मानव जनन तंत्र
मनुष्य में लैंगिक जनन पाया जाता है इनमें लैंगिक द्विरुपता होती है। अर्थात नर तथा मादा को बाह्या लक्षणों के आधार पर पहचाना जा सकता है। नर में शिश्न (Penis) व वृषण कोष (Scrotal sac) पाये जाते है जबकि, स्त्रियों में स्तन ग्रन्थियाँ विकसित होती है। नर में ये केवल अवशेषी रुप में होती है। पुरुषों में दाढ़ी मूछ की उपस्थिति, आवाज होना आदि लक्षण पाये जाते हैं, जबकि स्त्रियों में महीन आवाज, कोमल त्वचा तथा नितम्बों (Buttocks) के क्षेत्र में वसा जमाव के कारण श्रोणि क्षेत्र का अधिक विकसित होना आदि प्रमुख लक्षण होते हैं।
नर जनन तंत्र (Male Reproductive System)- नर जनन तंत्र के दो प्रमुख घटक होते हैं प्राथमिक जननांग तथा सहायक जननांग। पुरुषों में एक जोड़ी वृषण (Testes) प्राथमिक जननांग या जनदों (Gonads) के रुप होते है। इसके अतिरिक्त कई सहायक जननांग (Accessory reproductive organs) मुख्यतया वृषण कोष (Scrotal sac), अधिवृषण (Epididymis), शुक्र वाहिनियाँ (Vas deferens), व प्रॉस्टेट पन्थि (Prostate gland), काठपर ग्रन्थि (Cowper’s gland) एवं शिश्न (Penis) के रुप में पायें जाते हैं।
- वृषण (Testes) पुरुष में एक जोड़ी, गुलाबी तथा अण्डाकार वृषण, उदर गुहा के बाहर दोनों टांगों के मध्य वृषण कोष (स्कोटम) में स्थित होते है।।
- वृषणकोष वृषणों के तापमान को (शरीर के तापमान से 2-2.5 डिग्री सेंटीग्रेड) कम रखने में सहायक होता है जो शुक्राणुजनन के लिए आवश्यक है।
- वृषण कोष की दीवार लचीली, पतली तथा रोम युक्त होती है एवं इसके भीतर अरेखित पेशी तन्तुओं का मोटा उपत्वचीय (Subcutaneous) स्तर होता है, जिसे डारटोस पेशी (Dartos muscle) कहते है।
- वृक्षण तीन आवरणों द्वारा आवरित रहता है। सबसे बाहरी व्यूनिका वेजाइनेलिस (Tunica vaginalis) मध्य में ट्यूनिका एल्बुजीनिया (Tunica Albuginea), व सबसे भीतरी ट्यूनिका वेसकुलोसा (Tunica Vasculosa)
- ट्यूनिका एल्बुजीनिया स्तर स्थान स्थान पर वृषण में धंसकर वृषण पट्टियों (Septula testes) का निर्माण करता है। प्रत्येक वृषण 250-300 कक्ष (Lobules) में विभक्त रहता है
- प्रत्येक वृषण पालिका के अंदर एक से लेकर तीन अति कुंडलित शुक्रजनक नलिकाएँ (सेमिनिफेरस ट्यूबुल्स) होती हैं जिनमें शुक्राणु पैदा किए जाते हैं।
- प्रत्येक शुक्रजनक नलिका का भीतरी भाग दो प्रकार की कोशिकाओं से स्तरित होती हैं, जिन्हें नर जर्म कोशिकाएँ (शुक्राणुजन / स्पर्मेटोगोनिया) और सॉली कोशिकाएँ कहते हैं
- शुक्राणुजनीय कोशिकाएँ (Spermatogonial cells) इनके द्वारा शुक्रजनन (Spermatogenesis) द्वारा शुक्राणुओं (Sperms) का निर्माण होता है।
- सर्टोली कोशिकाएँ विकासशील जनन कोशिकाओं (शुक्राणु) को सुरक्षा, आलम्बन तथा पोषण प्रदान करने के साथ साथ शुक्राणुपूर्व कोशिका के अनावश्यक कोशिकाद्रव्य का विघटन करती हैं। इनके द्वारा शुक्राणु उत्पादन प्रेरित करने वाले हॉर्मोन (FSH) की क्रिया का नियमन करने हेतु इन्हिबिन (Inhibin) नामक प्रोटीन हॉर्मोन का भी स्रावण किया जाता है।
- शुक्रजनक नलिकाओं के बाहरी क्षेत्र को अंतराली अवकाश (इंटरस्टीशियल स्पेस) कहा जाता है। इसमें छोटी-छोटी रुधिर वाहिकाएँ और अंतराली कोशिकाएँ (इंटरस्टीशियल सेल्स) या लीडिंग कोशिकाएँ (इंटरस्टीशियल सेल्स) होती हैं, जो नर हॉर्मोन, टेस्टोस्टेरोन (एंड्रोजन) (Testosterone) का स्रावण करती है, जिसके कारण पुरुषों में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों तथा सहायक जनन ग्रन्थियों का विकास होता है।
