेरिया
  • मानव शरीर की सबसे छोटी कोशिका शुक्राणु
  • मानव शरीर की सबसे लम्बी कोशिका तंत्रिका कोशिका (न्यूरोन)
  • मानव शरीर की सबसे बड़ी कोशिका अंडाणु
  • बैक्टीरिया (जीवाणु) 3 से 5 µm तथा लाल रक्त कोशिका का व्यास लगभग 7.0 µm होता है।
  • कोशिका का आकार एवं आकृति उसके कार्य पर निभर करते है ना की जीव के आकार पर जैसे
  • RBC- गोलीय चपटी / उभयावतल (round and biconcave)
  • पेशी कोशिकाए – तर्कुरूपी (लंबी होती हैं जिनके दोनों सिरे नुकीले होते हैं)
  • तंत्रिका कोशिका – लंबी एवं शाखान्वित

जीवाणु के चार मूल आकार होते हैं-

> दंडाकार (बेसिलस), गोलाकार (कोकस), कोशाकार / कोमा आकार (विब्रों) व सर्पिल (स्पाइलर)।

• WBC एवं अमीबा अनियमित आकार

कोशिका संरचना – कोशिका के 3 मुख्य भाग है- A कोशिका झिल्ली, B कोशिका द्रव्य, C केन्द्रक

A. कोशिका झिल्ली / प्लाज्मा झिल्ली / कोशिका कला (Cell Membrane):-]

  • कोशिका कला लिपिड (फास्फोलिपिड) व प्रोटीन की बनी त्रिस्तरीय झिल्ली होती है।
  • सिंगर एवं निकोल्सन के तरल मोजेक मोडल (1972) के अनुसार कोशिका झिल्ली 75Å मोटी झिल्ली है जिसमें, “उपर व नीचे वसा जिसमे जल रागी सिरा बाहर की तरफ एवं जल विरागी पूंछ अंदर की तरफ एवं मध्य में प्रोटीन का स्तर होता है”
  • यह जंतु कोशिका का सबसे बाह्य आवरण है जो इसे निश्चित आकर-आकृति एवं सुरक्षा प्रदान करती है।
  • यह सरंध्र एवं जीवित झिल्ली है जो विभिन्न पदार्थो के कोशिका में आवागमन को नियंत्रित करती है, इसलिय इसे चयनात्मक पारगम्य झिल्ली भी कहते है
  • कुछ पदार्थ जैसे कार्बन डाइऑक्साइड अथवा ऑक्सीजन कोशिका झिल्ली के आर-पार विसरण प्रक्रिया द्वारा आ-जा सकते हैं।
  • यदि कोशिका को तनु (पतला) विलयन वाले माध्यम अर्थात् जल में शक्कर अथवा नमक की मात्रा कम और जल की मात्रा ज्यादा है, में रखा गया है तो जल परासरण विधि द्वारा कोशिका के अंदर चला जाएगा, इससे कोशिका फूलने लगेगी। ऐसे विलयन को अल्पपरासरण दाबी विलयन (Hypotonic solution) कहते हैं।
  • यदि कोशिका को ऐसे माध्यम विलयन में रखा जाए जिसमें बाह्य जल की सांद्रता कोशिका में स्थित जल की सांद्रता के ठीक बराबर हो तो कोशिका झिल्ली से जल में कोई शुद्ध गति नहीं होगी, इसलिए कोशिका के माप में कोई परिवर्तन नहीं आएगा।। ऐसे विलयन को समपरासारी विलयन (Isotonic solution) कहते हैं।
  • यदि कोशिका के बाहर वाला विलयन अंदर के घोल से अधिक सांद्र है तो जल परासरण द्वारा कोशिका से बाहर आ जाएगा, इसलिए कोशिका सिकुड़ जाएगी। ऐसे विलयन को अतिपरासरणदाबी विलयन (Hypertonic solution) कहते हैं।
  • जब किसी पादप कोशिका में परासरण द्वारा पानी की हानि होती है तो कोशिका झिल्ली सहित आंतरिक पदार्थ संकुचि हो जाते हैं। इस घटना को जीवद्रव्य कुंचन (Plasmolysis) कहते हैं
  • परासरण इस प्रकार विसरण की एक विशिष्ट विधि है जिसमें वर्णात्मक झिल्ली द्वारा (जल की अधिक से कम की ओर गति होती है।
  • कोशिका झिल्ली में लिपिड प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। विभिन्न कोशिकाओं में प्रोटीन व लिपिड का अनुष् भिन्न-भिन्न होता है। मनुष्य की रूधिराणु / RBC (इरीथ्रोसाइट) की झिल्ली में लगभग 52 प्रतिशत प्रोटीन व 40 प्रतिशत लिपिड मिलता है।
  • जीवाणुओं की कोशिका झिल्ली में रूपांतरण से मिसोसोमे (श्वसन में सहायक) एवं क्रोमेटोफोर (प्रकाश संश्लेषण में सहायक) पाए जाते है।