1. शुक्रजनक नलिकाएँ (Seminiferous tubules) वृषण की सतह के पास प्रारम्भ होकर कम कुण्डलित होते हुए मध्यवर्ती क्षेत्र में पहुँच कर सीधी होकर छोटी-छोटी नलिकाओं के घने जाल में खुल जाती है, जिसे वृषण जालक (Rete testis) कहते है। इससे लगभग 15-20 संवलित नलिकाएँ (Convoluted ductules) निकलती है जिन्हें शुक्रवाहिकायें या अपवाही वाहिनिकाएँ (Vasa efferentia) कहते है। ये नलिकाएँ वृषण की अग्र या ऊपरी सतह पर पहुँच कर एक लम्बी अधिवृषण या एपिडिडाईमिस नलिका (Epididymis) में खुलती है।
2. अधिवृषण (Epididymis) यह एक पतली, लगभग 6 मीटर लम्बी, अत्यधिक कुण्डलित, चपटी तथा अर्धविराम (Comma) के आकार की नलिका है। इसके कुण्डल संयोजी ऊतक द्वारा परस्पर चिपके रहते हैं।
- इस नलिका को तीन भागों में बाँटा गया है-
शीर्ष (Head) (ii) मध्य (Body) (iii) पुच्छक (Tail)
- एपिडिडाइमिस शुक्राणुओं का संग्रह करता है तथा यहीं पर शुक्राणुओं का क्रियात्मक परिपक्वन भी होता है।
3. शुक्रवाहिनी (Vas Deferens)- शुक्रवाहिनी लगभग 45 सेमी. लम्बी नलिका होती है। पुच्छक अधिवृषण कम कुण्डलित तथा मोटी नलिका के रुप में सीधी होकर शुक्रवाहिनी का निर्माण करता है। शुक्रवाहिनी अधिवृषण के पश्च भाग से प्रारम्भ होकर ऊपर की ओर वेक्षण नाल से होकर उदर गुहा में मूत्राशय के पश्च तल पर नीचे की ओर मुड़कर चलती हुई अन्त में एक फूला हुआ भाग तुम्बिका (Ampulla) बनाती है। यहाँ शुक्राशय (Seminal vesicle) की छोटी वाहिनी आकर खुलती है। दोनों के मिलने से एक स्खलनीय वाहिनी (Ejaculatory duct) का निर्माण होता है।
तुम्बिका में शुक्राणुओं को अस्थायी रूप से संग्रह किया जाता है। स्खलनीय वाहिनियाँ अन्त में मूत्र मार्ग (Urethra) में आकर खुलती है।
4. मूत्र मार्ग (Urethra)- मूत्राशय से मूत्रवाहिनी निकलकर स्खलनीय वाहिनी से मिलकर मूत्र जनन नलिका या मूत्र मार्ग (Urinogenital duct or Urethra) बनाती है। यह लगभग 20 सेमी. लम्बी नाल होती है, जो शिश्न के शिखर, भाग पर मूत्रजनन छिद्र (Urinogenital aperture) द्वारा बाहर खुलती है।
- मूत्र मार्ग मूत्र एवं वीर्य दोनों दोनों के लिए उभयनिष्ठ मार्ग है।
सहायक जनन ग्रन्थियाँ (Accessory Reproductive Glands)- पुरुषों में मुख्यतः तीन प्रकार की सहायक 5 जनन ग्रन्थियाँ पायी जाती है, जो कि अपने स्राव मूत्रमार्ग में छोड़ती है। ये सभी स्रावी पदार्थ अधिवृषण तथा शुक्राशय (L द्वारा स्रावित पदार्थों एवं शुक्राणुओं में मिलकर शुक्रद्रव या वीर्य (Semen) का निर्माण करते है। वीर्य की pH 7.4 (हल्का क्षारीय) होती है। वीर्य में सामान्य शुक्राणु संख्या 20-120 मिलियन शुक्राणु प्रति मिली. ली. होती है। नर में निम्नलिखित सहायक जनन ग्रन्थियाँ होती है।
(i) प्रॉस्टेट ग्रन्थि (Prostate Gland) यह ग्रन्थि मूत्र मार्ग के आधार भाग पर स्थित होती है। प्रॉस्टेट ग्रन्थि द्वारा हल्के सफेद, क्षारीय तरल पदार्थ का स्रावण किया जाता है। जो वीर्य का 25-30 प्रतिशत भाग बनाता है। इस तरल में फॉस्फेटेस (Phosphatase), सिट्रेट (Citrate), लाइसोजाइम, फाइब्रिनोलाइसिन, स्पर्मिन इत्यादि पदार्थ पाये जाते हैं। यह शुक्राणुओं को सक्रिय बनाता है एवं वीर्य के स्कदन को रोकता है। अधिक आयु में प्रॉस्टेट का आकार बढ़ जाता है जिससे मूत्र विसर्जन में कठिनाई होती है।