कोशिका भित्ति (Cell Wall):-

  • पादपों में कोशिका झिल्ली के बाहर एक ओर आवरण, कोशिका भित्ति (Cell Wall) पाई जाती है।
    कोशिका भित्ति कोशिका के आकार को निर्धारित करती है।
  • यह मृत (निर्जीव) एवं पारगम्य झिल्ली होती है जो जंतुओं एवं माइकोप्लाज्मा में नहीं पाई जाती।
  • शैवाल की कोशिका भित्ति सेलुलोज, गेलेक्टेन्स, मैनान्स व खनिज जैसे कैल्सियम कार्बोनेट की बनी होती है।
  • पौधों में यह सेलुलोज, हेमीसेलुलोज, पेक्टीन व प्रोटीन की बनी होती है।
  • कवको की कोशिका भित्ति काइटिन की बनी होती है।
  • जीवाणु कोशिका की भित्ति में पेष्टिडोग्लाइकन या म्यूकोपेप्टाइड या म्यूरिन होता है रासायनिक रूप से, पेष्टिडोग्लाइकन N-एसिटिल ग्लूकोसऐमीन (NAG) और N-एसिटिल म्यूरेमिक अम्ल (NAM) से बना होता है।
  • जीवाणुओं में कोशिका झिल्ली एवं भित्ति के अतरिक्त एक ओर बाह्य आवरण सम्पुट (केप्सूल) पाया जाता है जो ग्लाइकोकेलिक्स का बना होता है। जैसे बाह्य परत ग्लाइकोकेलिक्स, जिसके पश्चात् क्रमशः कोशिका भित्ति एवं जीवद्रव्य झिल्ली होती है। यद्यपि आवरण के प्रत्येक परत का कार्य भिन्न है, पर यह तीनों मिलकर एक सुरक्षा इकाई बनाते हैं।
  • कोशिका भित्ति पौधों, कवक तथा बैक्टीरिया की कोशिकाओं को अपेक्षाकृत कम तनु विलयन (अल्पपरासरण दाबी विलयन) में बिना फटे बनाए रखती है।
  • कोशिका भित्ति में स्थित प्राथमिक भित्ति में वृद्धि की क्षमता होती है, जो कोशिका की परिपक्वता के साथ घटती जाती है व इसके साथ कोशिका के भीतर की तरफ द्वितीय भित्ति का निर्माण होने लगता है।
  • मध्यपटलिका मुख्यतयः कैल्सियम व मैग्नेशियम पेक्टेट की बनी सतह होती है जो आस-पास की विभिन्न कोशिकाओं को आपस में चिपकाएं व पकड़े रहती है।
  • कोशिका भित्ति एवं मध्य पटलिका में जीवद्रव्य तंतु (प्लाज्मोडैस्मेटा) आड़े-तिरछे रूप में स्थित रहते हैं। जो आस-पास की कोशिका द्रव्य को जोड़ते हैं।

B. कोशिका द्रव्य (Cytoplasm)-

  • यह एक जैली जैसा पदार्थ है जो कोशिका झिल्ली एवं केन्द्रक के बीच पाया जाता है।
  • कोशिका का सजीव भाग (कोशिकांग) एवं निर्जीव भाग (मेटाप्लाज्म- वसा बुँदे, स्टार्च कण, ग्लाइकोजन कण एवं रिक्तिका) कोशिका द्रव्य में ही पाए जाते हैं।
  • दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग माइटोकॉण्ड्यिा, क्लोरोप्लास्ट केन्द्रक। एकल झिल्लीयुक्त कोशिकांग : लाइसोसोम, पराक्सीसीम, किन्दा जीकाय।
  • आवरणरहित कोशिकांग : राइबोसोम, सेंट्रियोल, केन्द्रिका कोशिका द्रव्य तथा केंद्रक दोनों को मिलाकर जीवद्रव्य (Protoplasm) कहते हैं।
  • जीवद्रव्य की खोज डुजारडिन ने 1835 में की थी तथा सारकोड नाम दिया। पुरकिंजे ने इसे प्रोटोप्लाज्म नाम दिया तथा
  • हक्सले ने जीवद्रव्य को जीवन का भौतिक आधार कहा।
  • ये अन्तःद्र्व्यी जालिका (ऐन्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम / E.R.) :- खोज – पोर्टर यूकैरियोटिक कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में चपटे, आपस में जुड़े थैली युक्त छोटी नलिकावत जालिका तंत्र बिखरा रहता है जिसे अंतर्द्रव्यी जालिका कहते हैं।
  • अन्तः प्रद्रव्यी जालिका के घटक :- सिस्टर्नी, वेसीकल्स, ट्यूब्यूल्स अंतर्द्रव्यी जालिका दो प्रकार की होती है- खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका (RER) तथा चिकनी अंतर्द्रव्यी जालिका (SER)।RER पर राइबोसोम लगे होते हैं।
  • राइबोसोम पर प्रोटीन संश्लेषित होती है
  • SER वसा अथवा लिपिड अणुओं के बनाने में सहायता करती है।

ER के मुख्य कार्य –

  • ER में बनने वाले प्रोटीन तथा वसा कोशिका झिल्ली को बनाने में सहायता करते हैं। इस प्रक्रिया को झिल्ली जीवात् जनन कहते हैं।
  • कोशिका को अन्दर से सहारा प्रदान (Mechanical support) करना, अन्तः कोशिकीय परिवहन, प्रोटीन एवं वसा का संश्लेषण एवं गॉल्जीकाय का निर्माण करना इत्यादि ।
  • कशेरुकी के यकृत की कोशिकाओं में SER विष तथा दवा को निराविषीकरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

2. गोल्जीकाय :- खोज – कैमिलो गॉल्जी

  • गॉल्जी कॉम्प्लेक्स तीन भागों से मिलकर बना होता है सिस्टर्नी, वेसीकल्स, ट्यूब्यूल्स कुंड / सिस्टर्नी (Cisternae) केन्द्रक के पास ये चपटी डिस्क आकार की थैलेनुमा संरचनाएँ होती है।
  • सिस्टर्नी की जो सतह केन्द्रक की ओर होती है cis-face या निर्माणकारी सतह / संरुपण तल (forming face) कहलाती है।
  • सिस्टर्नी की जो सतह झिल्ली की ओर होती है trans-face या परिपक्वन सतह (maturing face) कहलाती हैं। • ER में संश्लेषित पदार्थ गॉल्जी उपकरण में पैक किए जाते हैं और उन्हें कोशिका के बाहर तथा अंदर विभिन्न क्षेत्रों में Discharged भेज दिया जाता है, इसका मुख्य कार्य कोशिकीय स्त्रवण है।
  • इसे कोशिका का ट्रैफिक पुलिस कहा जाता है।
  • गोल्जीकाय द्वारा शुक्राणुओं के एक्रोसोम का निर्माण किया जाता है।
  • गॉल्जीकाय ग्लाइकोप्रोटीन व ग्लाइकोलिपिड निर्माण का प्रमुख स्थल है।
  • पादपो में यह छितरे रूप में होते जिन्हें डिक्टियोसोम कहते हैं।
  • लाइसोसोम का निर्माण गॉल्जीकाय द्वारा होता है।