(ii) शुक्राशय (Seminal Vesicles) ये मूत्राशय की सतह एवं मलाशय के बीच में स्थित एक जोड़ी थैलीनुमा संरचना है। यह एक चिपचिपे तरल पदार्थ का स्रावण करने वाली ग्रन्थि है। शुक्राशयों का स्राव वीर्य का 60 प्रतिशत भाग बनाता है। इसमें फ्रक्टोस (Fructose) शर्करा तथा प्रोस्टाग्लैंडिन्स (Prostaglandins- गति प्रदान) होते है। फ्रक्टोस शुक्राणुओं को ATP के रुप में ऊर्जा प्रदान करता है। क्षारीय प्रकृक्ति के कारण यह स्राव योनि मार्ग की अम्लीयता को समाप्त कर शुक्राणुओं की सुरक्षा करता है।
(iii) काउपर की ग्रन्थि या बल्बोयूरीथल ग्रन्थि (Cowper’s Gland or Bulbourethral Gland) – प्रॉस्टेट ग्रन्थि के ठीक नीचे, मूत्र मार्ग के दोनों पावों में एक जोड़ी छोटी अण्डाकार ग्रन्थियाँ स्थित होती हैं, जिन्हें काउपर की ग्रन्थि कहा जाता है। मैथुन के समय इन ग्रन्थियों के द्वारा एक गाढ़ा, चिपचिपा तथा क्षारीय पारदर्शी तरल पदार्थ स्रावित किया जाता है, जो मूत्र मार्ग को चिकना बनाता है। तथा मूत्र मार्ग की अम्लीयता को समाप्त कर उसे उदासीन या हल्का क्षारीय बनाता है। यह तरल मादा को योनि की चिकना कर मैथुन क्रिया को सुगम बनाता है।
6. शिश्न (Penis)- मनुष्य व अन्य स्तनियों में वृषण कोषों के बीच में उदर से लटका हुआ एक लम्बा, बेलनाकार (Cylindrical), उत्थापनशील (Erectile) तथा अत्यधिक संवहनी (Richly vascularized) मैथुनांग पाया जाता है, जो शिश्न कहलाता है।
मादा जनन तंत्र (Female Reproductive System)
स्त्रियों में एक जोड़ी अण्डाशय (Ovary) प्राथमिक जननांगों (Primary reproductive organs) के रूप में होते हैं। एक जोड़ा अंडाशय (ओवरी) के साथ-साथ एक जोड़ा अंडवाहिनी (ओविडक्ट), एक गर्भाशय (यूटरस), एक गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स), एक योनि (वेजाइना) और बाह्य जननांग या भग (बाह्य जननांग में योनिमुख (Vaginal Orifice), जघन शैल (Mons Pubis), दीर्घ भगोष्ठ (Labia Majora), लघु भगोष्ठ (Labia Minora) तथा भगशेफ (Clitoris) सम्मिलित है), जनन ग्रन्थियाँ एवं स्तन सहायक जननांगों का कार्य करते हैं
1 अण्डाशय (Ovary) – स्त्रियों में बादाम की आकृति के दो अण्डाशय उदर गुहा में स्थित होते हैं। अंडाशय स्त्री के प्राथमिक लैंगिक अंग हैं
- प्रत्येक अण्डाशय वृक्क के पीछे, श्रोणि प्रदेश (Pelvic region) में यह श्रोणि भित्ति तथा गर्भाशय से स्रायुओं (ligaments) द्वारा जुड़ा होता है।
- अण्डाशय द्वारा अण्डाणुओं (Ova) की उत्पत्ति तथा मादा हॉर्मोन ऐस्ट्रोजन (Estrogen) तथा प्रोजेस्ट्रोरोन (Progesterone) का स्रावण किया जाता है।
- इसमें सूक्ष्म अण्ड पुटिकाएँ पाई जाती हैं जिन्हें ग्राफियन पुटिकाएँ (Graafian Follicles) कहते है।
- प्रत्येक ग्राफियन पुटिका में एक अण्डक कोशिका उपस्थित होती है, जो अण्डजनन (Oogenesis) की प्रक्रिया के माध्यम से अण्डाणु में रूपांतरित हो जाती है।
2 अंडवाहिनी / डिम्बवाहिनी (Oviduct) अथवा फेलोपियन नलिका (fallopian tube) प्रत्येक डिम्बवाहिनी नली लगभग 10-12 से.मी. लम्बी होती है, जो प्रत्येक अंडाशय की परिधि से चलकर गर्भाशय तक जाती है।
- यह तीन भागों कीपक (Infundibulum), तुंबिका (ampulla) तथा संकीर्ण पथ (isthmus) में विभक्त होती है।