लाइसोसोम :- स्वोज – ही खूबे

  • लाइसोसोम कोशिका का अपशिष्ट निपटाने वाला तंत्र है।
  • कोशिका के अंदर आने वाले बाहरी पदार्थ जैसे बैक्टीरिया अथवा भोजन तथा टूटे-फूटे भाग या पुराने अंगक लाइसोसोम में चले जाते हैं जो उन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देते हैं।
  • लाइसोसोम में बहुत शक्तिशाली पाचनकारी जल अपघटकीय एंजाइम (जैसे-हाइड्रोलेजेज लाइपेसेज, प्रोटोएसेज व कार्बोहाइडेजेज) होते हैं (RER इन एंजाइमों को बनाते हैं) जो जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में तोड़ते हैं।
  • मुख्य कार्य अंतः कोशिकीय पाचन
  • कोशिकीय चयापचय (metabolism) में व्यवधान के कारण जब कोशिका क्षतिग्रस्त या मृत हो जाती है, तो लाइसोसोम फट जाते हैं और एंजाइम अपनी ही कोशिकाओं को पाचित कर देते हैं इसलिए लाइसोसोम को कोशिका की ‘आत्मघाती थैली’ भी कहते हैं।

4. राइबोसोम :- खोज – पैलाडे

  • राइबोसोम झिल्ली विहीन, गोलाकार, प्रोटीन तथा आरएनए से निर्मित सूक्ष्म कोशिकीय अंगक होते हैं, जो यूकैरियोटिक कोशिका में खुरदरी अंतःर्द्रव्यी जालिका पर कोशिकाद्रव्य, माइटोकॉन्ड्रिया, केन्द्रक एवं हरितलवक में पाये जाते हैं ता प्रोकैरियोटिक कोशिका में कोशिकाद्रव्य में बिखरे रहते हैं।

ये दो प्रकार के होते हैं-

(1) 70S राइबोसोम-ये 505 एवं 30S माप की दो उपइकाइयों से बने होते है। ये आकार में छोटे, प्रोकैरियोटिक कोशिका में तथा यूकैरियोटिक कोशिकाओं के हरितलवकों एवं माइटोकॉन्ड्रिया में पाये जाते हैं। (S= स्वेदवर्ग इकाई Sevedberg unit)
(2) 80S राइबोसोम-ये 60S एवं 40S उपइकाइयों से बने होते हैं। ये आकार में बड़े तथा सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में तथा RER पर पाये जाते हैं।

इन उपइकाइयों का संयोजन एवं वियोजन मैग्नीशियम आयनों (Mg”) की सांद्रता पर निर्भर करता है।
राइबोसोम्स मुख्यतः प्रोटीन संश्लेषण का कार्य करते हैं। इन्हें प्रोटीन की फैक्ट्री भी कहते है

5. माइटोकॉन्ड्रिया :- खोज अल्टमान / कोलीकर

  • कोलीकर ने सर्वप्रथम इसे देखा, अल्टमान ने बायोप्लास्ट एवं बेंडा ने माइटोकॉन्ड्रिया कहा
  • अन्य नाम – “कोशिका का शक्तिगृह”, “कोशिका का श्वसनगृह”, “कोशिका में ATP – उद्योग”,
  • “कोशिका में कोशिका”, कोशिका में सर्वाधिक व्यस्त व सर्वाधिक सक्रिय कोशिकांग”, अर्धस्वायतशासी कोशिकांग”
  • माइटोकोन्ड्रिया दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग है, माइटोकोन्ड्रिया की आन्तरिक झिल्ली वलित होकर अनेक अंगुली समान क्रिस्टी बनाती है।
  • आन्तरिक झिल्ली में छोटे छोटे कण लगे होते हैं जिनको oxysomes या प्राथमिक कण या F1 कण कहते हैं जो AIP निर्माण मे सहायक होते हैं।
  • माईटोकोन्ड्रिया के मैट्रिक्स में क्रेब्स चक्र (वायवीय श्वसन) के एन्जाईम पाये जाते हैं। आधात्री या मैट्रिक्स में प्रोटीन संश्लेषण उपकरण (70S Ribosome, स्वयं का DNA (DS-वृताकार), RNA एवं Enzymes) भी पाये जाते हैं इसलिए mitochondria को अर्द्धस्वायतशासी कोशिकांग कहा जाता है।