- अंडाशय के ठीक पास डिंबवाहिनी का हिस्सा कीप (funnel) के आकार का होता है, जिसे कीपक (Infundibulum) कहा जाता है।
- इस कीपक के किनारे अंगुलि सदृश्य संरचनाये होती हैं, जिसे झालर (fimbrae) कहते हैं। अंडोत्सर्ग के दौरान अंडाशय से उत्सर्जित अंडाणु को संग्रह करने में ये झालर सहायक होते हैं। कीप का छिद्रनुमा मुख ऑस्टियम (Ostium) कहलाता है।
- कीपक आगे चलकर अंडवाहिनी के एक चौड़े भाग में खुलता है, जिसे तुंबिका कहते हैं
- निषेचन की प्रक्रिया अंड वाहिनी के तुंबिका (ampulla) एवं इस्थम्स जंक्शन भाग में होती है।
- अंडवाहिनी का अंतिम भाग संकीर्ण पथ (isthmus) में एक संकरी अवकाशिका (lumen) होती है, जो गर्भाशय जोड़ती है।
3.गर्भाशय (Uterus) गर्भाशय केवल एक होता है और इसे बच्चादानी (womb) भी कहते हैं।
- गर्भाशय का आकार उल्टी रखी गई नाशपती जैसा होता है।
- गर्भाशय का ऊपरी फैला हुआ दो-तिहाई भाग गर्भाशय बुन्न (body / fundus) और नीचे का संकरा एक-तिहाई भाग गर्भाशय ग्रीवा (cervix) कहलाता है।
- गर्भाशय एक पतली ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता है।
- गर्भाशय बुन्न (body) का आंतरिक भाग गर्भाशयी गुहा (uterine cavity) और ग्रीवा की गुहा को ग्रीवा नाल (cervical canal) कहते हैं
- ग्रीवा नाल गर्भाशयी गुहा में आंतरिक ग्रीवा छिद्र (internal cervical os) जबकि योनि में बाह्य ग्रीवा छिद्र (external cervical os) द्वारा खुलती है।
- ग्रीवा नाल योनि के साथ मिलकर जन्म नाल (birth canal) की रचना करती है
- गर्भाशय की भित्ति, ऊतकों के तीन स्तरों वाली होती है: बाहरी पतली झिल्लीमय (Perimetrium), मध्य मोटा चिकना पेशीय (Myometrium), आंतरिक ग्रन्थिल म्युकोसा (Endometrium आर्तव चक्र के दौरान इसमें चक्रीय परिवर्तन होते हैं।)
4 योनि (vagina) – गर्भाशय ग्रीवा थोड़ी सी उभरकर एक लचीली पेशीय नलिका बनाती है, जिसे योनि कहते हैं।
- इसमें ग्रंथियों का अभाव पाया जाता है।
- यह एक छिद्र, जिसे योनि द्वार (vaginal orifice) कहा जाता है, द्वारा बाहर खुलती है।
- यह रजोधर्म के लिए मार्ग, स्त्री के मैथुन अंग तथा जन्म नाल के भाग के रूप में कार्य करती है।
- योनि में उपस्थित लैक्टोबेसीलाई (Lactobacilli) जीवाणुओं की किण्वन क्रिया (Fermentation) द्वारा योनि में उपस्थित श्लेष्म (Mucous) अम्लीय हो जाता है। जो संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करता है। योनिद्वार एक पतली झिल्ली द्वारा आंशिक रूप से बंद रहता है, जिसे योनिच्छद (Hymen) कहते हैं। यह अत्यधिक शारीरिक परिश्रम, लैंगिक सम्पर्क तथा व्यायाम के कारण फट जाती है।
- भगशेफ (Clitoris) भगशेफ एक छोटी सी अंगुलि जैसी संरचना होती है जो मूत्रद्वार के ऊपर स्थित एक संवेदी व उच्छ्रायी (Erectile) अंग है, जो कि नर के शिश्न का समजात अंग (Homologous organ) होता है।
- बार्थोलिन ग्रंथियां योनि की दीवार के दोनों ओर स्थित ग्रंथियां हैं। बार्थोलिन पंथियां योनि को नम रखने के लिए तरत पदार्थों के स्राव करती हैं। यह ग्रन्थि नर के काउपर ग्रन्थि के समान होती है
स्तन या छाती (Breast) स्तन या छाती स्त्री जनन तंत्र के सहायक अंगों का कार्य करती है। मादा में स्तन ग्रन्थियाँ (Mammary glands) से युक्त एक जोड़ी स्तन उपस्थित होते है। प्रत्येक स्तन ग्रन्थि में भीतर का संयोजी ऊतक 15-20 नलिकाकार कोष्ठकीय पालियों का बना होता है। इनके बीच बीच में वसीय ऊतक होता है। प्रत्येक पालियों में अंगूर के गुच्छों के समान दुग्ध ग्रन्थियाँ होती हैं, जो दुग्ध का स्राव करती है। यह दूध नवजात शिशु के पोषण का कार्य ( करता है।