लवक (Plastid):-

  • खोज – हेकल
  • केवल पादप कोशिका में उपस्थित, जन्तु कोशिका में अनुपस्थितः।
  • अपवाद स्वरूप यूग्लीना में पाया जाता है।

रंग के आधार पर लवक तीन प्रकार के होते है-
1. अवर्णी लवक (ल्यूकोप्लास्ट),
2. वर्णी लवक (कोमोप्लास्ट),
3. हरित लवक (क्लोरोप्लास्ट)

(1) अवर्णीलवक (ल्यूकोप्लास्ट) वर्णक विहीन, प्रमुख कार्य भोजन संघह करना। स्टार्च का संग्रह करने वाले एमाइलोप्लास्ट, वसा का संचय करने वाले इलियोप्लास्ट प्रोटीन का संचय करने वाले एल्यूरोप्लास्ट या प्रोटीनोप्लास्ट कहलाते हैं।

(ii) वर्णीलवक (क्रोमोप्लास्ट) इनमें पर्णहरित को छोड़कर अन्य रंग जैसे लाल, नारंगी रंग के कैरोटीन तथा पीले रंग के जैन्थोफिल – वर्णक होते हैं। फलों एवं फूलों को रंग प्रदान करते हैं मिर्च व टमाटर पकने पर लाल रंग लाइकोपीन के कारण होता है।

(iii) हरित लवक (क्लोरोप्लास्ट) ये पर्ण हरित युक्त हरे रंग के लवक हैं जो प्रकाश संश्लेषण का कार्य करते हैं। हरित लवक के अन्दर का तरलभाग स्ट्रोमा कहलाता है। स्ट्रोमा के अन्दर परस्पर समान्तर ढंग से इकाई झिल्लियों की चादरें व्यवस्थित होती हैं। इन्हें पटलिकाएं (Lamellae) कहते हैं। कहीं-कहीं पर ये लैमिली पतली चपटी सिक्के के रूप में व्यवस्थित होती हैं। ये थाइलैकॉइड (Thylacoaid) कहलाती हैं। थाइलैकॉइड का बंडल ग्रेनम (बहुवचन ग्रेना) कहलाता है पीठिका पटलिका (Stroma lamellae) दो ग्रेना को जोड़ती है।

थाइलैकोइड की झिल्लियों की भीतरी सतह पर सूक्ष्मकण पाये जाते हैं; जिन्हें क्वान्टासोम (Quantasome) कहते हैं। यह प्रकाश संश्लेषण की इकाई है ।
हरित लवक के स्ट्रोमा भाग में अप्रकाशिक अभिक्रिया जबकि ग्रेनाभाग में प्रकाशिक अभिक्रिया होती है
हरित लवक में DNA पाये जाने के कारण यह भी माइटोकॉन्ड्रियों के समान अर्द्धस्वायतशासी (Semiautonomous) कोशिकांग है। हरित लवक में Mg धातु पाई जाती है
कार्य – प्रकाश संश्लेषण की क्रिया विधि द्वारा कार्बोहाइड्रेट के रूप में भोज्य पदार्थों का निर्माण होता है। (प्रकाश ऊर्जा को रासयनिक ऊर्जा में बदलना)

12. तारककाय व तारककेंद्र (सैन्ट्रोसोम तथा सैन्ट्रीयोल) :-

  • खोज – टी. बोवेरी
  • यह केवल जंतु कोशिका में पाया जाता है। पादप कोशिका में अनुपस्थित होता है।
  • यह दो बेलनाकार संरचना से मिलकर बना होता है, जिसे तारककेंद्र (सैन्ट्रीयोल) कहते हैं। दोनों तारककेंद्र तारककाय में एक दूसरे के लंबवत् स्थित होते हैं, जिसमें प्रत्येक की संरचना बैलगाड़ी के पहिए जैसी होती है।
  • तारककेंद्र संख्या में 9 समान दूरी पर स्थित परिधीय ट्यूब्यूलिन सूत्रों से बने होते हैं।
  • इसका मुख्य कार्य कोशिका विभाजन के समय तर्कु तंतुओं का निर्माण करना, सिलिया एवं फ्लेजिला का निर्माण, शुक्राणु की पूंछ का निर्माण।