- कोलोस्ट्रम स्तन ग्रंथियों द्वारा उत्पादित पहला गाढ़ा दूध होता है जो रोगप्रतिकारकों से भरपूर होता है।
मानव में यौवनारम्भ से जनन तक के लक्षण
- मानव लैंगिक रूप से जनन करने वाला और जरायुज (viviparous) प्राणी है।
- मानव में नर एवं मादा अपरिपक्व जनन अंगों का परिपक्व होकर जनन क्षमता का विकास होना यौवनारम्भ (Puberty) कहलाता है।
- मानवों में जनन घटना के अंतर्गत युग्मकों (gametes) को निर्माण अर्थात युग्मकजनन (gametogenesis- पुरुष में शुक्राणुओं (sperms) तथा स्त्री में अंडाणु (ovum) का बनना), स्त्री जनन पथ में शुक्राणुओं का स्थानांतरण यानी वीर्थसेचन (insemination) और पुरुष तथा स्त्री के युग्मकों का संलयन यानी निषेचन (fertilisation) जिसके कारण युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है, शामिल हैं।
- इसके बाद विदलन (Cleavage -निषेचित अंडे में होने वाले कोशिका विभाजनों की श्रृंखला है), कोरकपुटी (blastocyst) की रचना तथा परिवर्धन और इसका गर्भाशय की दीवार से चिपक जाना यानी अंतर्रोपण (implantation), भ्रूणीय परिवर्धन यानी गर्भावृद्धि (gestation) और शिशु के जन्म यानी प्रसव (parturition) की क्रियाएँ घटित होती है।
- पुरुष और स्त्री के बीच घटनाओं में महत्वपूर्ण अंतर होते हैं। उदाहरण के लिए एक वृद्ध पुरुष में भी शुक्राणु बनना जारी रहता है, लेकिन स्त्रियों में अंडाणु की रचना 50 वर्ष की आयु के लगभग समाप्त हो जाती है।
- नर की अपेक्षा मादा में यौवनारम्भ पहले प्रारंभ होता है।
- मानव नर में यौवनारम्भ 14-16 वर्ष की आयु में वृषणों की सक्रियता तथा शुक्राणु उत्पादन के साथ शुरू होता है
- जबकि मादा में 12-14 वर्ष की आयु में स्तन ग्रन्थियों की वृद्धि एवं रजो दर्शन (Menarche) के साथ प्रारम्भ होता है।
- रजो दर्शन (Menarche) पहली बार मासिक चक्र लगभग 12-13 वर्ष की उम्र में होता है, जिसे रजोदर्शन कहते है।
- रजोनिवृत्ति (Menopause) महिलाओं में लगभग 45-50 वर्ष में मासिक चक्र स्वतः ही बंद हो जाता है, जिसे रजोनिवृत्ति कहते है।
- जनन प्रावस्था के दौरान मादा के अंडाशय की सक्रियता में चक्रिक तथा हार्मोन में परिवर्तन आने लगते हैं। नॉन प्राइमेट स्तनधारियों जैसे गाय, भेड़, चूहों, हिरन, कुत्ता, चीता, आदि में जनन के दौरान ऐसे चक्रिक परिवर्तन देखे गए है इन्हें मदचक्र (ओएस्ट्स साइकिल) कहते हैं; जबकि प्राइमेटों (बन्दर, ऐप्स, मनुष्य) में यह ऋतुस्राव (Menstrual Cycle) चक्र कहलाता है।
- लैंगिक जनन में क्रमबद्ध घटनाओं को तीन भिन्न-भिन्न अवस्थाओं निषेचन पूर्व, निषेचन तथा निषेचन पश्चात् में विभक्त किया जा सकता है-
- भ्रूणविज्ञान (Embroyology) के अंतर्गत अंडाणु के निषेचन से लेकर शिशु के जन्म तक जीव के उद्भव एवं विकास का वर्णन होता है। (Embroyology जनक अरस्तु)
A. निषेचन – पूर्व घटनाएँ – निषेचन पूर्व की दो प्रमुख घटनाएँ युग्मकजनन (गैमेटोजेनिसिस) तथा युग्मक स्थानांतरण (गैमेटो ट्रांसफर) हैं।
> युग्मकजनन (Gametogenesis) = शुक्रजनन (spermatogenesis) + अंडजनन (oogenesis)