8. पक्ष्माभ व कशाभिका (सीलिया तथा फ्लैजिला):
पक्ष्माभिकाएं (एकवचन – पक्ष्माभ) व कशाभिकाएं (एक वचन कशाभिका) रोम सदृश कोशिका झिल्ली पर मिलने वाली अपवृद्धि है।
पक्ष्माभ (सीलिया) एक छोटी संरचना चप्पू की तरह कार्य करती है, जो कोशिका को या उसके चारों तरफ मिलने वाले द्रव्य की गति में सहायक है।

Flagellun
कशाभिका (फ्लैजिला) अपेक्षाकृत लंबे व कोशिका के गति में सहायक है।

9. कोशिकीय कंकाल (Cytoskelen):

कोशिकाद्रव्य में उपस्थित तन्तुमय प्रोटीनीय संरचनाओं, सूक्ष्मनलिकाएँ / माइक्रोट्यूब्यूल्स, माइक्रोफिलामेन्ट्स एवं इन्टरमीडियेट फिलामेन्ट्स, का विस्तृत जाल सम्मिलित रूप से कोशिका कंकाल / साइटोपंजर कहलाता है।
यह विभिन्न कार्य जैसे यांत्रिक सहायता, गति व कोशिका के आकार को बनाए रखने में उपयोगी है।

10. रसधानियाँ (Vacuoles):-

  • रसधानियाँ ठोस अथवा तरल पदार्थों की संग्राहक थैलियाँ हैं।
  • जंतु कोशिकाओं में रसधानियाँ छोटी होती है जबकि पादप कोशिकाओं में रसधानियाँ बहुत बड़ी एवं मध्य में होने के कारण केंद्रक थोडा परिधि की ओर पाया जाता है।
  • रसधानी एकल झिल्ली से आवृत्त होती है जिसे टोनोप्लास्ट कहते हैं।
  • रसधानियों में कोशिका रस (Cell sap) भरा रहता है और ये कोशिकाओं को स्फीति तथा कठोरता प्रदान करती हैं। पौधों के लिए आवश्यक बहुत से पदार्थ रसधानी में स्थित होते हैं जैसे अमीनो अम्ल, शर्करा, विभिन्न कार्बनिक अम्त तथा कुछ प्रोटीन हैं।
  • एककोशिक जीवों, जैसे अमीबा, की खाद्य रसधानी में उनके द्वारा उपभोग में लाए गए खाद्य पदार्थ होते हैं।
  • कुछ एककोशिक जीवों में संकुचनशील रसधानियाँ अतिरिक्त जल तथा कुछ अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाती हैं।