शुक्रजनन (spermatogenesis) नर के वृषणों की शुक्रजनन नलिकाओं में शुक्राणुजन (spermatogonia- 46 गुणसूत्र) द्वारा नर युग्मक (शुक्राणु) का बनना। शुक्रजनन की तीन विभिन्न प्रावस्थाए है-
(A) गुणन प्रावस्था (Multiplication phase)- शुक्राणुजन समसूत्री विभाजन (mitotic division) द्वारा संख्या में वृद्धि करते हैं।
- इनमें से कुछ स्तंभ कोशिकाएँ (stem cells) बनी रहती हैं, जिन्हें A प्ररूप (type-A) शुक्राणुजन कहते
- दूसरे प्रकार के शुक्राणुजन जो विभेदित होकर प्रजनक कोशिकाएँ (progenitor cells) बनाती हैं, इन्हें B प्ररूप (type-B) शुक्राणुजन कहते हैं।
(B) वृद्धि प्रावस्था (Growth phase) B प्ररूप शुक्राणुजन, प्राथमिक शुक्राणु कोशिकाओं (primary spermatocytes) में विभेदित और आकर में बड़ी हो जाती है।
(C) परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase) एक प्राथमिक शुक्राणु कोशिका प्रचम अर्धसूत्री विभाजन (न्यूनकारी विभाजन) को पूरा करते हुए दो समान अगुणित (n) कोशिकाओं की रचना करते हैं, जिन्हें द्वितीयक शुक्राणु कोशिकाएँ (secondary spermatocytes) कहते हैं।
- दूसरे अर्थसूत्री विभाजन से गुजरते हुए चार बराबर अगुणित शुक्राणुप्रसू (spermatids) पैदा करते हैं spermatids रूपांतरित होकर शुक्राणु बनाते हैं इन प्रत्येक कोशिकाओं में भी 23 गुणसूत्र होते हैं।
- शुक्राणु, शुक्रजनक नलिकाओं से मोचित (रिलीज) होते हैं, उस प्रक्रिया को (वीर्यसेचन) स्पर्मिएशन कहते हैं। शुक्रजनक नलिकाओं से मोचित (रिलीज्ड) शुक्राणु सहायक नलिकाओं द्वारा वाहित (ट्रांसपोर्टेड) होते हैं। शुक्राणुओं की परिपक्वता एवं गतिशीलता के लिए अधिवृषण, शुक्रवाहक, शुक्राशय तथा पुरस्थ पंथियों का स्रवण भी आवश्यक है।
- अंडजनन (oogenesis)- मादा के अंडाशय में मातृ युग्मक कोशिकाएँ यानि अंडजननी (oogonia) द्वारा अंडाणु (n) का बनना। इसमें भी गुणन प्रावस्था (Multiplication phase), वृद्धि प्रावस्था (Growth phase) एवं परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase) पाई जाती है परन्तु इसमें एक अंडजननी कोशिका से एक ही अंडाणु का निर्माण होता है एवं साथमे ध्रुवीय पिंड (polar body) बनती है।
B. निषेचन (Fertilisation) स्त्री एवं पुरुष के संभोग (मैथुन) के दौरान शिश्र द्वारा शुक्र (वीर्य) स्त्री की योनि में छोड़ा जाता है। गतिशील शुक्राणु तेजी से तैरते हुए गर्भाशय ग्रीवा से होकर गर्भाशय में प्रवेश करते हैं और अंततः अंडवाहिनी नली के तुंबिका (एंपुला) क्षेत्र तक पहुँचते हैं। इसी बीच अंडाशय द्वारा मोचित अंडाणु भी तुंबिका क्षेत्र तक पहुँच जाता है, जहाँ निषेचन की क्रिया संपन्न होती है। निषेचन तभी हो सकता है यदि अंडाणु तथा शुक्राणु दोनों एक ही समय में तुंबिका क्षेत्र पर पहुँच जाएँ। यही कारण है जिससे कि सभी संभोग क्रियाएँ निषेचन व सगर्भता की स्थिति में नहीं पहुँच पाती हैं।
- शुक्राणु के साथ एक अंडाणु के संलयन की प्रक्रिया को निषेचन (fertilisation) कहते हैं जिसके फलस्वरूप युग्मनज (zygote – 46 गुणसूत्र) का निर्माण होता है।
- निषेचन के दौरान एक शुक्राणु अंडाणु के पारदर्शी अंडावरण (जोना पेल्युसिडा) स्तर के संपर्क में आता है और अतिरिक्त शुक्राणुओं के प्रवेश को रोकने हेतु उसके उक्त स्तर में बदलाव प्रेरित करता है। इस प्रकार यह सुनिश्चित हो जाता है कि एक अंडाणु को केवल एक ही शुक्राणु निषेचित कर सकता है। शुक्राणु का एक्रोसोम (अग्र भाग) शुक्राणु को डिंब में प्रवेश करने में मदद करता है। एक्रोसोम अंडे के प्रवेश के लिए हायलूरोनिडेज एंजाइम का वहन करता है। मनुष्य में नर एवं मादा युग्मक आकृति, माप तथा कार्यिकी में एक दुसरे से भिन्न होते है, इन्हें असमयुग्मक तथा इनका मिलना असमयुग्मन कहलाता है।
निषेचन की प्रकार –
बाह्य निषेचन – यह जीव के शरीर के बाहर होता है जैसे आंतरिक निषेचन – यह मादा शरीर के अंदर होता है जैसे मछली, मेंढक, इत्यादी में IVF कीट, पक्षी, स्तनधारी, सरीसर्प
जुड़वा (Twins) एक ही गर्भावस्था के दौरान पैदा होने वाली दो संतानों को जुड़वां कहते हैं। समरूप जुड़वां (identical twins) (एकयुग्मनज/मोनोजाईगोटिक), समरूप जुड़वाँ का जन्म एक शुक्राणु द्वारा एक अंडे के निषेचन से होता है। ये एक ही युग्मनज से पनपे हैं जो विभाजित होता है और दो भ्रूणों का रूप ले लेता है। भ्रात्रीय जुड़वा (fraternal twins) (द्वियुग्मनज/डाईज़ाईगोटिक) ये दो अलग अलग अंडो में दो विभिन्न शुक्राणुओं द्वारा निषेचित होते हैं। जिसके परिणामस्वरूप दो असमान जुड़वां शिशुओं का उत्पादन होता है।
- मानव में लिंग निर्धारण मानव में 23 जोड़ी (46) गुणसूत्र होते है जिसमे से 22 जोड़ी (44) कायिक गुणसूत्र एवं जोड़ी (2) लिंग गुणसूत्र होते हैं। स्त्री में गुणसूत्र का स्वरूप 44+XX है तथा पुरुष में 44+XY होता है। इसलिए स्त्री द्वारा उत्पादित सभी अगुणित युग्मकों (अंडाणु) में x लिंग गुणसूत्र होते हैं जबकि पुरुष युग्मकों (शुक्राणुओं) में लिंग गुणसूत्र या तो X या Y लिंग गुणसूत्र होते हैं। इसलिए 50 प्रतिशत शुक्राणु में x लिंग गुणसूत्र होते हैं और दूसरे 50 प्रतिशत शुक्राणु में Y लिंग गुणसूत्र होते हैं। इसलिए पुरुष एवं स्त्री युग्मकों के संलयन के पश्चात् युग्मनज में या तो XX या XY लिंग गुणसूत्र की संभावना होगी। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि X या Y लिंग गुणसूत्र वाले शुक्राणुओं में से कौन अंडाणु का निषेचन करता है। जिस युग्मनज में XX गुणसूत्र होंगे वह एक मादा शिशु (लड़की) के रूप में जबकि XY गुणसूत्र वाला युग्मनज नर शिशु (लड़का) के रूप में विकसित होगा। इसी कारण कहा जाता है कि वैज्ञानिक रूप से यह कहना सत्य है कि एक शिशु के लिंग का निर्धारण उसके पिता द्वारा होता है न कि माता के द्वारा।
C. निषेचन पश्चात –
विदलन (Cleavage) – समसूत्री विभाजन (विदलन / क्लीवेज) की शुरूआत तब हो जाती है जबकि युग्मनज अंडवाहिनी के संकीर्ण पथ (इस्थमस) से गर्भाशय की ओर बढ़ता है और तब यह 2, 4, 8, 16 संतति कोशिकाओं, जिसे कोरकखंड (ब्लास्टोमीयर्स) कहते हैं, की रचना करता है।
- 8 से 16 कोरकखंडों वाले भ्रूण को तूतक (मोरूला) कहते हैं (चित्र E यह तूतक लगातार विभाजित होता रहता है और जैसे-जैसे यह गर्भाशय की ओर बढ़ता है, यह कोरकपुटी (ब्लास्टोसिस्ट) के रूप में परिवर्तित हो जाता है (चित्र F)।
- एक कोरकपुटी में कोरकखंड बाहरी परत में व्यवस्थित होते हैं जिसे पोषकोरक (ट्रोफोब्लास्ट) कहते हैं। कोशिकाओं के भीतरी समूह, जो पोषकोरक से जुड़े होते हैं, उन्हें अंतर कोशिका समूह (इनर सेलमास) कहते हैं। अब पोषकोरक स्तर गर्भाशय अंतःस्तर से संलग्न हो जाता है और अन्तर कोशिका समूह भ्रूण के रूप में अलग- अलग या विभेदित हो जाता है। संलग्न होने के बाद गर्भाशयी (0) कोशिकाएँ तेजी से विभक्त होती है और कोरकपुटी को आवृत्त कर लेती हैं। इसके परिणामस्वरूप कोरकपुटी गर्भाशय- अंतः स्तर में अन्तःस्थापित्त (इंबेडेड) हो जाती है। (चित्र G, H)। इसे ही अंतर्रोपण (इम्प्लांटेशन) कहते हैं और बाद में यह सगर्भता का रूप धारण कर लेती है।