C. केंद्रक (Nucleus):-

  • खोज रोबर्ट ब्राउन (1831)
    केन्द्रक दोहरी झिल्ली (सरंध्र) से परिबद्ध संरचना है जो समस्त कोशिका उपापचय का नियंत्रण करता है एवं कोशिका की आनुवांशिक सूचनाएँ निहित रखता है।
    सामान्यतः प्रत्येक यूकेरियोटिक कोशिका में कम से कम एक केन्द्रक होता है परन्तु संवहनी पौधों की परिपक्व चालनी नलिका कोशिका (फ्लोएम) एवं कई स्तनधारियों के परिपक्व RBC (इरिथ्रोसाइट) में केन्द्रक अनुपस्थित होते हैं।
    केन्द्रक में केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm), केंद्रिका एवं क्रोमेटिन जाल पाया जाता है।
    केंद्रिका (Nucleolus) की खोज फोंटाना ने की एवं इसका मुख्य कार्य राइबोसोम / r-RNA का निर्माण करना है।
    क्रोमैटिन (गुणसूत्र) से DNA, RNA, क्षारीय प्रोटीन, हिस्टोन तथा अम्लीय प्रोटीन नॉन-हिस्टोन आदि संबंधित रहते हैं. ये रचनायें अन्तरावस्था में सरलता से दिखाई देती है।
    कोशिका विभाजन के समय क्रोमैटिन के धागे संघनन (Condensation) के फलस्वरूप मोटे धागे के जाते समान हो जाते हैं जिसे गुणसूत्र (Chromosomes) कहते हैं।
    गुणसूत्र की संरचना – गुणसूत्र का मुख्य भाग (90 से 92%) DNA एवं हिस्टोन प्रोटीनों के द्वारा बनता है तथा शेष भाग में (8 से 10%) RNA एवं नौनहिस्टोन प्रोटीन पाये जाते हैं।
    गुणसूत्र को क्रोमेटिन नाम – फ्लेमिंग ने दिया था।
    गुणसूत्र को सर्वप्रथम हॉफमिस्टर और कार्ल नागेली ने देखा
    खोजकर्ता – स्ट्रॉर्सबर्गर
    गुणसूत्र शब्द – वाल्डेयर ने दिया
    जन्तुओं तथा उच्च वर्ग के पौधों की कायिक कोशिकाओं (Somatic cells) में गुणसूत्र संख्या द्विगुणित (Diploid, 211) होती है।
    पुामकों (जैसे – शुक्राणु एवं अंडाणु) में इनकी संख्या अगुणित (Haploid, n) होती हैं।
    किसी भी जीव के डीएनए में विद्यमान समस्त जीनों का अनुक्रम या अगुणित गुणसूत्र संख्या को संजीन या जीनोम (Genome) कहलाता है।
    आवृतबीजीय (Angiosperm) पादपों के भ्रूणपोष में गुणसूत्र संख्या त्रिगुणित (3n) होती है।
    गुणसूत्र की आकृति का अध्ययन विभाजन की मध्यावस्था (Metaphase) में किया जाता है
    ये V, J अथवा L. एवं छड़ की आकृति के हो सकते हैं।
    आकृति गुणसूत्र बिन्दु (Centromere) की स्थिति पर निर्भर करती है।

गुणसूत्र का प्रकार
मध्यकेन्द्री (Metacentric)
उपमध्यकेन्द्री (Submetacentric)
अग्रबन्दु, उपअन्तः केन्द्री (Acrocentric)
अन्तःकेन्द्री (Telocentric)

• प्रत्येक गुणसूत्र में एक प्राथमिक संकीर्णन मिलता है जिसे गुणसूत्रबिंदु (सेन्ट्रोमियर) भी कहते हैं।
सेन्ट्रोमियर पर बिंब आकार की संरचना मिलती है जिसे काइनेटोकोर कहते हैं।
गुणसूत्रों की लम्बाई 14 से 20 तक तथा चौड़ाई 0.2µ से 3.0µ तक होती है।
सबसे बड़े गुणसूत्र ट्रिलियम ग्रान्डीफलोरम (Trillium grandiflorum) नामक पौधे की कोशिकाओं में पाये जाते हैं।
सबसे छोटे गुणसूत्र पौधों में कवकों (Fungi) तथा जन्तुओं मे पक्षियों में पाये जाते हैं।
पादपों के गुणसूत्र जन्तुओं के गुणसूत्रों की तुलना में प्रायः लम्बे होते हैं।
एकबीजपत्री पादपों में गुणसूत्र द्विबीजपत्री पादपों के गुणसूत्रों से लम्बे होते हैं।

गणसूत्र में पाये जाने वाले विभिन्न भाग निम्न हैं-

1. अर्धगुणसूत्र (Chromatid) मध्यावस्था में प्रत्येक गुणसूत्र में दो लम्बवत भाग दिखाई देते हैं जिन्हें अर्धगुणसूत्र (Chromatids) कहा जाता है। ये दोनों अर्धगुणसूत्र ■ एक ही गुणसूत्रबिन्दु (Centromere) से जुड़े रहते हैं। पश्चावरथा (Anaphase) में गुणसूत्र बिन्दु के विभाजन होने से दोनों अर्धगुणसूत्र अलग हो जाते हैं एवं विपरीत ध्रुवों की ओर गति करते हैं। इस अवस्था में इन्हें पुत्री गुणसूत्र (Daughter

chromosome) कहते हैं। अर्धगुणसूत्रों का निर्माण अन्तरावस्था (Interphase) में ही हो जाता हैं। अंतरावस्था में प्रत्येक अर्धगुणसूत्र अत्यन्त कुण्डलित सूत्र होता है तथा इसे क्रोमोनीमैटा या वर्णसूत्र (Chromonemata) भी कहा जाता है।

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