अपरा- भ्रूण के अंतर्रोपण के पश्चात् पोषकोरक पर अंगुली जैसी संरचनाएँ उभरती हैं, जिन्हें जरायु अंकुरक (कोरिऑनिक विलाई) कहते हैं। ये जरायु अंकुरक गर्भाशयी ऊतक और मातृ रक्त से आच्छादित होते हैं। जरायु अंकुरक और गर्भाशयी ऊतक एक दूसरे के साथ अंतरांगुलियुक्त (इंटरडिजिटेटेड) हो जाते हैं तथा संयुक्त रूप से परिवर्धनशील भ्रूण (गर्भ) और मातृ शरीर के साथ एक संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को गठित करते हैं, जिन्हें अपरा (प्लेसेंटा) कहा जाता है
- अपरा, भ्रूण को ऑक्सीजन तथा पोषण की आपूर्ति एवं कार्बन डाइऑक्साइड तथा भ्रूण द्वारा उत्पन्न उत्सर्जी अवशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने का कार्य करता है। यह अपरा एक नाभि रज्जु (अम्बिलिकल कॉर्ड) द्वारा भ्रूण से जुड़ा होल है, जो भ्रूण तक सभी आवश्यक पदार्थों को अंदर लाने तथा बाहर ले जाने के कार्य में मदद करता है।
- अपरा, अंतःस्रावी ऊतकों का भी कार्य करता है और अनेकों हॉर्मोन जैसे कि मानव जरायु गोनैडोट्रॉपिन (ह्यूमन कोरिऑनिक गोनैडोट्रॉपिन एच सी जी), मानव अपरा लैक्टोजन (ह्यूमन प्लेसेंटल लैक्टोजन – एच पी एल), ऐस्ट्रोजन, प्रोजेस्टोजन, आदि उत्पादित करता है। सगर्भता के उत्तरार्ध की अवधि में अंडाशय द्वारा रिलेक्सिसन नामक एक हॉर्मोन भी स्रवित किया जाता है।
- एच सी जी, एच पी एल और रिलैक्सिन स्ली में केवल सगर्भता की स्थिति में ही उत्पादित होते हैं।
- अंतर्रोपण के तुरंत बाद अन्तर कोशिका समूह (भ्रूण) बाह्यत्वचा (एक्टोडर्म) नामक एक बाहरी स्तर और अंतस्त्वचा (एंडोडर्म) नामक एक भीतरी स्तर में विभेदित हो जाता है। इस बाह्य त्वचा और अंतस्त्वचा के बीच जल्द ही मध्यजनस्तर (मेजोडर्म) प्रकट होता है। ये तीनों ही स्तर वयस्कों में सभी ऊतकों (अंगों) का निर्माण करते हैं। यहाँ या उल्लेख करना आवश्यक है कि इस अन्तर कोशिका समूह में कुछ निश्चित तरह की कोशिकाएँ, जिन्हें स्टेम कोशिकाएँ कहते हैं, समाहित रहती है, जिनमें यह क्षमता होती है कि वे सभी अंगों एवं ऊतकों को उत्पन्न कर सकती है।
- गर्भाशय में रोपण के पश्चात यह भ्रूण का विकास होता है। मानव में सगर्भता की अवधि 9 महीने की होती है। सगर्भता के अंत में गर्भाशय के जोरदार संकुचनों के कारण गर्भ बाहर निकल आता है।
- गर्भ के बाहर निकलने की इस क्रिया को शिशु जन्म या प्रसव (पारट्युरिशन) कहा जाता है।
- भ्रूणीय विकास का सही क्रम Zygote Morula – Blastula – Gastrula – Embryo
- स्त्री की स्तन ग्रंथियों में सगर्भता के दौरान कई प्रकार के बदलाव आते हैं और सगर्भता के अंत तक इनसे दूध उत्पन्न होने लगता है। इस प्रक्रिया को दुग्धस्रवण (लैक्टेशन) कहते हैं। यह माँ को अपने नवजात शिशु की आहार पूर्ति कराने में मदद देता है। दुग्धस्रवण के आरंभिक कुछ दिनों तक जो दूध निकलता है उसे प्रथम स्तन्य या खीस (कोलोस्ट्रम) कहते है, जिसमें कई प्रकार के प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी) तत्व समाहित होते हैं जो नवजात शिशु में प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न करने के लिए परम आवश्यक होते हैं।